एमरजंसी के बाद जब इंदिरा गांधी ने संसदीय चुनाव कराने का फैसला किया तो वह चाहती थी कि दक्षिण बिहार के शीर्ष आदिवासी नेता झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन अपनी पार्टी का विलय कांग्रेस में कर दें. शिबू सोरेन ने यह तो स्वीकार नहीं किया लेकिन वे इंदिरा गांधी के बीस सूत्री कार्यक्रम के समर्थक बन गये. उस वक्त राजनीति में जगन्नाथ मिश्रा और ज्ञानरंजन बीच की कड़ी बने थे और प्रशासनिक अधिकारी के रूप में केबी सक्सेना. शिबू सोरेन ने कांग्रेस में विलय के बाद जयपाल सिंह और उनकी झारखंड पार्टी का हश्र देखा था और इसलिए उन्होंने झामुमो का विलय कांग्रेस में नहीं किया, हालांकि कांग्रेस के साथ मिल कर राजनीति करने की कोशिश भी की, जिसका परिणाम झामुमो का विभाजन हुआ, क्योंकि विनोद बिहारी महतो और कामरेड एके राय कांग्रेस के साथ मिल कर राजनीति के सख्त खिलाफ थे.

अब केंद्र में भाजपा काबिज है. मोदी शासन का दौर चल रहा है. भाजपा भी झामुमो से वही चाहती है. पहले तो उसने बाबूलाल को खड़ा कर झामुमो को समाप्त करने की कोशिश की जिसमें असफल रही. फिर आजसू की मदद से झामुमो को सत्ता से दूर रखने का प्रयास किया. उसमें वह भी असफल रही. रघुवर दास के नेतृत्व में पूरे पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा कर सरकार चलाया. लेकिन पिछले चुनाव में बुरी तरह असफल हुई. अब उनकी कोशिश यह है कि झामुमो राजनीति में रहे तो कांग्रेस का दामन छोड़ भाजपा के साथ मिल कर राजनीति करे और उनकी कठपुतली सरकार चलाये. मेरा आकलन यही है कि पिछले कुछ महीनों से राज्यपाल और केंद्रीय एजंसियों की मदद से भाजपा के शीर्ष नेता उसी बात के लिए मशक्कत कर रहे हैं.

चुनाव आयोग के पास भाजपा की लाभ के पद वाली शिकायत, चुनाव आयोग की राज्यपाल को चिट्ठी, राज्यपाल का चिट्ठी को दबा कर बैठे रहना, इसी बीच सर्वोच्च न्यायालय का उस मामले में हेमंत सोरेन के पक्ष का फैसला. तो लाभ के पद वाले मामले का तो पटाक्षेप हो गया, अब माईनिंग लीज घोटाला जो एक दशक से चला आ रहा है, उसमें हेमंत सोरेन को घेरने की कोशिश. दो दिन पहले ईडी दफ्तर में हेमंत सोरेन का बलुावा. नौ घंटे की पूछ ताछ और फिर सन्नाटा. न हेमंत सोरेन खुल कर कुछ बोले और न ईडी ने कोई त्वरित कार्रवाई की या इतने अहम मुद्दे पर प्रेस से कुछ कहा. हां भाजपा नेताओं को लगता है कि उनकी तरफ से कुछ जानकारी लीक कर दी गयी. लेकिन उनमें कोई जान नहीं.

बाबूलाल धमाके की तरह जो बता रहे हैं, वह फुसफुस पटाखा है. एक तो यह कि इस मामले में ईडी द्वारा गिरफ्तार लोगों से हेमंत सोरेन का संपर्क रहा है और एक के यहां एके 47 राईफल की बरामदी हुई, वह हेमंत के सिक्युरिटी गार्ड का था. अब करोड़ों करोड़ रुपये बैंक से लेकर पलायन कर जाने वाले करीबन सभी भगोड़ों का भाजपा नेताओं से संपर्क रहा है, तो इसका क्या किया जाये? यदि मामला सचमुच इतना ही गंभीर है तो ईडी की तरफ से कार्रवाई होनी चाहिए.

लेकिन लगता है कि यह सब बस दबाव की राजनीति के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है. हां, इसी अफरातफरी में यदि यूपीए में फूट पड़ जाये, कुछ विधायक पाला बदल ले, तो यह भी राजनीति हो सकती है. उसकी कोशिश की जा चुकी है. तीन विधायकों का कोलकाता में गिरफ्तारी से उसी षडयंत्र का खुलासा हुआ था.

यह एक मनोवैज्ञानिक लड़ाई है. अभी युद्ध विराम वाली स्थिति है. गुजरात सहित कुछ राज्यों-नगरपालिकाओं के चुनाव परिणाम आने के बाद भाजपा नये सिरे से झारखंड की लड़ाई को आगे बढ़ायेगी. हेमंत अपने सिद्धांतों पर कितने दृढ़ रहते हैं और यूपीए कितना एकजुट, इसी पर इस सरकार का भविष्य टिका है. यह तो साफ है कि भाजपा इस सरकार का काम काज सहज रूप में नहीं चलने देगी. यूपी की एकजुटता और वंचित जनता की गोलबंदी ही हेमंत के काम आयेगी.