आजादी के बाद संविधान बनाने में दो वर्ष, ग्यारह माह और अठारह दिन लग गये. संविधान सभा की प्रारुप समिति के अध्यक्ष डा. अंबेदकर ने इसे 26 जनवरी 1950 को देश को समर्पित किया. आरंभ में 26 नवंबर को राष्ट्रीय कानून दिवष के रूप में मनाया जाता था. 26 नवंबर 2015 में, अंबेदकर की 125 वीं जयंती से इसे संविधान दिवस के रूप में मनाया जाने लगा. यह हमे स्वतंत्र भारत का नागरिक होने का एहसास दिलाने के साथ-साथ हमें संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकारों की भी याद दिलाता है. इस अवसर पर हम कानून के पालन का शपथ लेते हैं.

संविधान दिवस का उद्देश्य भारत के नागरिकों को इस किताब से परिचित कराना है जो गीता, कुरान, बाईबल, गुरुग्रंथ इत्यादि को मानने और नहीं मानने वालों को भी गरिमा के साथ जीने का अधिकार देता है. यह देश में गंगा जमुनी संस्कृति को अक्षुण्य रखने की गारंटी करता है. सबको समानता का अवसर प्रदान करता है ताकि सभी अपनी क्षमता, योग्यता के अनुसार गरिमा के साथ जी सके. यह देश की शासन व्यवस्था को लोकतांत्रिक बनाता है.

इस दिन स्कूलों कालेजों एवे सरकारी कार्यालयों में इसका पाठ किया जाता है. फिर भी हम इसके मर्म को समझ नहीं पाते हैं अन्यथा देश की ऐसी दुर्दशा नहीं होती. आजदी के इतने वर्षों बाद भी देश में धर्म, जाति, लिंग, संप्रदाय के भेदभाव मौजूद है. कभी दलित बच्चे को मंदिर के घड़े का पानी पी लेने पर पीटा जाता है. कभी किसी औरत को डाईन के नाम पर मार दिया जाता है. कभी किसी लड़की को दहेज कम लाने या अपनी मर्जी से विवाह कर लेने पर प्रताड़ित किया जाता है.

लोकतंत्र में सभी को अपना पक्ष रखने की आजादी है, लेकिन सरकार की आलोचना करने वालों पर राजद्रोह का आरोप लगा दिया जाता है. बड़ी आबादी को दो वक्त की रोटी नहीं मिलती और करोड़ों का घोटाला होता है. क्या आजादी के लिए लड़ने मरने वालों ने ऐसे ही भारत का सपना देखा था? संविधान की प्रस्तावना के पाठ के साथ हमें एक जिम्मेदार और ईमानदार नागरिक बनने की भी कोशिश करनी चाहिए.

देश में लोक कल्याण के लिए विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका का गठन इस प्रकार किया गया है कि शासन व्यवस्था में चेक एंड बाईलेंस बना रहे. बगैर पढ़े, बगैर समझे लोग भारत के संविधान का मजाक उड़ाते हैं, जिस तरह गांधी को बगैर पढ़े, समझे लोग मनमाने ढ़ंग से उन पर व्यंग्य करते रहते हैं, लेकिन जब मुसीबत आती है तो संविधान और गांधी की ही छतरी खोल लेते हैं. हमें नहीं भूलना चाहिए कि लोकतंत्र के कारण ही देश में सबसे निचले पायदान पर बैठा व्यक्ति संविधान प्रदत्त अधिकारों का उपभोग कर रहा है और देश के सर्वोच्च पद तक पहुंच पा रहा है और इसकी गारंटी हमारा संविधान ही करता है.