बिहार सरकार का एक कुछ वर्ष पुराना पत्र सोशल मीडिया में घूम रहा है. इस पत्र में प्राशमिक शिक्षक प्रतियोगिता के एक सफल उम्मीदवार को बिहार लोक सेवा आयोग, पटना, के विशेष कार्य पदाधिकारी ने कहा है- ‘प्राामिक शिक्षक विशेष प्रतियोगिता परीक्षा 1996 के आधार पर आपका परीक्षा फल प्रकाशित किया गया था. परंतु जांच के क्रम में पाया गया कि आप बिहार राज्य से बाहर के मूल निवासी हैं. बिहार सरकार के आरक्षण नियमावली के अनुसार केवल बिहार के मूल निवासी को ही आरक्षण का लाभ देय है. अतः बिहार राज्य के बाहर के मूल निवासी होने के कारण आयोग द्वारा प्रकाशित आपका परीक्षा फल रद्द कर दिया गया है.’
यहां उल्लेखनीय तत्य यह है कि मूलतः ओड़िसा के रहने वाले उस प्रत्याशी के पिता ने चालीस वर्ष बोकारो स्टील प्लांट में काम किया और प्रत्याशी का जन्म बोकारो में ही हुआ था. अब यह तो जानकारी नहीं कि इस फैसले के विरुद्ध उक्त प्रत्याशी ने न्यायालय की शरण ली या नहीं और ली तो कोर्ट का फैसला क्या हुआ, लेकिन इस पत्र से दो बातों का तो खुलासा हुआ कि बिहार में एक स्पष्ट डोमेसाईल नीति है और वह आरक्षण के प्रावधानों पर भी भारी है.
लेकिन क्या झारखंड में यह अब तक संभव नहीं हो पाया है? 1932 के खतिहान के आधार पर डोमेसाईल नीति बनाने का एक प्रस्ताव राज्य सरकार केद्र सरकार के पास विधानसभा से पारित कर भेज चुकी है, लेकिन केंद्र सरकार मामले को अटकाये बैठी है. और दबाव बनाने के लिए राज्य की हेमंत सरकार ज्यादा कुछ करती नजर भी नहीं आ रही है. उसकी मजबूरी यह है कि इस मुद्दे को ज्यादा तूल दिया जायेगा तो सहयोगी दल कांग्रेस और राजद ही नाराज हो जायेंगे, क्योंकि उनके वोटरों के हितों के यह प्रतिकूल होगा.
इस पूरे प्रकरण में विडंबना यह है कि मोदी के नेतृत्व में चलने वाली केंद्र की भाजपा सरकार लगातार आदिवासी हितों के प्रतिकूल काम कर रही है और उल्टे सभी मामलों के लिए हेमंत सरकार को ही कटघरे में खड़ा कर रही है. हाल में गृह मंत्री शाह देवघर आये और दुमका की सभा में उन्होंने संथाल परगना में आदिवासियों/ संथालों की घटती आबादी के अनुपात के लिए हेमंत सरकार को दोषी ठहरा दिया. जबकि यह बात सभी जानते हैं कि झारखंड बनने के बाद इस राज्य पर ज्यादा समय भाजपा का ही शासन रहा.
अभी भी भाजपा को इस बात पर पूरा भरोसा है कि झारखंडी जनता उनकी दोरंगी नीति के बावजूद झांसे में आ जायेगी और अगले लोकसभा व विधानसभा में उन्हें वोट देगी. इसलिए एक तो वह घुसपैठ के नाम पर सांप्रदायिक राजनीति को हवा दे रही है और द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनाने को ट्रंप कार्ड समझ कर चल रही है. और आदिवासी जनता भी डोमेसाईल और सरना कोड से संवेदनात्मक रूप जुड़ी होने के बावजूद मोदी के इस ट्रंप कार्ड से झांसे में आ जाये तो कोई आश्चर्य नहीं.