हेमंत सोरेन से लड़ने के लिए भाजपा ने बाबूलाल मरांडी को सामने कर दिया है. उन्हें भरोसा है कि राज्य के बहिरागत तो भाजपा के साथ रहेंगे ही, अब यदि बाबूलाल कुछ आदिवासी वोटरों को तोड़ पायंे तो यूपीए सरकार के गिरने के बाद भाजपा की सरकार बनाना आसान हो जायेगा. इसलिए वर्तमान संकट के बीच बाबूलाल के नेतृत्व में भाजपा विधानसभा को भंग कर मध्यावधि चुनाव कराने की मांग जोर शोर से करने लगी है.
लेकिन मध्यवधि चुनाव क्यों?
वर्तमान स्थिति तो यह है कि यूपीए की एकजुटता को देख कर राज्यपाल अपने पत्ते ही नहीं खोल पा रहे हैं. सामान्य सी बात है कि यूपीए एकजुट रही तो वार खाली जायेगा. एक तो हेमंत सोरेन के ही नेतृत्व में एक बार फिर सरकार बनने की संभावना रहेगी, और यदि कुछ किसी तकनीकि कारण से वे सरकार के मुखिया नहीं रहे तो अपने किसी विश्वस्त के नेतृत्व में सरकार का गठन कर लेंगे. ऐसे में मध्यावधि चुनाव की बात तो दूर की कौड़ी ही लगती है.
सबसे अहम सवाल यह है कि राज्यपाल चुनाव आयोग से आये पत्र का खुलासा क्यों नहीं कर रहे हैं?
ये सूत्र कौन से हैं जिनके बिना पर यह खबर लगातार चलायी जा रही है कि हेमंत सोरेन की विधायकी जाना तय. हेमंत सोरेन ने अपने पद का दुरुपयोग किया, यह शिकायत तो पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने की. चुनाव आयोग ने मामले की जांच की और अपनी रिपोर्ट राज्यपाल को भेज दी. फिर ये सूत्र कहां से पैदा हो गये जिन्होंने बंद लिफाफे का मजमून पढ़ लिया. इससे इस बात का पर्दाफाश होता है कि यह पूरा षडयंत्र भाजपा ने सरकारी संस्थाओं की मदद से किया है और सही वक्त का इंतजार कर रही है. स्थिति की कल्पना आप छींका टूटने की प्रतिक्षा में बैठी बिल्लियों से कर सकते हैं. कब छींका टूटे और वे मक्कखन खा सकें.
दरअसल, हेमंत की विधायकी जाने के खबर को लगातार चला कर यह वातावरण बनाया जा रहा है कि यूपीए में भगदड़ मचे और उसके विधायक टूट का भाजपा खेमे की तरफ भागें. इसकी तैयारी कुछ महीनों पहले ही से चल रही थी, लेकिन तीन कांग्रेसी विधायकों की बड़ी रकम के साथ कोलकता में गिरफ्तारी, उनके असम यात्रा के रहस्योद्घाटन से कांग्रेस को तोड़ने की साजिश फेल हो गयी. समय रहते यूपीए के शीर्ष नेता तैयार हो गये और यूपीए को एकजुट रखने की कवायत तेज हो गयी.
और इसलिए राज्यपाल दुविधा में हैं, क्योंकि लक्ष्य केवल हेमंत सोरेन को मुख्यमंत्री पद से हटाना नहीं, बल्कि इस सरकार को ध्वस्त करना है. इसलिए अनिश्चितता के वातावरण को बनाये रख कर यूपीए विधायकों को तोड़ने की कोशिशें चल रही हैं.
कांग्रेस कमजोर कड़ी
वैसे तो झामुमो के कुछ विधायकों के भी असंतुष्ट होने की खबर आती रहती है, लेकिन यूपीए की कमजोर कड़ी कांग्रेस है. पूरे देश में कांग्रेस से टूट-टूट कर नेता भाजपा में जा रहे हैं. झारखंड में भी कांग्रेस विधायकों के असंतुष्ट रहने की खबरें आती रहती है. ऐसे में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राजेश ठाकुर की यह बड़ी जिम्मेदारी बनती है कि वे कांग्रेस को एकजुट रखें. कांग्रेस को पिछले चुनाव में जनता ने बड़ी हसरत से वोट दिया है. यह वोट भाजपा के कुशासन के विरुद्ध झारखंडी जनता ने दिया है जिसने 65 सीटें जीतने का दावा करने वाली भाजपा को 28 सीटों पर समेट दिया. इसलिए यदि कांग्रेस के विधायक इस बाद गद्दारी करेंगे तो जनता उन्हें कभी माफ नहीं करेगी.
वैसे, भाजपा अपनी कोशिशों से बाज नहीं आयेगी. वह सिर्फ झारखंड में नहीं, बिहार और दिल्ली में भी बहुमत की सरकारों को पैसे और सरकारी संस्थाओं के बल पर अपदस्थ करने की पुरजोर कोशिशें कर रही है. वह अपनी कोशिशों में कितनी कामयाब होगी, यह तो आने वाला वक्त बतायेगा, लेकिन इसका सकारात्म पक्ष शायद इस रूप में आये कि तमाम विपक्ष उनके नापाक मंसूबों को नाकामयाब करने के क्रम में लोकसभा चुनाव के पहले एकजुट होने के लिए मजबूर हो जाये.