हम जानते हैं कि झारखंड राज्य खास कर आदिवासियों के नाम से जाना जाता हैं. यहाँ के जंगल, जमीन, खेती बारी को आदिवासियों ने सदियों से बचा कर रखा था. चूंकि उनके जमाने में जमीन न तो व्यक्तिगत संपत्ति ही मानी जाती थी और न खरीद फरोख्त की वस्तु, इसलिए जमीन की कोई ज्यादा कीमत भी नहीं थी.

लेकिन बहिरागतों के प्रवेश और शहरों के विकास के साथ आदिवासी जमीन की कीमत आसमान छूने लगी है और जमीन माफियाओं के लिए यह बड़े मुनाफे का धंधा बन गया है. जगह-जगह दलाल पैदा हो गये हैं जो गरीबी और किसी अन्य मजबूरी का फायदा उठा कर आदिवासी जमीन को बेचने में लग गये है. जमीन को इस तरह खत्म कर रहे है, कि अब बचाना मुश्किल सा हो रहा है.

वे आदिवासी गांव, शहर की आदिवासी बस्तियों के आस पास जगह-जगह गैर-आदिवासियों को बसा रहे हैं. दुखद बात यह हैं कि कुछ ब्रोकर आदिवासी है, जो आपने ही लोगों की जमीन को बेचने से बाज नहीं आ रहे. इस धंधे में जमीन मालिक को तो बहुत कम पैसा मिलता है, ज्यादा पैसा जमीन माफिया और दलाल खा जाते हैं.

और अब तो वे गैर मजरुआ जमीन को भी बेचने के फिराक में रहते हैं. वैसी जमीन जो आदिवासी गांवों, बस्तियों के करीब है और जिसका उपयोग आदिवासी सदियों से धार्मिक या सामाजिक कामों में करते आ रहे हैं, उसे भी बेच देने की जुगत में रहते हैं. कहा जाए तो आदिवासियों का शोषण होता ही है अब उसकी जमीन की भी लूट हो रही है.

कुछ ब्रोकर आदिवासियों का मसना स्थान, पूजा स्थान को भी छोड़ नही रहे है. हाल में एक ऐसी ही धटना देखने को मिली जिसका लोगों ने मिल कर विरोध किया. हथिया गोंदा, झिरगा टोली की घटना है, जहां पर 0.6 डिसमिल जमीन है. सदियों से उक्त जमीन का स्थानीय आदिवासियी छठी, मसना पूजा इत्यादि के लिए उपयोग करते आ रहे हैं. पर आदिवासी ब्रोकर ने ही उस जमीन को बेच दिया बड़ी रकम लेकर.

जमीन की बिक्री कर दलालो ने उस पर मंदिर स्थापित करने के लिए काम शुरू कर दिया. तभी गांव वालों को खबर मिली. गांव की महिलाएं एकजुट होकर काम रोकवाने पहंुची. एक दूसरे से बहस हुवा ओर काम बंद कर दिया गया. फिर गांव के सभी लोगों ने बैठक कर फैसला किया कि इस जमीन को हमे बचाना होगा, क्योंकि ये हमलोग का मसना स्थान है. आदिवासियों का हर तरह का धार्मिक और सामाजिक संस्कार पूजा आदि वहीं पर होता हैं. फिर एक बोर्ड खरीद कर उसमे लिखा गया कि यह स्थान पूजा के लिए हैं, ओर वार्ड पार्षद को बुला कर वहाँ पर सरना झंडा ओर बोर्ड लगा दिया.

अब यहां तो आदिवासियों ने संगठित हो कर फिलहाल जमीन दलालों को रोक दिया है, लेकिन जमीन और दलाल पूरे इलाके में सक्रिय हैं. आदिवासियों को हर जगह सतर्क रहना होगा और एकजुट होकर जमीन लूट के इस तरह के प्रयासों को रोकना होगा. वरना न अपनी जमीन बचेगी और न संस्कृति. ब्रोकर सभी आदिवासियों को लूट कर खुद अमीर बन जायगे ओर बाकी लोग जहाँ है वही मजदूरी खटते रह जायेंगे.

एक तरफ से देखा जाए तो अब पूरे झारखण्ड राज्य में आदिवासी जमीन कि लूट और अवैध तरीके से खरीद विक्री हो रही हैं, आदिवासियों के धार्मिक और सामाजिक जमीन, सरना स्थल,, मसना स्थल, जतरा टांड़ अत्यादि को प्रत्येक गांव में चिन्हित कर इन सभी जमीनों को सरकार के द्वारा विशेष सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिए.