इस वर्ष मानसून बेहद अनियमित रही है. पिछले कुछ दिनों से तो बारिश हो रही है लेकिन समय पर बारिश नहीं होने से जो नुकसान होना था, वह झारखंड के किसानों को हो चुका. अनुमान है कि इस वर्ष धान की फसल नाममात्र को होगी और जिन लोगों के जीवन का आधार धान की यह खेती है, उनका जीना मुश्किल हो जायेगा. एकमात्र सहारा राशन से मिले वाला चावल ही बच जायेगा, लेकिन जीवन की अन्य जरूरतें कैसे पूरी होगी? सूचना तो यह है कि पिछले दो महीने राशन की दुकानों से मिलने वाला राशन भी बहुत अनियमित रहा है.
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार धान की अच्छी उपज के लिए सही समय 15 जून से 31 जुलाई तक होता हैं, यानी खेती के लिहाज से इस बीच अच्छी बारिश होनी चाहिए, लेकिन जुलाई माह में बारिश न के बराबर हुई और बारिश की इस किल्लत का प्रभाव खरीफ की फसलों पर हुआ है. झारखंड में बड़ी- बडी सिंचाई परियोजनाएं, डैम आदि तो बने, लेकिन सच्चाई यह है कि सिंचित भूमि का रकबा नहीं बढ़ा. आदिवासी किसान मूलतः मानसून पर ही खेती के लिए निर्भर रहते हैं.
धान की फसल एक ऐसी फसल है, जिसको सबसे ज्यादा पानी की जरूरत होती है. इस बार शुरुआती दौर में मानसून अच्छा देख और बारिश होते देख किसान धान का बीज तैयार करने में जोरों से जुट गए. खून पसीने से संचित जमाराशि से धान का बीज खरीदा. बीहन तैयार की, लेकिन ऐन वक्त पर बादल रूठ गये और धरती पानी के लिए तरस गयी. बीहन पानी के अभाव में खेत में ही सूखने लगे. थोड़ी बहुत बारिश अगस्त के अंत में शुरु हुई तो रोपनी शुरु हुई. लेकिन फसल अच्छी होने की कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही.
एक तरफ धान की खेती नही हो पा रही है, दूसरी तरफ चावल, आटा की कीमत में बढ़ोतरी होती जा रही है. बड़ी परेशानी यह भी कि पिछले दो महीने से राशन सरकारी राशन दुकानों से नियमित नही मिल रहा था. मजबूरी में उन्हें 35, 40 रुपये केजी बाजार से खरीद कर खाना पड़ा, जो गरीब लोगों के लिए अभी के समय मे बहुत ही मुश्किल हैं. खेती से निराश लोग मजदूरी करने के लिए मजबूर हैं. बड़ी संख्या में शहर के विभिन्न अड्डों पर औरत मर्द मजूरी की आस में जुटते हैं और उनकी मजबूरी का फायदा उठा कर कम से कम मजदूरी देकर काम करवाना चाहते हैं.
कुल मिला कर गरीबो की स्थिति बहुत खराब है और इस बार धान की फसल के न होने से उनका जीवन और कठिन होने वाला है. विडंबना यह कि इस कठिन वक्त में राज्य में सरकार बनाने बिगाड़ने का खेल चल रहा है. गरीबों की सुध लेने वाला कोई नहीं. सरकार तत्काल कुछ ठोस कदम नहीं उठाती तो इस बार गरीब किसानों को अकाल मृत्यु का शिकार होना पड़ सकता है.