त्रिपुरा, नगालैंड और मेघालय विधान सभा चुनाव के नतीजे इस मायने में महत्वपूर्ण हैं कि नगालैंड में पहली बार दो महिला विधायक चुनी गई है. 1963 में नगालैंड अलग राज्य बना, लेकिन इस चुनाव के पूर्व कोई महिला चुनाव जीत कर राजनीति में नहीं आ पायी. 1977 में एक महिला सांसद एवं पिछले वर्ष एक महिला राज्य सभा में अपनी उपस्थिति दुर्ज करा पाई. 60 सदस्यीय विधान समा में चार महिला एवं 183 पुरुष चुनाव लड़ रहे थे. एनडीपीपी की हेरवानी जरवालू दीमपुर तीन से चुनाव लड़ी और 1,536 मतों से जीत हासिल की. सलतह्रत क्रूसे ने मात्र 7़ मतों के अंतर पर अपने निर्दलीय प्रतिद्वंदी को हराया.यह पश्चिमी अंगामी से एनडीपीपी प्रत्याशी थी. दोनों युवा है और कई वर्षो से एनजीओे से जुड़ कर महिलाओं के बीच काम कर रही थी.

संविधान ने महिला समानता, गरिमा को स्वीकारा और स्थापित किया, राजनैतिक दृष्टि से भी उसे बराबरी का अधिकार मिला, लेकिन महिलाओं की उपस्थिति जन-प्रतिनिधि संस्था (संसद, विधान सभा) में बहुत कम है. पहली लोकसभा मे मात्र 4.4 फीसदी थी, क्रमशः घटते-बढ़ते रहने के बाद पिछले लोकसभा में 11 फीसदी रही,. यानि इतने वर्षो में लोकसभा में महिलाओं की हिस्सेदारी 7 फीसदी ही बढ़ पायी. सत्ता के शीर्ष तक पहुंचने के लिए 33 फीसदी महिला आरक्षण विधेयक बनाने की बात चली और इस दिशा में प्रयास किया गया, पर वह अब तक लंबित है.

वास्तव में कोई राजनैतिक पार्टी महिला आरक्षण देने के पक्ष में नहीं है. कभी इस आरक्षण मे दलित, पिछड़े व अल्पसंख्यकों की महिलाओं के लिए अवग कोटा का प्रवधान करने की भी मांग उठी, तो कभी राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिमा पाटिल ने अपने संबोधन में 100 दिनों के एजेंडा में महिला आरक्षण विल पास करने के वादे किए. अब तो इस पर कोई चर्चा नहीं होती. अभी देश लोकतंत्र के महापर्व की पृष्ठभूमि तैयार कर रहा है. जातीय, धार्मिक व क्षेत्रीय भावनाएं उभारने की कोशिश मे धर्मनिरपेक्षता तार तार हो रही है. बेरोजगारी, महँगाई, भ्रष्टाचार कोई मुद्दा नहीं बनता, और न महिलाओं के मुद्दे एजेंडा में हैं.

भारत के राजनीतिक, परिदृश्य में इंदिरा गाँधी, जयललिता, वृंदा करात, सुषमा स्वराज, सोनिया गांधी, ममता बनर्जी, मायावती, वसुंधरा राजे, सुहावनी अली इत्यादि का नाम है, पर आम महिलाओं के लिए दरवाजे अब भी बंद हैं. जो महिलायें दिखती भी हैं, के ज्यादातर अपने पति या पिता विकासत में मिली राजनीति को ढोती प्रतीत होती हैं.

वैसे भी अपने दमखम पर पहली बार विधानसभा चुनाव जीवना एक अच्छी शुरुआत है. हमें उम्मीद करना चाहिए कि आगे भी महिलाएं चुनाव में भाग लेंगी और जीत हासिल कर 33 फीसदी आरक्षण की नीति को जमीन पर उतारेंगी.