रांची विश्व विद्यालय के कॉलेजों में एक कोर्स के बीच में ही री-एडमीशन फीस की मांग की सूचना मिली है, अभी तक तो नहीं लिया गया है पर सभी अध्यापकों का कहना है कि जल्द ही री-एडमीशन शुरू हो जायेगा, उसके बीच अभी तक न समय पर एग्जाम हो रहा न ही रिजल्ट. इन सब बातों से छात्र बेहद परेशान हैं.
रांची यूनिवर्सिटी वर्षों से चलता आ रहा है. विश्वविद्यालय में रांची जिला के नाम पर एक ही कॉलेज था, जहां पहले बहुत ही कम फीस में शिक्षा उपलब्ध थी. सभी छात्र आसानी से पढ़ के निकल जाते थे. लेकिन हाल में इस कालेज का नाम बदल गया और नाम बदलाव के साथ साथ फीस भी बढ़ती गयी. रांची यूनिवर्सिटी को 2017 में डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी यूनिवर्सिटी का नाम दे दिया गया. नाम बदलने के साथ-साथ इसमें बहुत सारे बदलाव दिख रहे हैं, जिससे विद्यार्थियों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.
जैसे, पीजी का कोर्स 2 वर्ष का होता है, जिसमे शुरुआत में 7500-8000 तक लिया जाता हैं और हर सेमेस्टर में 1000. तो, चार सेमेस्टर का 4000. यह सब लेने के बाद अब जब सत्र पूरा होने के कुछ ही महीने रह गये हैं, उन्हें फिर से री-एडमीशन लेने की सूचना मिलती है. इससे गरीब छात्रों में काफी निराशा है. देश की अर्थव्यवस्था तो खराब ही हैं, गरीबांे को मजदूरी भी बहुत कम मिलती है. ऐसे में गरीब अभिभाचकों के जो बच्चे किसी तरह पढ़ रहे हैं, उनके लिए इतना पैसा जुटाना मुश्किल हो गया है.
प्राप्त जानकारी के अनुसार हर छात्र को री-एडमीशन फीस देना होगा और दो सेमेस्टर का 2000 हजार रुपये भी. गरीब छात्र कहां से लायेंगे इतने रुपये. बहुतों को तो पढ़ाई जारी रखना मुश्किल हो जायेगा.
विडंबना यह कि फीस तो बढ़ता जा रहा है लेकिन न समय पर परीक्षा हो रही है, न रिजल्ट आ रहा है. पिछली परीक्षा का रिजल्ट नहीं आया है और अगले सेमेस्टर की पढ़ाई शुरू हो गई. पिछले दो सेमेस्टरों के रिजल्ट का पता नहीं. इस बारे में जब छात्र प्राध्यापकों से पूछते हैं तो प्राध्यपाक ठीक से कुछ नहीं बता पाते. पहले दिसम्बर बोला गया था, अब जनवरी में आने की बात कही गयी, पर अभी तक रिजल्ट का कुछ पता नहीं. तीसरे सेमेस्टर की परीक्षा के बारे में जिक्र हो रहा है, पर रिजल्ट का नहीं. इससे छात्रों को काफी मानसिक परेशानी है.
पढ़ाई का भी हाल अच्छा नहीं. कक्षाएं कम होती हैं और किसी न किसी बहाने स्थगित कर दी जाती है. कुल मिला कर रांची विश्वविद्यालय की स्थिति दिनों दिन खराब होती जा रही है. पता नहीं गरीब छात्र अब पीजी की पढ़ाई के लिए कहां जायेंगे?