आप पूछ सकते हैं, हिंदुओं पर इतने अत्याचार हुए, उनका क्या जवाब है? क्या हम बैठे रहें? इसका जवाब सीधा है। यदि आप समझते हैं कि आप जुल्म को जुल्म से बंद कर सकेंगे, तो यह नादानी है। क्या आप दस करोड़ मुसलमानों को मिटा सकते हैं? जो ‘हां’ कहते हैं, वे पागल हैं। इनको मिटाने के लिए आपको भी मिट जाना पड़ेगा। जिन बातों के लिए हम जिन्ना साहब को गाली दें, वे ही काम हम खुद करें? किंतु, उसका नतीजा? जब बिहार में दंगा हुआ, तो लोग कहते थे - शाबास बिहारियों, अच्छा जवाब दिया, अब दंगे रुक जायेंगे। क्या दंगे रुक गये? हमने उस समय जो किया, उससे पाकिस्तान की जड़ मजबूत हुई। दुनिया ने भी मान लिया कि जब बिहार जैसे कांग्रेसी सूबा में ऐसा हो सकता है, तो दूसरी जगह क्या नहीं हो सकता? पाकिस्तान बनकर रहा।
आज तो आपकी अपनी सरकार है। यदि आप पर कोई जुल्म करता है, तो उसका जवाब आपकी सरकार दे सकती है, चाहे वह जुल्म पाकिस्तान करे या अफ्रीका दृ जिन्ना करे या स्मट्स। लेकिन यह जवाब तभी मिल सकता है, जब आपकी सरकार मजबूत हो। आज तो जिन्ना देखता है कि जवाहरलाल की हुकूमत में जवाहरलाल की बात नहीं चलती। उसका हुक्म उसके मुलाजिम नहीं सुनते। फिर उस सरकार की ताकत ही क्या है? आप दिल-दिमाग को दुरुस्त कर अपने राज्य को मजबूत तो बनाइये। हमारे देश में किस चीज की कमी है? कमी है तो मेहनत की, ईमानदारी की। हमारे पास कोयला है, लोहा है, अन्न है, कपास है. हमारे पास बिजली पैदा करने के सामान हैं। 30 करोड़ से ज्यादा की हमारी तायदाद है। अगर हम एक राज कायम करें और मेहनत करें, तो फिर हम क्या नहीं कर सकते?
1917 की क्रांति के समय रूस एक हारा, थका, उजड़ा हुआ देश था। तीस साल के अंदर उसने ऐसा संगठन किया है कि अब सिर्फ अमेरिका ही उसका मुकाबला कर सकता है। हमने भी यदि योजनाएं बनाकर ईमानदारी से काम शुरू किया, तो हमारा देश भी उतना ही बड़ा हो सकता है। फिर पाकिस्तान की क्या हस्ती, जिन्ना साहब की क्या ताकत जो हमारे लोगों पर अत्याचार कर सकें? यदि आप पाकिस्तान से बदला चाहते हैं, यदि आप चाहते हैं कि जो हिंदू या सिक्ख पश्चिमी पंजाब से भाग आये हैं, उनकी जमीन और रुपये वापस हों, तो उसका एक ही तरीका है कि आप अपनी हुकूमत को मजबूत बनाइये, देश को मजबूत बनाइए। मुसलमानों को कत्ल करके आप उसका बदला नहीं चुका सकते।
मुसलमानों को यहां से हटा दिया जाय, जरा इसके बारे में भी सोचें। मैंने हमेशा लीग की मुखालफत की, जिन्ना को मीरजाफर कहा। पंजाब में जहां मुसलमानों की आबादी 70-80 सैकड़े तक है, उन जगहों में भी मैंने जिन्ना को मीरजाफर कहा। किंतु, मैंने जिन्ना या लीग को सभी मुसलमानों का प्रतिनिधि नहीं माना। कांग्रेस के अंदर भी मुसलमान हैं और बड़े-बड़े मुसलमान हैं। क्रांतिकारी आंदोलन में रामप्रसाद फांसी पर चढ़ें, तो अशफाक भी फांसी पर चढ़ा। आजाद हिंद फौज में सहगल थे, तो शहनवाज भी थे। हमारी पार्टी में ऐसे मुसलमान हैं, जिन पर हमें नाज है। फिर हम मुस्लिम लीग और मुसलमान को एक कैसे समझते हैं? हां, मुसलमान जनता को भड़काया गया, उसे गुमराह किया गया। हमसे भी गलती हुई कि हम मुसलमान जनता तक नहीं पहुंच सके। नतीजा यह हुआ कि लीग ने उन्हें मनमाना नचाया। किंतु, हम उन्हें आज भी समझा सकते हैं, उनको अपनी तरफ कर ले सकते हैं।