विक्टोरिया युग में, जबकि भारत में सुविधाओं का घोर अभाव था, कुछ ऐसे विद्वान हुए, जिनके बारे में पढ़ने से ऐसा प्रतीत होता है कि यदि ये न होते तो भारत के लोग खुद अपने बारे में बहुत कुछ नहीं जान पाते. उन्हीं में से एक नाम है सर विलियम विल्सन हंटर (1840-1900), जिन्हें डब्ल्यू डब्ल्यू हंटर के नाम से अधिक जाना जाता है. ब्रिटिश भारत की सामाजिक और आर्थिक स्थिति की जानकारी हासिल करने के लिए हंटर लिखित इतनी अधिक सामग्री उपलब्ध हैं कि पढ़ते समझते एक इंसान की जिंदगी खप जाए, जबकि डब्ल्यू डब्ल्यू हंटर ने कुछ ही वर्षों में यह सब लिख डाला था.
यदि आप 1770 के बंगाल के अकाल का अध्ययन करना चाहते हैं, तो आपके लिए हंटर की किताब एनल्स ऑफ रूरल बंगाल काफी है, जिसमें यह दर्शाया गया है कि एक साल के इस अकाल ने किस प्रकार से एक करोड़ जनता को भूख से मार दिया। उस अकाल के दौरान हर रोज हर आठ व्यक्ति में से तीन की जानें जा रही थी, लोग इंसानी मांस खाने पर विवश हो गए थे, लोगों ने अपनी बहू बेटियों को तब तक बाजारों में बेचा, जब तक कि उनके खरीददार मिलते रहे।
सर विलियम विल्सन हंटर का जन्म 1840 में पेरिस के ग्लासगो शहर में हुआ था। उन्होंने 1862 में इंडियन सिविल सर्विस की परीक्षा पास की। फिर इनकी नियुक्ति बंगाल में हुई। मूलरूप से हंटर एक शिक्षाविद् थे और उनकी अध्यक्षता में 1882-83 में एक शिक्षा कमीशन का भी गठन हुआ था, जिसे हंटर आयोग के नाम से पुकारा जाता है।
किंतु आज के लोगों को इस बात पर आश्चर्य होगा कि उन्होंने अपनी साठ साल की जिंदगी में कितना कुछ लिख दिया। उन्होंने दो साल के अंदर, (1875-77) में 22 वॉल्यूम में बंगाल की सांख्यिकीय विवरण तो लिखा ही, फिर 23 खंडों में इंपीरियल गजेटियर ऑफ इंडिया की रचना भी की।
1887 में अवकाश प्राप्त करने के बाद उन्होंने रूरल ऑफ इंडिया नामक पुस्तक का संपादन किया और फिर डलहौजी तथा मेयो पर किताब लिखी। उनकी एक अन्य पुस्तक इंडियन मुसलमान भी काफी प्रचलित है। सर डब्ल्यू डब्ल्यू हंटर की जो उपलब्धियां हैं, वह दुनिया भर के विद्वानों के आज भी काम आ रही हैं।