खबरों की खबर.. एनडीटीवी बिक गया! देश के सबसे अमीर अडानी के हाथों. यानी रवीश कुमार को औकात में ला दिया गया. और यह संदेह करने का पर्याप्त कारण है कि दरअसल यह सारा खेल ही इसी मकसद से किया गया है. हालांकि गौतम अडानी ने कहा है कि उनका इरादा एक ग्लोबल मीडिया हॉउस खड़ा करना है. यह भी कि वे मानते और चाहते हैं कि चैनल सरकार की गलतियों के खिलाफ आवाज उठाये, लेकिन सरकार कुछ अच्छा करती है, तो उसकी प्रशंसा भी करनी चाहिए.
कितने उच्च विचार हैं! बेशक मीडिया को इसी तरह निष्पक्ष होना चाहिए. लेकिन इसी उद्योग घराने के हाथों बिकने के बाद ‘ई टीवी’ के ‘न्यूज18’ बनने पर तो उसमें उलट ही बदलाव देखने को मिला. तो अभी प्रतीक्षा कीजिये कि एनडीटीवी कितना ‘संतुलित’ रह पाता है. अधिक संभावना या आशंका तो उसके उसी राह पर चलने की है, जिस पर बहुतेरे चैनल चल रहे हैं, यानी एक और ‘गोदी मीडिया’ चैनल.
किसी को पसंद हो या न हो, रवीश कुमार- कल तक- हिंदी (इलेक्ट्रानिक) मीडिया का एक खास नाम था. शायद आगे भी रहेगा, बशर्ते कि वह भी चैनल के मालिक प्रणव रॉय और राधिका रॉय के साथ बिक न गए हों. वैसे कभी प्रखर- निर्भीक पत्रकारिता के प्रतीक रहे प्रणव रॉय को भी क्या दोष दिया जाये. हर कोई रामनाथ गोयनका तो नहीं हो सकता.
जो भी हो, रवीश को नापसंद करने वाले बहुतेरे लोग भी एनडीटीवी का ‘प्राइम टाइम’ देखते थे. एक तो सत्ता विरोधी मीडिया से सही खबर मिलने की गुंजाइश रहती है, दूसरे इसलिए कि रवीश की कोई गलती ढूंढ सकें, जिस आधार पर उसे गाली दे सकें, उसे पक्षपाती और बायस्ट बता सकें.
ऐसे अधिकतर लोग सरकार और व्यवस्था की कमियां गिनाते रवीश के चुभते सवालों से परेशान लोग थे, जो तटस्थ होने का दावा करते हैं, मगर… रवीश के कथित एकांगीपन की तुलना वे अर्णव गोस्वामी और सुधीर चैधरी जैसों से करते हैं! एक सत्ता प्रतिष्ठान की खुलेआम निर्लज्ज चापलूसी करता है, नफरती अभियान में शामिल है और दूसरा हर असहमत आवाज को कुचलने पर आमादा सत्ता की मुखालफत करने की जोखिम उठा रहा है. और आप दोनों को एक ही तराजू पर तौल रहे हैं, तो जरूर आपके पैमाने में खोट है.
मोदी मुरीदों के लिए तो खैर रवीश कुमार एक गाली ही है. वे उसे खुलेआम मां-बहन की गाली देते भी रहे. उनके फेसबुक पर जाकर. और ऐसे ‘संस्कारी लोग भारत को विश्व गुरु और ‘हिंदू राष्ट्र’बनाने के अभियान में लगे हैं.
मगर कमाल कि संघ-भाजपा को नापसंद करने वाला एक समूह भी रवीश कुमार और एनडीटीवी को गाली देता है. इसलिए कि रवीश कुमार जन्मना ब्राह्मण है! उनका आरोप है कि इस चैनल पर ब्राह्मणों का कब्जा है.
गजब! मुझे खुशी है कि अब भी कुछ ब्राह्मण ऐसे हैं, जो साहस के साथ इस निरंकुश निजाम के खिलाफ डटे हुए हैं. इस तरह एक हद तक सत्ता की आरती उतार रही अपनी बिरादरी के ‘पाप’ धो रहे हैं.
एनडीटीवी के बिकने के बावजूद यदि रवीश कुमार भी न बिक गए हों, तो रवीश नाम का झंडा हमेशा बुलंद रहेगा. पत्रकारों की आनेवाली पीढ़ियों (जो सचमुच पत्रकार बनना चाहेंगे) के लिए एक मिसाल बना रहेगा. वैसे एनडीटीवी के बिकने से अब हम जैसों का टीवी देखने का समय बचेगा. इसलिए कि और कोई चैनल शायद ही देखते थे. अब वह भी नहीं देखना पड़ेगा.