भारत जैसे विशाल देश में, दूसरे राज्यों में जाकर मजदूरी करना मजदूरों के लिए हमेशा से सहज बात रही है। नब्बे के दशक में भौगोलीकरण तथा आर्थिक क्षेत्र में हुए परिवर्तनों ने प्रवासी मजदूरों के आवागमन में तेजो ही लाई है। सूचना तंत्र के विकास के साथ इसमें और वृद्धि हुई।

कुछ दिन पहले तमिलनाडु में प्रवासी मजदूरों के हिन्दी बोलने पर प्रताडना के वीडियो सोशल मीडिया में तेजी से वायरल हुआ. इसके कारण मजदूरों की स्थिति, उनकी समस्यायंे तथा सरकार की नीतियों पर बहस चल पडी है. फेसबुक जैसे सोशल मीडिया पर कई बुद्धिजीवियों के पोस्ट बिहारी प्रवासी मजदूरों के समर्थन में आने लगे. तमिलनाडु के प्रवासी मजदूर अपने बोरिया बिस्तर लेकर अपने घर लौटने लगे, ऐसे समय में तमिलनाडु सरकार तुरन्त हरकत में आई. उसने सोशल मीडिया के इन अफवाहों का खंडन किया और कहा कि तमिलनाडु के प्रवासी मजदूर सुरक्षित है. वायरल वीडियो अभी के नहीं हैं. उनके राज्य के नहीं हंै. इसको लेकर वहाँ की पुलिस भी हरकत में आई. उसने इस संबंध में गलत बातों को लिखने और प्रचार करने के अपराध में तमिलनाडु के बीजेपी के अध्यक्ष तथा दो अन्य पत्रकारों को गिरफ्तार भी किया.

तमिलनाडु में लगभग दस लाख .प्रवासी मजदूर काम कर रहे हैं. चेन्नई, तिरुवूर, चेंगलपेट तथा तिरपुर के विभिन्न उद्योगों में लगे हंै. इसके अलावा होटलों, वस्त्र उद्योग तथा निर्माण कार्यों में भी इनकी बहुत बड़ी संस्ख्या देखी जा सकती है. तमिलनाडु सरकार राज्य के विकास में इन प्रवासी मजदूरों की भूमिका को स्वीकार करती है और कहती है कि वह उनके साथ है.

पहले काम की खोज में निकले मजदूर तमिलनाडु ही पहुँचते थे. लेकिन वहाँ काम नहीं मिलने पर वे केरल तथा कर्नाटक चले जाते थे और थोड़ी बहुत संख्या में आंध्र प्रदेश भी पहुँच जाते थे, जहाँ उनकी मांग थी. लेकिन 1990 में जब तमिलनाडु में तेजी से उद्योग धंधे शुरु हुए, शहरी करण शुरू हुआ, तो वहाँ मजदूरों की कमी हो गई, क्योंकि स्थानीय मजदूर पहले ही काम की तलाश में केरल तथा कर्नाटक जा चुके थे. उस समय बिहार झारखंड, उडीसा तथा बंगाल के प्रवासी मजदूरों ने उस कमी को पूरा किया. इन मजदूरों का वहाँ जाने और काम करने का मुख्य कारण था कि वहा की मजदूरी उनके गृहराज्य से बहुत अधिक थी. चेन्नई में जहां उन्हें 400 से 600 रु प्रतिदिन नजदूरी मिलती है, तो उनके गृहराज्य में 150 से 250 रु प्रतिदिन. इसके अलावा काम का वातावरण तथा कम ही सही सुरक्षित जगह होने के कारण ये प्रवासी मजदूर बावजूद भाषा की समस्या के वहाँ जाकर काम करना चाहते हैं. इस तरह तमिलनाडु पूरे दक्षिणभारत में प्रवासी मजदूरों का मंजिल बन गया. देश के कुल प्रवासी मजदूरों का 4 प्रतिशत तमिलनाडु की ओर ही जाते है.

