अब ऐसा हर शब्द इनके मुताबिक हिंदू धर्म के लिए अपमानजनक है! इनको कौन बताये, और इतिहास संबंधी अपने तमाम अल्प और विकृत ज्ञान के बावजूद इनको यह तो मालूम होगा ही कि हकीम खान सूरी भी एक पठान था, जो हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप का सेनापति था, जबकि अकबर की सेना का नेतृत्व राजा मान सिंह कर रहे थे! हकीम खान हरावल (सेना की सबसे आगे वाली पंक्ति) का नेतृत्व करते थे. ये मेवाड़ के शस्त्रागार के प्रमुख थे. हकीम खान सूरी हल्दीघाटी के युद्ध में लड़ते हुए शहीद हो गये थे.

इनको नहीं पता होगा कि ‘सरहदी गांधी’ के नाम से विख्यात खान अब्दुल गफ्फार खान भी पठान ही थे, जो विभाजन के विरोधी थे. हमने एक तरह से उन्हें पाकिस्तान में रहने को विवश किया, जहां अपने उदार खयालात के कारण उनको यातना भी झेलनी पड़ी? बाद में उन्हें मरणोपरांत ‘भारत रत्न’ सम्मान भी दिया गया.

हमारे हरदिल अजीज दिलीप कुमार (यूसुफ खान) भी पेशावर के और पठान ही थे, जो महान फिल्मकार राजकपूर के दोस्त और पड़ोसी भी थे.

कवि गुरु टैगोर की कहानी ‘काबुलीवाला’ के उस सहृदय पठान को कोई कैसे भूल सकता है! लेकिन जो लोग इतिहास के खास प्रसंगों और खास पात्रों को ‘खास’ मकसद से ही याद रखते हैं, ताकि माहौल को विषाक्त बनाये रखा जाये, उनको इतिहास की इन खुशनुमा सच्चाइयों से क्या फर्क पड़ता है!

जहां तक फिल्म में गेरुआ कपड़े में दीपिका के एक नृत्य-गीत का सवाल है, जिसे विरोध का बहाना बनाया गया है, तो अब तक सोशल मीडिया पर केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी सहित बहुतेरे ‘देशभक्त’ कलाकारों द्वारा पर्दे पर गेरुआ वस्त्र में फूहड़ नाच-गाने के वीडियो वायरल हो चुके हैं. मगर इनको क्या फर्क पड़ता है!

भले ही विश्व फुटबॉल में भारत की कोई हैसियत नहीं है, मगर अभी खबर छपी एक खबर में ‘गर्व’ से बताया गया कि जिन लगभग पांच सौ डिजिटल विशेषज्ञों के कारण कतर के आयोजन का सफल संचालन और प्रसारण हो सका, उनमें ढाई सौ के करीब भारतीय भी थे.

लेकिन उसी वर्ल्ड कप के फायनल के बाद मंच पर ट्राफी लेकर एक भारतीय अभिनेत्री दीपिका पादुकोण खड़ी नजर आयी, इस बात को भारतीय मीडिया ने लगभग इग्नोर कर दिया! ‘बायकाट पठान’ में लगे गिरोहों के लिए तो यह खबर मिर्ची लगने जैसी ही होगी.

दीपिका से इनकी अतिरिक्त चिढ़ का एक खास कारण भी है. इस नफरती और असहिष्णु माहौल में भी दीपिका ने जेएनयू मसले पर जारी प्रोटेस्ट का समर्थन करने का साहस दिखाया था. शायद उन्हें नहीं मालूम होगा कि सरकार से असहमति जताने का मतलब अब देशद्रोह और हिंदूद्रोह हो गया है. इसलिए कलाकार का नाम और मजहब कुछ भी हो, इनके लिए वे सभी ‘देशद्रोही’ हैं, जिनकी रीढ़ अब तक सीधी है और जो अब तक इनके सामने झुके नहीं हैं.

और हम इसी साहस के लिए दीपिका को सलाम करते हैं!