बेरोजगारी और उससे उपजी हताशा, नशाखोरी, उपभोक्तावादी संस्कृति और सबसे बढ़ कर औरत को भोग की वस्तु समझने की सामंतवादी सोच ने यौन उत्पीड़न की घटनाओं को बेलगाम कर दिया है. बलात्कार और उसके बाद हत्या करने की इस नई प्रवृत्ति ने तो सकते में डाल दिया है. सरकार के सारे कानून, स्वयंसेवी संस्थाओं की कोशिशें एर्व समाज में महिलाओं की सक्रियता बढ़ने के बावजूद हम आये दिन एसे घटनाओं से रूबरू हो रहे हैं. नाम, स्थान, उम्र, तिथि भले ही बदल जाये, पर क्रूर पुरुष मानसिकता नहीं बदली. कठुआ की घटना, बिलकिस बानो, ज्योति, अंकिता और न जाने कितने नाम.
अंकिता भार्गव की हत्या से आक्रोशित प्रदर्शनकारियों ने ़ऋशिकेश भद्रीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग को आठ घंअे तक जाम रखा. वे हत्यरों की गिरफ्तारी और मुआवजे की मांग कर रहे थे. उत्तराखंड के पौड़ी स्थित रिजार्ट होटल में अंकिता काम करती थी. कुछ दिनों से उस पर होटल मालिकों द्वारा आपत्तिजनक काम करने का दबाव बनाया जा रहा था. इससे इंकार करने पर तीन लोगों ने उसे अगवा कर मारा पीटा और नदी में फेंक दिया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट बताता है कि मृत्यु तो डूबने से हुई, लेकिन शरीर पर चोट के निशान भी थे. रिजार्ट होटल पर बुलडोजर चला कर साक्ष्य मिटाने की कोशिश की गयी. स्वतःस्फूर्त जन आक्रोश 2012 में हुए पारा मेडिकल छात्रा ज्योति पर हुए सामूहिक बलात्कार एवं हत्या से उठे जनाक्रोश की याद दिला रहे हैं. उस घटना के बीते दस वर्ष हो गये, लेकिन हम वहीं के वहीं खड़े हैं. आखिर क्यों?
पारा मेडिकल छात्रा ज्योति की हत्या के बाद भी जन सैलाब उमड़ा था. लगा कि समाज महिलाओं के हित में खड़ा है. निर्भया कांड के बाद गठित वर्मा आयोग की सिफारिशों को लागू न करना इस बात का संकेत है कि सरकार इस मुद्दे पर गंभीर नहीं है. वह इसे महिलाओं की समस्या तक सीमित मानती है. जब तक औरतों की यौनिक अत्याचार को समाज की समस्या नहीं समझी जायेगी, तब तक बलात्कारियों के प्रति नफरत की भावना नहीं आयेगी, तब तक इसका समाधान नहीं होगा. पुरुष प्रधान समाज में औरत को भोग का सामान मान लेने के कारण बलात्कारी ग्लानि या गुस्से का शिकार नहीं होता है, बल्कि पीड़िता का जीवन ही बिखर जाता है. उसे समय पर न्याय भी नहीं मिल पाता है.
वैसे, इस दिशा में थोड़ा सुधार दिख रहा है. गिरफ्तारियां हो रही हैं और सजा भी दिया जा रहा है. लेकिन पिछले दिनों हमने देखा है कि बिलकिस बानों के केस में बलात्कारियों के छूटने पर फूल माला से उनका स्वागत किया गया और मिठाईयां भी बांटी गयी. इससे साबित होता है कि समाज की मानसिकता में कोई बदलाव नहीं आया है.
उम्मीद बस इतनी कि भ्रूण हत्या से लेकर दहेज हत्या, डाईन हत्या, आॅनर किलिंग, बलात्कार के बाद हत्या, शक के आधार पर प्रेमी द्वारा हत्या, जबरिया प्रेम प्रदर्शन और फिर हत्या जैसे अत्याचारों को सहने के बावजूद महिलाओं का हौसला नहीं टूटा है. वह अभी भी जीवन के हरेक क्षेत्र में आगे बढ़ने और स्वाबलंबन के जद्दोजहद में जुटी है. सेना, साहित्य, खेल, व्यापार जैसे हर क्षेत्र में विपरीत परिस्थितियों में भी वह आगे बढ़ रही है.