प्रवासी मजदूरों को काम इसलिए भी मिल जाता है क्यो किं वे स्थानीय मजदूरों से सस्ते हैं. वहाँ के मजदूर जिस काम के लिए 1100 रु0 से लेकर 1200 रु लेते हैं, वहीं प्रवासी मजदूर उस काय को 400 से 600 रु में कर देत हैं. प्रवासी मजदूरों में एकजुट होकर मजदूरी बढ़ाने, सामाजिक सुरक्षा या काम करने की स्थिति मे सुधार जैसे प्रश्नों पर आंदोलनरत होने की ताकत नही होती हैं, जिससे ठेकेदार आन्दोलन आदि से मुक्त रह कर अपने काम को पूरा करवाते हैं. लेकिन स्थानीय मजदूर इसी बात को लेकर प्रवासी मजदूरों से नाराज रहते हैं. प्रवासी मजदूरों के कारण ही ठेकेदारों को मनमानी करने का मौका मिल जाता है और नुकसान सारे मजदूरों का उठाना पड़ता है. इस तरह स्थानीय तथा प्रवासी मजदूरों के बीच घृणा का भाव पैदा होता है. प्रवासी मजदूरों के साथ मारपीट और उनको वापस लौटने को मजबूर किया जाता है.

भारतीय संविधान भारत के लोगों की भारत के किसी भी जगह जाकर बसने और जीविकोपार्जन की आजादी और अधिकार देता है. ऐसे में प्रवासी मजदूरों के संबंध में सरकार की स्पष्ट नीति होनी चाहिए. उनकी मजदूरी , सामाजिक सुरक्षा तथा काम के स्थलों में सुविधाओं पर ध्यान देते हुए कानून बनानी चाहिए. स्थानीय तथा प्रवासी मजदूरों के बीच की खाई तथा नफरत को समाप्त करना है तो बराबर का परिश्रमिक अनिवार्य होना चाहिए. प्रवासी मजदूरों पर आक्रमण केवल दक्षिण भारत में ही नहीं होता है, उत्तर के राज्यों में भी बिहारी मजदूरों का शोषण होता है. सरकारी नीति ही इनकी स्थिति बदल सकती है.

यहां तमिलनाडु के प्रवासी मजदूरों से संबंधित एक रोचक प्रसंग को याद करना जरूरी है. घटना 2010 की है. जब करुणानिधि तमिलनाडु के मुख्यमंत्री थे. उन्होंने विधानसभा का नयाँ भवन बनवाया था. इसको बनाने में प्रवासी मजदूरों का ही श्रम लगा था. सामाजिक न्याय के प्रवक्ता मुख्यमंत्री करुणानिधि ने उनके प्रति अपना अभार जताने के लिए नये भवन के उदघाटन के दिनं सारे मजदूरों के लिए एक भव्य भोज का आयोजन किया. इसे बड़ा खाना कहा गया. भवन निर्माण में लगे सारे मजदूरों को अमंत्रित किया गया. तत्कालीन प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह जी ने इसका उदघाटन किया था. मजदूर नियत दिन नियत समय परं पहुँच गये लेकिन उनके लिए ऐसा आयोजन नया था. वे सहमे से बैठे हुए थे. हिन्दी फिल्मों के गाने लगाकर उन्हें सहज करने का प्रयास हुआ. फिर कुछ पत्रकारों के नाच के प्रस्ताव से सब सहज होकर नाचने लगे. करुणानिधि ने तामिल में भाषण देकर उनका आभार जताया जिसका अनुवाद हिन्दी में किया गया. करुणानिधि ने खुश हो कर कहा किं पहली बार उनके भाषण का हिन्दी अनुवाद हुआ और उनके हिन्दी विरोधी छवि को कुछ कम किया गया. इस प्रसंग से वर्तमान मुख्य मंत्री अवश्य शिक्षा ग्रहण कर सकते हैं.