श्रीलंका एशिया महादेश का एक देश है जो भारत के एक्षिण हिंद महासागर में स्थित है. यह एक द्विपीय देश है जिसकी दूरी भारत से केवल 31 किमी दूर है. 1972 तक इसका नाम सीलोन था, जिसे 1972 में बदलकर लंका और 1978 में श्रीलंका कर दिया गया। वैसे श्रीलंका का अधिकारिक नाम ‘श्रीलंका समाजवादी जनतान्त्रिक गणराज्य’ है, जिसकी राजधानी कोलम्बो है. श्रीलंका का कुल क्षेत्रफल 65,610 वर्ग किलोमीटर का है जहां करीब 2 करोड़ 13 लाख लोग निवास करते हैं. यहां की साक्षरता दर 92 प्रतिशत है जो पूरे दक्षिण एशिया से अधिक है. इस देश में विभिन्न धर्मों के लोग रहते हैं, जिनमें थेरावा बौद्ध 70.2 प्रतिशत, हिन्दू 12.6 प्रतिशत, मुसलमान 7.4 प्रतिशत और ईसाई 7.4 प्रतिशत.
श्रीलंका तीसरी सदी तक एक हिन्दू बहुल राष्टं था, लेकिन आज वहां बौद्ध धर्म को मानने वालों की बहुलता है, जिनकी पहचान भाषा, सांस्कृतिक विरासत एवं राष्टंीयता सिंहली है. वहां बहुसंख्यक सिंहली और अल्पसंख्यक तमिलों के बीच गृह युद्ध करीब 25 सालों तक चला और श्रीलंका की सरकार ने 30 महीनों के सैन्य अभियान के बाद 2009 में लिट्टे को हराकर इस युद्ध का अंत कर दिया. भारत की तात्कालीन सरकार ने प्रभाकरण के नेतृत्व में लिट्टे के निर्माण में सहयोग किया और फिर अपने शांति रक्षक बलों को श्रीलंका भेजकर श्रीलंका सरकार को मद्द की. सरकार की इस भूमिका से नाराज होकर 1991 में एक आत्मघाती लिट्टे हमलावर ने राजीव गांधी की हत्या कर दी. इसके बाद भारत सरकार ने श्रीलंकाई तमिलों की सहायता बन्द कर दी. भारतीय शांति रक्षक बलों एवं लिट्टे के बीच करीब तीन साल तक चले युद्ध में करीब 1,100 भारतीय सैनिक एवं 5,000 श्रीलंकाई मारे गये. यह युद्ध 1987 से 1990 तक चला था.
इस लम्बे गृहयुद्ध में कम से कम 1 लाख लोग मारे गए और 8 लाख से अधिक लोग विस्थापित हुए. इसके साथ-साथ श्रीलंका की आर्थिक हालत भी काफी खराब हो गई. सबसे ज्यादा तबाही जाफना, जो लिट्टे का केन्द्र था, के लोगों को झेलनी पड़ी. जाफना पब्लिक लाइब्रेरी, जो एशिया की सबसे बड़ी लाइब्रेरी थी और जहां 97,000 से अधिक पुस्तकें एवं पांडुलिपियां थीं, को 1981 में जला दिया गया.श्रीलंका के गृहयुद्ध के बाद सेना देश में एक प्रमुख शक्ति के रूप में उभरी और सेना के कई जनरल सरकार का हिस्सा भी बने. इस तरह बुर्जआ जनवाद भी काफी प्रभावित हुआ. इस तरह श्रीलंका के आर्थिक-राजनीतिक संकट की शुरूआत काफी पहले हो गई थी लेकिन श्रीलंका का वर्तमान आर्थिक-राजनीतिक संकट सबसे ज्यादा गंभीर है। आवश्यक वस्तुओं के दाम काफी बढ़ गये हैं और आम आदमी जरूरी सामान नहीं खरीद पा रहा है। तालिका एक पर गौर करें-
सामान और उसका दाम
- एक अंडा 35 से 40 रू.
- एक कलो गेहूं 200 रू.
- एक कप चाय 400 रू.
- एक किलो नारियल तेल 900 रू.
- एक किलो चावल 500 रू.
- एक लीटर डीजल 176 रू.
- एक किलो चीनी 300 रू.
- एक गैस सिलिण्डर 4149 रू.
- एक किलो दूध पाउडर 4000 रू.
- एक लीटर पेट्रोल 338 रू.
- एक किलो मुर्गे का मांस 1000 रू.
- एक ब्रेड पैकेट 150 रू.
