कहा जा रहा है कि कुछ ही वर्षों में भारतीय अर्थ व्यवस्था दुनिया की सबसे बड़ी अर्थ व्यवस्था हो जायेगी. लेकिन इस ओर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है कि इसी अर्थ व्यवस्था में धनी और गरीब के बीच की खाई चैड़ी होती जा रही है. आक्सफाम इंडिया ने अपने हाल के रिपोर्ट में इसी बात पर जोर दिया है. हालिया उनकी रिपोर्ट के अनुसार भारत की 21 अरबपतियों के पास शेष भारतियों से ज्यादा संपत्ति है.
यानि, पांच फीसदी भारतीय अरबपतियों के पास देश की कुल संपत्ति का 60 फीसदी संपत्ति है. कोरोना काल में इनकी संपत्ति में 121 फीसदी की वृद्धि हुई.
आक्सफाम इंडिया का रिपोर्ट स्वीटजरलैंड के दावोस में होने वाले सोशल फोरम में चर्चा का विषय रहेगा. इस रिपोर्ट में भारतीय अर्थ व्यवस्था की कई खामियों की ओर इशारा किया गया. रिपोर्ट के अनुसार भारत में 2020 में अरबपतियों की संख्या 102 थी, जो 2022 में बढ़ कर 166 हो गयी. भारत के 100 धनी व्यक्तियों की कुल संपत्ति 54.12 लाख करोड़ है, जो केंद्रीय बजट के 18 महीनें तक का खर्च है. यदि इन अरबपतियों की संपत्ति पर एक बार 2 फीसदी का टैक्स लगाया जाये तो देश के कुपोषितों को तीन वर्षों तक पौष्टिक आहार पर खर्च होने वाले 40423 करोड़ की पूर्ति हो जायेगी.
इस रिपोर्ट में इस बात पर जोर देकर कहा गया कि 2012 से 2021 तक पैदा की गयी संपत्ति में से 40 फीसदी देश की आबादी के मात्र 1 फीसदी लोगों के पास गयी और तीन प्रतिशत नीचे के 50 फीसदी जनता के पास गयी.
इन सारे तथ्यों को ध्यान में रख कर गरीब और अमीर के बच बढ़ती खाई को कम करने के लिए आक्सफाम ने भारतीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को सलाह दी है कि आगामी बजट में उन्हें ‘संपत्ति कर’ जैसे प्रगतिशील कर लगाना चाहिए, क्योंकि देखा गया कि तुलनात्मक रूप से गरीब ही टैक्स के रूप में ज्यादा पैसे दे रहा है. अब समय आ गया है कि संपत्ति कर के जरिये अमीरों से भी उनके हिस्से के पूरे कर को वसूला जाये. इससे असमानता को कम किया जा सकता हैै. वर्तमान में तोे केंद्रीय सरकार को 2021-22 में जीएसटी से प्राप्त रकम 14.83 लाख में से 64 फीसदी रकम नीचे के स्तर के 50 फीसदी जनता ने वस्तुओं और सेवाओं के टैक्स के रूप में चुकाया है और केंद्रीय सरकार इन्हीं करों में लगातार वृद्धि कर रही है. इसलिए संपत्ति कर में वृद्धि कर अमीरों से कर वसूली जरूरी है.
भारत की बड़ी आबादी ईमानदारी से टैक्स देकर भी गरीब बनी हुई है और मुट्ठी भर अरबपतियों की संपत्ति में साल दर साल वृद्धि होती जा रही है. यह बहुसंख्य गरीब जनता के प्रति अन्याय है. देश की अर्थ व्यवस्था चाहे जितनी उंचाई पर पहुंच जाये, यदि इसका लाभ देश के अंतिम जन तक नहीं पहुंचेगा तो ये सारे विकास अर्थहीन ही होंगे.