हेमंत सोरेन ने प्रधानमंत्री को एक खुला पत्र लिख कर कहा है कि ग्राम सभाओं के इस अधिकार को न छीनंे जिसके तहत वनों की कटाई के पहले ग्राम सभा की अनुमति जरूरी था. यह वन अधिकार कानून, 2006, की मूल भावना के प्रतिकूल होगा. ज्ञातव्य है कि केद्र सरकार ने उक्त कानून की नियमावली में संशोधन कर यह अधिसूचना जारी की है कि अब वनों की कटाई के पहले ग्राम सभाओं की अनुमति की जरूरत नहीं है. इस संशोधन को वन संरक्षण नियमावली 2022 की संज्ञा दी गयी है.
महत्वपूर्ण बात यह कि वनाधिकार काूनन, 2006, में किये गये इस संशोधन का विरोध लगभग सभी विपक्ष द्वारा शासित राज्यों में पर्यावरण से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता और पर्यावरणविद् कर रहे हैं. ओड़िसा, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ समेत केई अन्य राज्यों के आंदोलनकारी इस मुद्दे पर इस संशोधन के बाद से मुखर है. इस संशोधन के लागू हो जाने से ग्राम सभाओं की शक्तियां सीमित हो जायेंगी और राज्य सरकारें भी चाह कर भी विकास के नाम पर वनों की होने वाली कटाई को रोकने में अक्षम होगा.
सूत्रों का कहना है कि गंभीर पर्यावरण संकट और ग्लोबल वार्मिंग से जूझ रही दुनियां की रहनुमाई का दावा करने वाले मोदी और उनकी सरकार संसद के आगामी शातकालीन सत्र में इस संबंध में एक विधेयक भी लाने वाली है. यदि ऐसा हुआ तो यह विनाशकारी होगा. विकास के नाम पर जंगल की कटाई को रोकना असंभव होगा और ग्राम सभाएं मूक दर्शक बन कर रह जायेंगी. इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए हेमंत सोरेन ने मोद को एक खुला पत्र लिखा है.
उद्योग धंधे व खनन आदि के लिए वनों की कटाई के लिए अक्सर यह तर्क दिया जाता है कि उद्योग धंधों या माईनिंग के लिए जितने भी जंगल कटते हैं, उतने ही जंगल नयी जगह में लगाने की जिम्मेदारी उन प्रतिष्ठानों को दी जाती है. एक तो इस पर अमल नहीं होता, दूसरे हम इस तथ्य को भूल जाते हैं या अपनी मूढ़ता में नजरअंदाज कर जाते हैं कि प्राकृतिक जंगल सिर्फ बचाये जा सकते हैं, लगाये नहीं जा सकते.
हम यह भी अनदेखा कर जाते हैं कि वनों के विनाश से सिर्फ प्रकृति और पर्यावरण को क्षति नहीं पहुंचती, जंगल पर ही पूरी तरह से निर्भर अनेक जनजातियां, जीव जंतु मिटने के कगार पर पहुंच जाती हैं. सड़क निर्माण, बंड़े बांध व शहरीकरण से वैसे भी वनों का काफी विनाश हो चुका है और अपना देश भी गंभीर पर्यावरणीय संकट से गुजर रहा है. ऐसे समय में वनाधिकार कानून में इस तरह का संशोधन या ग्राम सभाओं को निष्क्रिय करने की साजिश घातक होगी.
हेमंत सोरेन ने सही समय पर सही कदम उठाया है और सामाजिक संगठनों और झारखंडी जनता को उनके पीछे गोलबंद होकर कारपोरेट पोषक इस मोदी सरकार का विरोध करना होगा, तभी केद्र सरकार मानेगी. वरना, वह अपनी मनमानी करने से बाज नहीं आयेगी.