नवम्बर 2021 में महंगाई दर 9.9 प्रतिशत थी, जो दिसम्बर 12.1 प्रतिशत और आज बढ़कर 25.7 प्रतिशत पहुंच गई है. श्रीलंका में खाने के सामानों, ईंधन एवं दवाओं की भारी किल्लत हो गई है. उन्हें खरीदने के लिए लोगों की लम्बी-लम्बी कतारें दिख रही हैं. इन कतारों में कई लोगों की खड़े-खड़े मौतें हो चुकी हैं. शांति-व्यवस्था बनाये रखने के लिए राज्य द्वारा संचालित ईंधन डिपो पर सेना तैनात किया गया है. देश में बिजली का उत्पादन काफी कम हो गया है, जिसके चलते कई उद्योगों को या तो बन्द करना पड़ा है या उन्हें कम समय तक चालू रखा जा रहा है. शहरों में 15 से 18 घंटे तक बिजली की आपूत्र्ति रोकी जा रही है. अस्पतालों को बिजली नहीं मिलने के चलते आवश्यक सर्जरी नहीं हो पा रही है.
श्रीलंका के इस आर्थिक संकट ने देश के सामाजिक-राजनीतिक संकट को काफी बढ़ा दिया. लोग महिन्द्रा राजपक्षे सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतर आये और वे इस सरकार के इस्तीफा देने की मांग करने लगे. वहां की सरकार के कफ्र्यू लगाकर एव ं आपातकाल घोषित कर जनता के गुस्से को नियंत्रित करने की कोशिश की, लेकिन इसका कोई नतीजा नहीं निकला. श्रीलंका की जनता और उग्र तेवर के साथ बड़े-बड़े प्रदर्शनों को संगठित करने लगी. करीब 1,000 व्यापारिक यूनियनों ने भी राष्टंपति गोटवाया राजपक्षे और प्रधानमंत्री महिन्दा राजपक्षे के तत्काल इस्तीफे की मांग को लेकर देशव्यापी हड़ताल घोषित कर दिया। इस हड़ताल को राजकीय सेवा, स्वास्थ्य, बन्दरगाह, बिजली, शिक्षा और डाॅक विभाग के कर्मी भी शामिल हुए. कृषि श्रमिकों ने भी इस हड़ताल में हिस्सा लिया.
उनका मूल नारा था- ‘जनता के आगे झुको, सरकार घर जाओ. उन्होंने सरकार को घर जाने के लिए, यानी इस्तीफा देने के लिए एक सप्ताह का समय निर्धारित किया और कहा कि अगर सरकार इस्तीफा नहीं देती तो हड़ताल जारी रहेगा.
इस राजनीतिक दबाव में शुरू में तो महिंदा राजपक्षे ने इस्तीफा देने से इंकार किया और कहा कि ‘वे जनादेश से सत्ता में आये हं और यदि वे लोग उन्हें बदलना चाहते हंैं तो चुनाव के जरिये ऐसा कर सकते हैं. लेकिन जब उनके छोटे भाई और राष्टंपति गोटवाया राजपक्षे के कार्यालय के बाहर हुए उग्र प्रदर्शन, जिसमें कम से कम 78 लोग घायल हुए, के बाद उन्होंने अपना इस्तीफा सौंप दिया.
इसके बाद भी जनता का गुस्सा शांत नहीं हुआ और उन्होंने प्रधानमंत्री एवं राष्टंपति के पैतृक आवास में आग लगा दी. इसके अलावा कई अन्य राजपक्षे परिवार समर्थक सांसदों के घरों को भी आग के हवाले कर दिया. एक सांसद अमरकीर्ति अतुकोराला को जब हजारों लोगों ने घेर लिया तो उन्होंने स्वयं अपने रिवाल्वर से गोली मारकर आत्महत्सा कर ली. उनके साथ उनका पीएसओ भी मारा गया. श्रीलंका की जनता की इतनी उग्र प्रतिक्रिया तब हुई जब राष्टंपति कार्यालय पर उनके शांतिपूर्ण प्रदर्शन पर सेना ने गोली चलाई.
महिन्द्रा राजपक्षे सरकार को अपदस्त करने वाली वही बहुसंख्यक जनता है, जिन्हें उनकी पार्टी श्रीलंका पीपुल्स पार्टी ने देश के तमिलों एवं मुस्लिमों के खिलाफ भड़काकर और उन्हें अपने पक्ष में जीतकर सत्ता दिलवाई थी. ‘भूखा रह लूंगा पर वोट महिन्द्रा राजपक्षे को दूंगा’ का नारा लगाने वाले अंधभक्तों को अभी एहसास हुआ है कि महिन्द्रा राजपक्षे सरकार ने उनके देश को बर्बाद कर दिया है. श्रीलंका का प्रधानमंत्री आज झोला उठाकर नौसेना के त्रिंकोमाली अड्डे में जा छुपा है और जनता उस अड्डे पर जाकर भी उनकी गिरफ्तारी की मांग कर रही है.
श्रीलंका का ताजाक्रम भारत के लिए एक सबक है.