असम सरकार ने इस माह के आरम्भ से ही वाल- विवाह - विरोधी अभियान शुरू किया है. 2026 ई. तक इस अभिशाप से मुक्ति की भी घोषणा की है. अभी तक 2500 से ज्यादा लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है, जिसमें पुजारी, मौलवी, पिता, श्वसुर इत्यादि शामिल हैं. असम पुलिस का दावा है कि उनके पास 8000 ऐसे लोगों की सूचि है जो किसी न किसी रूप में इस कुप्रथा से जुड़े हैं. इतना ही नहीं, असम प्रशासन-पुलिस आरोपियों पर पाक्सों और बलात्कार जैसे गंभीर आरोप भी लगाये हैं. इस पर असम हाईकोर्ट ने सरकार को फटकार लगाते हुए कहा है कि आरोपियों पर कड़े कानून लगाना गलत ही नहीं, विचित्र है. इस अभियान ने बाल विवाह पर फिर से सोचने-समझने का मौका दिया है.
यह पूरे देश की समस्या है. बाल विवाह का विरोधी होने के बाद भी असम सरकार की इस त्वरित कार्यवाई का विरोध करना जरूरी लगता है. अचानक जिस तरह से गिरफ्तारियाँ हो रही है, वह उसके नीयत पर शंका पैदा करते हैं. इसमें बड़ी संख्या में अल्पंख्यक हंै. अगले वर्ष चुनाव के मद्देनजर यह और भी संदेहास्पद हो जाता है. गिरफ्तारियों के बाद महिलायें थाना डीसी कार्यालय में दौड़ लगा रही है. न्याय की गुहार लगा रही है. वर्षो पुराने बाल विवाह की श्रेणी में आने वाले लोगों- पति, पिता श्वसुर इत्यादि- को जेल में डाला जा रहा है. कई बच्चों की मां, गर्भवति महिला एवं विधवा औरतों के पिता/ श्वसुर को भी नहीं छोड़ा जा रहा, जबकि ऐसी हालत में उसे सहारे की जरूरत होती है. अभी कई परिवारों में रोजी-रोटी का संकट बन गया है.
आखिर इतनी हड़बड़ी क्यो?ं
बाल-विवाह पूरे विश्व में सबसे ज्यादा भारत में होता है. यह करीब हर धर्म मंे स्वीकृत है. कानून तो बने, पर समाज में इसके लिए मौन सहमति देखा जाता है. आजादी के पहले से ही इसके खिलाफ आवाज उठाया गया था. 1979 मे पहली बार बाल-विवाह विरोध अधिनियम बना जो शारदा अधिनियम के नाम से जाना जाता है. इसमें 14 वर्ष लड़कियों के लिए एवं 18 वर्ष लड़कों के विवाह के लिए माना गया. बाद में (1954 में) लड़कियों की उम्र 18 एवं लड़कों का 21 वर्ष संशोधित कर रखा गया. पुनः पिछले वर्ष लड़कियों की न्यूनतम उम्र 21 वर्ष की गयी. आशा की गयी थी कि इन प्रयासों से बाल विवाह पर अंकुश लगेगा.
पर वास्तविकता से हम सभी परिचित हैं. मानसिकता नहीं बदली और धड़ल्ले से बाल विवाह हो रहे हैं. प.बंगाल, बिहार, त्रिपुरा में बाल विवाह राष्ट्रीय औसत से ज्यादा है. बेटों से वंश चलता है और बेटियों के जीवन का लक्ष्य विवाह है. इस विचार ने वाल- विवाह को रोकने की कोशिशों को विफल कर दिया है. इस समस्या का समाधान मात्र गिरफ्तारी नहीं. शिक्षा, स्वास्थ्य एवं सम्मान के लिए लड़कियों को बराबरी का हक देना होगा. जहां समझदारी बढ़ी है, वहां लड़कियां स्वयं बाल विवाह का विरोध कर रही हैं.
हम उम्मीद करते हैं कि बाल-विवाह के विरोध में जिस तरह का अभियान सरकार चला रही है, उसी तरह का अभियान दहेज उत्पीड़न, यौन उत्पीड़न, डायन प्रतिरोध अधिनियम जैसे कानूनों को लागू करने के लिए भी सरकार चलायेगी. सिर्फ त्वरित गिरफ्तारी के साथ साथ समाज की मानसिकता बदलने के काम को भी एक अभियान का शक्ल दिया जायेगा.