हम सब यह देखते आ रहे हैं कि वर्ष सिर्फ समय को मापने की एक पद्धति भर है, उसके बदलने से कुछ नहीं बदलता. न कालचक्र बदलता है, न जीवन की परिस्थितयों में कोई बदलाव आता है. बावजूद इसके नये वर्ष को लेकर खाया, पीया अधाया समाज, मध्यम वर्ग और समाज का अभिजात तबका कुछ अतिरिक्त उत्साह से भर जाता है. उसके स्वागत के लिए सड़कों पर इकट्ठा हो नाचता गाता है, पटाखें छोड़ता है, पीने वाले नये वर्ष के जश्न के नाम पर जमकर दारु पीता है. स्थितियां वीभत्स रूप न ले लें तो इसमें कोई हर्ज नहीं. जीवन की एकरसता को तोड़ने का यह माध्यम बन जाता है. वैसे भी, आर्थिक रूप से संपन्न तबके और नव धनाढ़्य वर्ग को अपनी अमीरी के प्रदर्शन का बहाना भर चाहिए.

बहुत सारे लोग साल के अंत में कनफेसन करने लगते है. बेहद भावुक शब्दों में अपने बीते वर्ष के गुनाह, विफलताओं, वादाखिलाफों की चर्चा करने लगते हैं और अगले वर्ष के लिए संकल्प लेने लगते हैं. लेकिन ईमानदारी और दृढ़इच्छाशक्ति के अभाव में नव वर्ष के आगमन पर लिए गये अधिकतर संकल्प अल्पजीवी साबित होते हैं और बहुत जल्दी अगले वर्ष के आगमन तक के लिए सुशुप्तावस्था में चले जाते हैं.

तो क्या करना चाहिए?

नये वर्ष का स्वागत तो करना चाहिए लेकिन खुशी के अतिरेक में पागल नहीं हो जाना चाहिए. आडंबर से बचना चाहिए. रोजमर्रा के काम से थोड़ा अवकाश लेकर सैर सपाटा, यार दोस्तों से मिलना जूलना, प्रकृति के संसर्ग में कुछ समय बिता कर अपने को आने वाले समय के लिए तैयार करना चाहिए.

बीते साल के क्रिया कलापों का मूल्यांकन करना चाहिए और पिछली गलतियों से सबक हासिल कर आगे की कार्ययोजना बनानी चाहिए.

भारी भरकम संकल्प लेने के बजाय स्वयं के प्रति और दूसरों के प्रति ईमानदार रहने की कोशिश करनी चाहिए.

आत्मकेंद्रित होने से बचना चाहिए और अपने भविष्य की योजना में परिवार और समाज को हमेंशा ध्यान में रखना चाहिए.

और अंतिम बात, हमेशा उपर देखने से बचना चाहिए. कभी कभार अपने से नीचे सामाजिक आर्थिक अवस्था में जी रहे लोगों को, जिंदा रहने के लिए उनके अनवरत संघर्ष की तरफ भी देखना चाहिए. इससे आप हताशा का शिकार होने से बचेंगे.

सबों को नये वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं.