एनडीटीवी के बयान के आधार पर
एनडीटीवी एकमात्र एक ऐसा न्यूज चैनल बन गया है जिसे तरक्कीपसंद लोग आज कल देखते हैं जिसकी जान हैं रवीश कुमार का ‘प्राईम टाईम’. इधर चर्चा है कि यह टीवी चैनल भी बिकने जा रहा है और खरीदने वाले हैं अडानी. जाहिर है इससे इसके प्रसंशकों को गहरा झटका लगा है.
यह सवाल बहुतों के जेहन में उठ रहा है कि किसी कंपनी को बिना उसकी इजाजत या सहमति के कोई कैसे खरीद सकता है. जरूर किसी तरह के दबाव में आ कर एनडीटीवी के मालिकों ने उसे बेचने का मन बनाया होगा. लेकिन एनडीटीवी द्वारा जारी बयान से स्थिति बहुत हद तक साफ हो चुकी है.
एनडीटीवी के बयान के अनुसार सन् 2000 में एनडीटीवी ने किसी कंपनी से लोन लिया था. शर्त यह थी कि लोन नहीं चुकाने की स्थिति में कंपनी का लोन एनडीटीवी के शेयर में बदल जाएगा..पर लोन को शेयर में बदलने के लिए एनडीटीवी की इजाजत जरूरी है.
इस तरह की शर्ते कारपोरेट जगत में आम बात है. कुछ लोग गिरवी रख कर कर्ज लेते हैं और निर्धारित समय पर कर्ज नहीं चुकाया गया तो गिरवी रखा गया सामान जब्त कर लिया जाता है. बैंक से कर्ज लेकर स्कूटर खूरीदें तो स्कूटर का मालिकाना उस वक्त तक बैंक के पास रहता है, जबतक कर्ज का भुगतान कर्जदार न करे.
एनडीटीवी वाले मामले में अडानी ने एनडीटीवी को कर्ज देने वाली कंपनी को ही खरीद लिया और एनडीटीवी को नोटिस जारी कर कर्ज को शेयर में बदल लिया और इस तरह 29.18 फीसदी शेयर का मालिक बन गया. लेकिन ऐसा करने के पहले अडानी ने एनडीटीवी से इजाजत नहीं ली, न कर्ज चुकाने की मोहलत ही दी.
इससे जाहिर है कि अडानी ने चोर दरवाजे से एनडीटीवी पर जबरिया कब्जे की योजना तो बनायी है, लेकिन वह इसमें कामयाब होगा, यह अभी से नहीं कहा जा सकता. एनडीटीवी के मालिक प्रणव राय आसानी से हार मानने वाले नहीं, लेकिन अडानी वर्तमान केंद्रीय सत्ता के दुलारे हैं, इसलिए संकट तो है ही.
प्रेस की स्वतंत्रता के हिमायती सभी लोग इस लड़ाई में एनडीटीवी के साथ हैं.