ऋषि सुनक के ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बनते ही भारत में हर्षोल्लास फैल गया, क्योंकि सुनक भारतीय हैं और हिंदू भी है. वैसे, भारत के लोग भारत में रहते भारतीय नहीं रह जाते. वे या तो हिंदू होते हैं, मुसलमान होते हैं या ईसाई. नही ंतो फिर ब्राह्मण, राजपूत बैरह-बगैरह होते हैं. लेकिन विदेश जाना पड़ा या विदेशों में रह रहे हों तो वे ज्यादा भारतीय हो जाते हैं.

सुनक के प्रधानमंत्री बनते ही हमारे देश में यह भी बहस छिड़ गयी कि ब्रिटेन की तरह हमारे देश में भी कोई अल्पसंख्यक उंचे पदों पर पहुंच सकता है? तो जवाब देने वाले तुरंत कहते हैं कि क्यों नहीं. हमारे देश में कई मुस्लिम राष्ट्रपति बने जो देश का सर्वोच्च पद है. लेकिन हम सब यह भी जानते हैं कि राष्ट्रपति का पद शोभा का पद होता है जैसे इंग्लैंड में राजा का. प्रधानमंत्री के पद पर कोई अल्पसंख्य नहीं पहुंचा.

एक राजनेता ने यह भी कहा कि किसी भी देश में भारतीय प्रधानमंत्री भी बन जाये तो इस देश का कल्याण नहीं हो सकता. यह बात शायद प्रधानमंत्री मोदी द्वारा सुनक को बधाई देने के साथ साथ दोनों देशों के बीच एफटीआई में सुधार की आशा जताये जाने पर कही गयी थी.

ब्रिटेन के चुनाव के समय बहसों में सुनक हमेशा लिज से आगे रहे. लेकिन अंतिम बहस के बाद लिज ही ब्रिटेन की प्रधानमंत्री बन गयी. इसके पीछे का कारण यही था कि सुनक उस देश में अल्पसंख्यक हैं और रंग भी गोरा नहीं है. इंग्लैंड के लोग खास पर कंजरवेटिव पार्टी आपनी परंपराओं तथा धर्म का कट्टर समर्थक हैं और वे हमेशा गोरे व्यक्ति को ही देश के प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं.

लिज के बाद सुनक अल्पसंख्यक और हिंदु होते हुए भी ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बनाये गये तो उसका मुख्य कारण उनकी योग्यता ही थी. उन्होंने अपनी इस योग्यता से ही बोरिस जाॅनसन की कैबिनेट में वित मंत्री के रूप में कोविड के समय इंग्लैंड की अर्थ व्यवस्था को स्थिर रखा था. इंग्लैंड की संसद ने देश की अर्थ व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए सुनक को ही सबसे योग्य व्यक्ति समझा. ब्रिटेन में एक बार फिर परंपराओं और धर्म के सामने प्रजातंत्र उंचा साबित हुआ.

यह भी कहा जा सकता है कि संवैधानिक राजतंत्र होते हुए भी वहां सही मायनों में लोकतंत्र है. भारत में तो बहस इस बात पर छिड़नी चाहिए कि इंग्लैंड का गुलाम रहा भारत उसकी नकल करते हुए ही शासन व्यवस्था कायम की है तो क्यों नहीं समझ सका कि लोकतंत्र का मतलब जनता से वोट लेकर शासन पर काबिज होना और अपनी मनमानी करना नहीं है. हमारे देश में भी बहुत सारी समस्यायें हैं. आर्थिक खाई बहुत गहरी है.

सरकार एक ओर गरीबों को चुप कराने के लिए रेवड़िया बांटती है तो दूसरी और विकास के नाम पर अमीरों को और अमीर बना रही है. भयानक महंगाई और बेरोजगारी है. इन समस्याओं का समाधान निकालने के बजाय लोगों में धार्मिक उन्माद फैलाया जा रहा है. जिन कानूनों को अंग्रेजों ने बनाया, उन्हें भी अपने स्वार्थ में सरकार उपयोग कर रही है.

इसलिए यदि प्रजातंत्र को बचाना है तो सरकार या राजनीतिक दल कुछ नहीं करेंगे. प्रजा को ही आगे आना है. बहकावे में न आ कर सही व्यक्ति का चुनाव कर प्रजातंत्र को बचाना है. यही सीख हमें इंग्लैंड के प्रजातंत्र से सीखना है.