संघ परिवार से जुड़े संगठन कालेज कैंपस में भी धर्म की राजनीति करने से बाज नहीं आते. क्या हर भीड़ जगहो पर जय श्रीराम का नारा लगाना जरूरी है?

यह हाल की घटना है. हमारे कॉलेज कैम्पस में रानी लक्ष्मीबाई जयंती 19-नवंबर 2022 को स्त्री शक्ति दिवस मनाया जा रहा था. वहां विभिन्न वक्ताओं द्वारा झांसी की वीरांगना रानी के बारे बताया जा रहा था. चूंकि इस दिवस को महिला शक्ति दिवस के रूप में मनाया जा रहा था, इस लिए वहां उपस्थित सभी महिलाओं को सम्मान देते हुवे उनके ललाट पर टीका व माथे पर रानी लक्ष्मीबाई के जैसा पगड़ी पहनाया जा रहा रहा था. उन पर लिखी कविताएं, जैसे खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी, पढ़ा जा रहा था.

समयानुकूल नारे भी लग रहे थे. ‘आज की महिला कैसी हो, झांसी रानी लक्ष्मीबाई जैसी हो’, साथ ही ‘वन्देमातरम’, ‘भारत माता की जय’ आदि नारे भी सभी उत्साह पूर्वक लगा रहे थे. माहौल शांत था. सभी कार्यक्रम में अच्छे से अपनी भूमिका निभा रहे थे. तभी लड़को की भीड़ से अचानक आवाज आने लगी ‘जय श्रीराम’, ‘जय श्रीराम’. वह भी जोर शोर से.

जाहिर है, वहां उपस्थित कुछ अन्य लोग भी उनके सुर में सुर मिला कर ‘जय श्रीराम’ का नारा लगने. चूंकि वहां विद्यार्थी परिषद के छात्र अधिक संख्या में मौजद थे, इसलिए देर तक जय श्रीराम का नारा लगता रहा. लेकिन ऐसे भी छात्र और छात्रायें वहां थीं जो इतिहास में वर्णित वीरांगना स्त्री रानी लक्ष्मी बाई की जयंती वहां मनाने आये थे.

राम से किसी को ऐतराज नहीं. लेकिन जय श्रीराम का नारा कुछ खास राजनीतिक दलों और संगठनों से जुड़ चुका है. कई छात्र संगठन ऐसे हैं जिन्हें इस नारे से परहेज है. इसी तरह सभी धर्मावलंबियों के लिए यह नारा अब सहज नहीं रहा. वैसे भी कालेज कैंपस पढ़ने की जगह है, ज्ञान अर्जन की जगह है. धर्म के अखाड़े व राजनीति की जगह नहीं. हमे अपना धर्म को घर तक ही रखना चाहिए या जहाँ जरूरी है वही पर होना चाहिए. हम जानते है कि कॉलेज कैम्पस हो या स्कूलों व अन्य संस्थाओं में हिन्दू, जैन, बौद्ध, सिख, ईसाई, इस्लाम, सरना सभी धर्म के लोग रहते हैं.

वैसे भी, लक्ष्मीबाई स्त्री शक्ति की प्रतीक हैं और उनकी जयंती मातृ शक्ति दिवस के ही रूप में मनायी जा रही थी. वहां भी जय श्रीराम का उद्घोष करने लगे. कम से कम मां सीते का नाम भी उसमें जोड़ देते! कुल मिला कर लक्ष्मीबाई के नाम पर समरसता और आनंद का जो वातावरण बन रहा था, वह भंग हो गया.