आदिवासी समाज धीरे-धीरे खेती बारी से विरक्त होता जा रहा है. हम बहुधा सुनते हैं कि आदिवासी समाज के लोग जमीन बेच दे रहे हैं और बाहर मजूरी करने जा रहे हंै. लेकिन क्या हम लोगों ने ये सोचा है कि आखिरकार जिस खेती बारी से वह सदियों जुड़ा रहा, अपना जीवन यापन करता रहा, अब उसे क्यों बोझ लगने लगा हैं? कुछ दिन पहले मैं मांडर गयी और कुछ कृषि कार्य में जुड़े लोगों से मिली. इस पर उनसे चर्चा की.

लोगों ने बताया कि खेत बहुत हैं, लेकिन खेती करने के लिए लोग नहीं. साथ ही उन्हें सिंचाई की दिक्कत होती हैं. पानी नहीं होने के कारण वे पूरा साल खेती नही कर पाते. एकाध फसल मुश्किल से हो पाती है. इस बार कुछ ने उस इलाके में मटर कि खेती की. जिसमे उगाने से लेकर उसे बाजार तक पहुँचने में बहुत परिश्रम करना पड़ता हैं. मटर लगाना, उसकी महीनों सेवा करना. कड़ी धूप में तोड़ना. उसके बाद भी किसान को सही मुनाफा नही मिलता जिसके कारण वे निराश हो जाते हंै. किसानों से ज्यादा तो बिना कोई श्रम किये बिचैलिया या व्यापारी कमा लेता है. सामान्य तौर पर देखा जाए तो मटर का मूल्य बाजार में जहाँ 25 रुपये केजी चलता है,ं वहाँ पर किसानों से व्यापारी लोग 12 या 13 रुपये या उससे भी कम में उठाते हैं. ये उनका मटर का खर्च, साथ ही उसे बाजार तक पहुँचने में अलग खर्च. और जिसके घर मे मटर तोड़ने के लिए कोई नही होता, तो उनको भी मजदूरों को लगाना पड़ता है. जो एक दिन का कम से कम 140 रुपया लेता हैं.

इतना कठिन परिश्रम के बावजूद भी किसानों को सही मूल्य नही मिल पाता हैं, दिन भर कड़ी धूप हो या ठंडा उसे खेत में जाकर परिश्रम करना पड़ता है. एक किसान ने कहा कि दिन रात खेती बाड़ी की बातें सोच कर नींद भी नही आती हैं. इतना मेहनत लगता है और बाजार में ले जाते तो सही मूल्य ही नही मिलता. इन्ही सब देख कर लड़के बोलते हैं, इससे अच्छा चलो ईटा भटा जहाँ पर 6 महीना या साल भर में कुछ कमाई कर एक बार घर आते है और कुछ दिन आराम से रहते हैं. लेकिन जो बुजुर्ग लोग हंै, वो अपना खेती बाड़ी को छोड़ कर जाना नही चाहते. मुनाफा न मिले, फिर भी वो खेती करते हैं. गांव की खेती उन्हीं लोगों पर टिकी है.

खेती किसानी से विमुख होने का एक मात्र कारण उसका अलाभकारी होना है. आज कल खेतीबाड़ी में जो परिश्रम और निवेश लगता है उसका उचित मूल्य नहीं मिलता है. कृषि उत्पाद का उचित मूल्य सरकार को सुनिश्चित करना होगा, तभी लोग फिर से खेतीबाड़ी में मन लगायेंगे. आज कल की सरकारें कारपोरेट घरानों की कठपुतली हैं. बड़े उद्योगपतियों को टैक्स में छूट दे कर खरबों का फायदा पहुंचाती है, बड़े बड़े लोन को चुटकियों में माफ कर देती है और दूसरी तरफ किसानों को मिल रही सभी तरह की सब्सिडी बंद कर दी गयी है.