2017 में मुंबई में घटी एक घटना छोटी हो सकती है, लेकिन इस सभ्य समाज का पोल खोल देती है जो औरत को लेकर बड़ी-बड़ी आर्दशवादी बातें करता है. मुंबई के एक सोसायटी में रहने वाले दो परिवारों में विवाद होता है. महिला के टेरस से चूता पानी नीचे के घर में रहने वाले सज्जन को परेशान कर रहा था. मामले को सुलझाने के लिए सोसायटी के लगभग दर्जन भर सदस्य बैठक किये.
जिस सज्जन को महिला से शिकायत थी, वे खुद उस सोसायटी के सेक्रेटरी थे. कायदे से टेरस की मरम्मत की बात उस महिला से कही जा सकती थी. लेकिन सेक्रेटरी साहब को उतना धैर्य नहीं था. वे आक्रोश में बोल पड़े कि यह महिला तो अपने लाभ के लिए किसी भी पराये मर्द की गोद में बैठ सकती है. यह अभद्र शब्द किसी भी महिला के सम्मान को भारी चोट पहुंचाती है.
उक्त महिला खुद एक वकील हैं. वे अपनी शिकायत लेकर कोर्ट पहुंची. मैजिस्ट्रेट साहब ने फैसले में कहा कि एक वयस्क आदमी को यह पता होना चाहिए कि वह जो कुछ बोल रहा है, उसका क्या प्रभाव होगा. यहां तो मामला एक महिला के आत्मसम्मान को चोट पहुंचानवाली है. इसलिए इस 55 वर्षीय व्यापारी को अभद्र शब्द बोलने के कारण तीन माह की सजा सुनायी जाती है.
घटना तो 2017 की थी, लेकिन यह फैसला गत सोमवार को आया. फैसला सुनाते हुए मैजिस्ट्रेट का कहना था कि औरत को अपने आत्मसम्मान की रक्षा करने का पूरा अधिकार है. और जब भी औरत इस तरह के मामले को लेकर कोर्ट पहुंचती है, तो इसमें किसी भी तरह की ढ़िलाई नहीं बरती जा सकती है. आगे से अच्छा व्यवहार करने का हलफनामा देने पर या फाईन देने पर भी अपराधी को सजा से मुक्त नहीं किया जा सकता, क्योंकि इससे समाज के सामने गलत उदाहरण पेश होगा.
पुरुष प्रधान समाज की एक और सच्चाई भी इस घटना से उजागर होती है. बैठक में उपस्थित सोसायटी के अध्यक्ष ने गवाही देने से बचने के लिए यह बहाना कर दिया था कि उन्होंने अपराधी को यह वाक्य कहते नहीं सुना. वे उस समय पेट खराब होने के कारण बैइक से उठ कर अपना घर चले गये थे. दूसरे सदस्य भी थाना कोर्ट से बचने के लिए तरह तरह के बहाने बनाये. इसके बावजूद कोर्ट ने केवल महिला के बयान के आधार पर अपना निर्णय दिया और कहा कि महिला पढ़ी लिखीं हैं और वे अच्छी तरह जानती हैं कि घर चूने से जो असुविधा हो रही है, उसका क्या इलाज है. लेकिन उनकी बात सुनने का धैर्य सोसायटी के लोगों को नहीं था.
वैसे, उक्त महिला ने मामले को कोर्ट में ले जाने के पहले अभियुक्त को दो सप्ताह का समय दिया था कि वह इस मामले में उनसे माफी मांग ले, लेकिन इसके लिए वे तैयार नहीं हुए. स्त्री को प्रतिदिन समाज में अपमानित होना पड़ता है. वैसे में यह फैसला एक राहत देने वाला फैसला है.