भाजपा बेहद खुश है. महागठबंधन की सरकार बनने के बाद राज्य में हुए तीन उपचुनावों में वह गठबंधन के उम्मीदवारों से हार चुकी है. अब मांडर में तीसरा उपचुनाव आगामी 23 जून को होने वाला है. उनके लिए वहां भी कोई खास उम्मीद नहीं थी. लेकिन गये सप्ताह शुक्रवार की हिंसा से उनकी बांछें खिल गयी है. उन्हें लगता है कि यह उपचुनाव तो वे अब जीत ही लेंगे, क्योंकि मुसलमान सरकार से बेहद नाराज हैं.

उनकी उम्मीद की एक और वजह भी है. वह यह कि औवैसी एक निर्दलीय उम्मीदवार धान को समर्थन देने की घोषणा कर चुके हैं. मुस्लिम वोट पूरा का पूरा भले न टूटे, उसका एक बड़ा हिस्सा टूट कर धान के पक्ष में जायेगा और भाजपा प्रत्याशी की जीत का रास्ता आसान हो जायेगा. औवैसी वैसे तो भाजपा की सांप्रदायिक राजनीति के विरोधी हैं, लेकिन चुनाव के वक्त हमेशा भाजपा के ही काम आते हैं.

और इस एक उपचुनाव में उन्होंने गठबंधन के प्रत्याशी को हरा दिया तो उन्हें यह ढ़िढ़ोरा पीटने में मदद मिलेगा कि गठबंधन सरकार के दिन पूरे हुए. अगले चुनाव में उसका सूपड़ा झारखंड में साफ हो जायेगा. भाजपा और उसका रामराज झारखंड में फिर कायम हो जायेगा. इस लिहाज से ‘शुक्रवार’ की हिंसा, पत्थरबाजी, पुलिस फायरिंग, दो बेगुनाह युवको की मौत उनके बड़े काम की साबित हो सकती है.

वैसे, इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना ने इस तथ्य को तो बेनकाब कर ही दिया है कि ब्यूरोक्रैशी में बैठा एक बड़ा हिस्सा महागठबंधन सरकार को दिल से नापसंद करता है और इस फिराक में रहता है कि कुछ ऐसा काम हो जाये जिससे महागठबंधन सरकार के लिए मुसीबत खड़ी हो जाये. वरना पुलिस प्रशासन को इतनी जानकारी और समझ तो रहती ही है कि भीड़ से कैसे निबटना है. कम से कम ताकत का प्रयोग, लाठी चार्ज, वाटर कैनन, आश्रु गैस, रबर की गोली और अंत में फायरिंग. उसमें भी पहले हवाई फायरिंग. यह नहीं कि भीड़ की उत्तेजना को बहाना बना कर फायरिंग कर दो. जानकारी तो है, वरना अग्निपथ योजना के विरोध में चले आंदोलन में जिस बड़े पैमाने पर आगजनी और तोड़फोड़ हो रही है, उस पर काबू पाने में कई जगहों पर फायरिंग हो चुकी होती.

और फिर उपद्रवियों का फोटों लगा कर पोस्टर बनाना और शहर की मुख्य जगहों पर उसे लगाने की जल्दीबाजी? प्रशासन को कभी लिचिंग में भाग लेने वाले अपराधियों का पोस्टर बना कर शहर के चैराहों पर लगाने की तो नहीं सूझी? अभी जो रेलवे परिसंपत्ति का नुकसान किया जा रहा है, यहां वहां अराजकता फैलायी जा रही है, इसके लिए जिम्मेदार लोगों के पोस्टर तो नहीं बन रहे? इन सब बातों का क्या नतीजा निकाला जाये?

ज्ञातव्य है कि महागठबंधन की सरकार बनने के बाद राज्य में तीन उप चुनाव हुए- दुमका, बेरमो और मधुपुर में और तीनों जगहों पर भाजपा तमाम कोशिशों के बावजूद महागठबंधन के प्रत्याशियों से पराजित हुई. अब 23 को बंधु तिर्की के जेल जाने की वजह से रिक्त हुए मांडर विधानसभा में उप चुनाव होना है. कांग्रेस ने इस सीट से बंधु तिर्की की सुपुत्री को प्रत्याशी बनाया है. भाजपा ने गंगोत्री कुजूर को और भाजपा से टिकट नहीं मिलने की वजह से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में मौजूद हैं देव कुमार धान जिन्हें औवैसी समर्थन दे रहे हैं. यानि, मुकाबला अब त्रिकोणात्मक हो चुका है.

फिर भी, महागठबंधन की स्थिति मजबूत है. माले ने उनके प्रत्याशी को समर्थन देने की घोषणा की है. आगे तो वोटरों के विवेक पर निर्भर करता है.