आदिवासियों के पेशे में लगातार बदलाव आ रहा है. वे खेती-बारी, जंगल, जमीन, बैल, बकरी, गाय, पालने से धीरे-धीरे वंचित हो रहे हैं. जमीन की बिक्री थम नही रही. गैर-आदिवासियों का आगमन तेजी से हो रहा है. आदिवासी की जमीन बिक रही है और वे खुद उस जमीन पर दिहाड़ी मजदूर बन कर काम कर रहे हैं. और भवन आदि बनने के बाद भी वही काम करेंगे. कुछ मजदूर बन कर, कुछ राज मिस्त्री बन कर, कुछ उनके मोटर का ड्राईवर बन कर और लड़कियां उनके यहां चाकर बन कर. यह सही है कि वे कठिन से कठिन परिस्थिति में भी हाथ पर हाथ धरे नहीं रहते, जिंदा रहने के समयनुसार कोई भी पेशा अपना लेते हैं, क्योंकि वे श्रम करके श्रमसार नहीं होते. लेकिन क्या नया जीवन उनको रास आयेगा?
समस्या बड़ी हो रही है. किसी को चिंता है, तो किसी को कोई चिंता नहीं. हम देख रहे हं,ै अपने आस-पास के इलाके, गांव, शहर, जहां पहले दूर-दूर तक खेत खलियान नजर आते थे, वे धीरे-धीरे लुप्त हो रहे हंैं. लोगों को खेती करने में अब कोई दिलचस्पी नही रही. गांव की बात नहीं जानती, शहर के बीच बसे आदिवासियों का यही हाल हैं. सरकार के कई कठोर कानून के बावजूद आदिवासी जमीन पर अवैध कब्जा रुक नही रहा, और न उसकी बिक्री. और समस्या यह भी है कि लोग अब खेती बारी भी छोड़ते जा रहे हैं. आदिवासी जीवन का मूलाधार कभी खेती थी, अब न खेत दिख रहे हंै, न उसमे खेतिहर. सदियों से जो जीवन चला आ रहा था, सभी मानो एक क्षण में गुम सा हो गया.
कारण क्या है? गैर-आदिवासियों का आगमन और गैर -आदिवासियों को लाने में दलालो का बड़ा हाथ! सोच कर असफोस होता हैं कि कुछ दलाल आदिवासी हैं, जो बस अपना मुनाफा देख सभी आदिवासियों को जमीन बिक्री के लिए उत्साहित कर रहे हैं. और ऐसा ही होता रहा तो आने वाले समय मे आदिवासियों के पास जमीन ही नही रहेगा. यह उसके भविष्य को खतरा में डाल सकता हैं.
अब बात ये आती है कि अगर सभी जमीन बेच देंगे ओर खेती-बारी छोड़ देंगे, तो कैसे अपना जीवन गुजारा करेंगे? आदिवासी समाज में अभी भी उच्च शिक्षा का अभाव है. इतना पैसा नहीं कि तकनीकि शिक्षा और बेहतर शिक्षा प्राप्त कर नौकरी के योग्य बन सकें और दूसरे नौकरी है कहां?
हाल के वर्षों में कड़ी संख्या में लड़कियों और लड़कों ने भी स्कूली शिक्षा ग्रहण की, कुछ कालेज तक भी पहुंचे, लेकिन नौकरी कहां मिली. इससे निराश युवक पढ़ाई से मुंह मोड़ रहे हैं. निराशा के गर्त में फंस नशे के शिकार हो रहे हैं.
नई पीढ़ी पढ़ती नही और रोजगार मिलता नहीं, तो अंत मे जीवन कही दूसरों के यहाँ मजदूरी कर ही काटेंगे. उसके लिए भी दूर दराज के शहरों में भटकेंगे. जरुरी है कि हम खेती से विमुख न हों, वही तो सदियों से हमारे जीवन का आधार रहा है. हमे अपनी खेती बारी को बचा कर रखना ही होगा, ताकि हमे मजदूरी के लिए भटकना न पड़े और हम पूर्व की तरह स्वाभिमान से जीवन यापन कर सकें.