मैं पिछले कुछ दिनों से दक्षिण भारत में हूं. कर्नाटक के शहर बंगलोर आया था और तमिलनाडु के शहर कोयंबतूर व उसके आस पास के ग्रामीण इलाकों में भ्रमण करता रहा हूं. और सतह पर घूमते हुए भी अंतर में आर्य, द्रविड़ और आदिवासी त्रिकोण में उलझा हुआ हूं. यह अब इतिहास सम्मत तथ्य है कि आर्यों का प्रवेश भारत में ईसा पूर्व 2000 से 1500 ईसा पूर्व हुआ और सिंधू घाटी की सभ्यता के प्रकाश में आने के पूर्व तक यही माना जाता था कि आर्यों से ही इस देश की सभ्यता संस्कृति की कहानी शुरु होती है.

लेकिन 1826 में चाल्र्स मैसेन ने पंजाब प्रांत में इसे खोज निकाला. 1856 में कराची से लाहौर के बीच रेलवे लाईन के निर्माण के दौरान बर्टन बंधुओं ने हड़प्पा स्थल पर अति प्राचीन नगर के अवशेष पाये और सरकार को सूचित किया. खुदाई और अन्वेषण का काम शुरु हुआ. इसी क्रम में मोहनजोदाड़ों का भी पता चला. सिंधू नदी के विस्तृति तटीय क्षेत्र में पाये जाने की वजह से इस सभ्यता को सिंधू घाटी की संभ्यता का नाम दिया गया और इसका समय 3300 वर्ष ईसा पूर्व से 2500 वर्ष ईसा पूर्व मानी गयी.

इतिहासवेत्ता इस सभ्यता को अनार्यों की सभ्यता मानते हैं. लेकिन यह द्रविड़ सभ्यता थी या फिर आदिवासियों की, इसे लेकर मंथन जारी है. उत्खनन से निकले शहरों, घरों, जल निकासी व्यवस्था के लिए बनी नालियों, मृतकों के अंतिम संस्कार की पद्धति, कांस्य और मिट्टी के बर्तनों, सिक्कों आदि के आधार पर अन्वेषण का काम अब भी जारी है. बहुत संभव है कि दोनों समुदाय के लोग उस दौर में साथ-साथ ही रहते हों.

इधर इत्तफाक से मुझे यह जानकारी प्राप्त हुई कि पंजाबी भाषा में संथाली और मुंडारी के हजारो शब्द मिलते हैं. हुआ यह कि पंजाब के एक मित्र सुखबिंदर सिंह रांची आये आदिवासी गांवों के भ्रमण के लिए. बंगलोर के लिए निकल पड़ने की वजह से उनसे मेंरी मुलाकात तो नहीं हुई, लेकिन मोबाईल पर लगातार बात होती रही. उन्होंने ही यह जानकारी मुझे दी. इस क्रम में पता चला कि इन दिनों विदेश में रहने वाले शोधकर्ता डा. मंजूर इजाज ने इस विषय पर गहरा शोध किया है और पुस्तक के रूप में वह प्रकाशित भी हुआ है.

सवाल यह है कि पंजाबी भाषा में इतनी बड़ी संख्या में मुंडारी व आदिवासी शब्द कहां से आये? इसका अर्थ यह निकाला जा सकता है कि पुरातन काल में मुंडा समुदाय के लोग पंजाब प्रदेश, जो सिंधू घाटी की सभ्यता का क्षेत्र है, में रहते थे. आर्यों के प्रवेश और सदियों तक चलने वाले संघर्ष के बाद वे धीरे-धीरे उस इलाके से दरबदर हो ंिवंध्याचल पर्वत के नीचे के इलाके में चले आये. अब न द्रविड़ पंजाब प्रदेश में मिलते हैं, न आदिवासी.

असंख्य शब्द हैं जो संथाली/ मुंडारी व पंजाबी भाषा में मिलते हैं. मैं यहां कुछ शब्दों को नीचे दे रहा हूं:

अंग्रेजी पंजाबी मुंडारी/संथाली
ट्री रुख रुख
फेस मुख मुख
वाटर पानी पानी/पैय
रिवर दरया दरयाओ
अर्थ धरती धरती
सन सूरज सूरज
स्पीकिंग गल गल
मून चांद चांदो
गर्ल कुड़ी कुड़ी
एलीफेंट हाथी हाथी
डौग कुत्ता कुतरु

यह कहा जा सकता है कि ऐसे बहुत सारे शब्द हिंदी में भी हैं. लेकिन हिंदी या खड़ी बोली की ईजाद तो उन्नीसवीं शताब्दी में हुआ है. उसमें बहुत सारी भाषा के देशज शब्द शामिल हो गये हैं.

कौन इस देश में पहले आया और कौन बाद में, इसको लेकर भी थोड़ा विवाद है. सामान्यतः यह माना जाता है कि सबसे पहले निग्रो जाति के लोग यहां आये, उनके बाद आग्नेय जाति के लोग, फिर द्रविड़ और सबसे बाद में आर्य जाति के लोग. लेकिन इस बात को लेकर थोड़ा विवाद है कि द्रविड़ पहले आये या आदिवासी, औष्ट्रिक भाषा भाषी उरांवों की भाषा द्रविड़ भाषा के करीबी मानी जाती है. इसको लेकर एक मत यह भी है कि आदिवासी जातियां द्रविड़ों की ही संतान हैं. लेकिन यह एक अपुष्ट धरणा है. अधिकांश इतिहासकार यह मानते हैं कि जब आर्य इस देश में आये तो आग्नेय जाति के लोग सिंधु की तराई में विद्यमान थे.

कई ऐसी परंपरायें आज भी वर्तमान है जिससे पता चलता है कि आग्नेय जाति के इन आदिवासियों का कभी इस देश पर प्रभुत्व रहा था. मारवाड़ के राजा राज्याभिषेक के समय किसी भील के अंगूठे से रक्त लेकर उसका तिलक लगाते थे. क्योझर, झारखंड के बगल के राज्य ओड़िसा में पड़ता है, के राजा का राज तिलक भी पेरिया जाति, आदिवासी का कोई सदस्य द्वारा होता था. इसी तरह की परंपरा जयपुर, राजस्थान में भी पायी जाती थी.