इलाहाबाद में सत्तर के दशक के नामी भू माफिया रहे ‘मौला भुक्खल’ की एंबेसडर गाड़ी 1985 के आसपास बीच चैराहे पर रोककर और उन्हें चुनौती देकर अतीक अहमद ने दबंगई के क्षेत्र में अपनी श्रेष्ठता स्थापित करने की यात्रा की शुरूआत कर दी थी. फिर अपने बढ़ते साम्राज्य को सुरक्षित रखने के लिए अपने प्रतिद्वंदियों का खात्मा करते हुए राजनीति में कदम रखा और विधायक भी बन बैठा. एक तरह से राजनीति के सुरक्षा चक्र ने अपराध की दुनिया में उसकी उम्र बढ़ा दी थी.
विधायक बनने से पहले इलाहाबाद के दुर्दांत बदमाशों चांद बाबा, जग्गा और छम्मन का वह नया साथी ही था. उस काल में क्षीण काया वाले चांद बाबा की इलाहाबाद में इतनी दहशत थी कि उसे कहीं से गुजरता देख पुलिस वाले मुंह फेर लेते थे. शाम होते ही कहीं न कहीं बमबाजी हो जाना रोजाना की बात हो चुकी थी. झोले में बम लिए हुए वह कोतवाली में घुस जाता था. करैली का एक बड़ा आलीशान मकान उसने पचासों बम फेंककर एक घंटे में ही खाली करा दिया था. जब वह जेल गया था तो उसने जेल के भीतर ही चाय और तंबाकू की दुकान खुलवा दी थी. उस पर लगाम लगाने वाला कोई न था. लखनऊ पुलिस ने भी उसे छह महीने तक एनएसए के तहत जेल में बंद रखा था लेकिन उसके रुआब में कोई कमी नहीं थी. उसने डीएम को फोन पर जमकर गरिया दिया था. उसने खुलकर कहा था कि पूरा पुलिस विभाग बिका हुआ है.
डीएम ने तत्कालीन एसपी सिटी को फोन कर अपने साथ हुए दुर्व्यवहार की बात बताई थी और उसे ठिकाने लगाने को कहा था. लेकिन ओपी सिंह ने कुछ नहीं किया था. चांद बाबा अक्सर ओपी सिंह से मिलने चला जाता था और उनकी तारीफ के पुल बांध देता था. चांद बाबा ओपी सिंह को ईमानदार बताते हुए उनकी गुडबुक में रहने की कोशिश करता रहता था. चांद बाबा, छम्मन और जग्गा के सामने अतीक की कोई हैसियत नहीं थी. वह अतीक को ललकार देता था.
असल में अतीक एक तरह से चांद बाबा का चेला ही था लेकिन अतीक ने जब चुनाव लडने की इच्छा बताई तो चांद बाबा ने इसका विरोध किया और खुद भी 1989 के चुनाव के मैदान में कूद पड़ा. अतीक ने भी नामांकन कर दिया और दोनों में तनातनी हो गई. दोनों की गिरोह पर वर्चस्व की लड़ाई खुलकर सामने आ गई.
इस दौरान चांद बाबा की दबंगई अपने उरोज पर थी और लोकप्रियता भी आसमान छू रही थी. इतना दुर्दांत था चांद बाबा कि कोतवाली के सामने ही बमबाजी करके पुलिस को चेता देता था कि उसका अभियान चालू है. चुनाव में मतदान के बाद चांद बाबा मस्जिद में नमाज पढ़ने गया और वहां से रोशन बाग में ढाबे पर पराठा खाने गया. वहीं पर चांद बाबा का काम तमाम हो गया. लेकिन चांद बाबा की हत्या की एफआईआर में अतीक का नाम नहीं था. हालांकि सर्वत्र यही चर्चा होती रही कि ओपी सिंह ने ही अतीक के मुंह में चारे के रूप में चांद बाबा को डाल दिया था. ओपी सिंह हमेशा इससे इनकार करते रहे. यह बात दूसरी है कि कुछ दिन बाद डीएम ने भी ओपी सिंह को थैंक्यू बोला था.
पुराने लोग बताते हैं कि पुलिस की योजना थी कि चांद बाबा के मारे जाने के बाद अतीक को भी हलाल कर दिया जाए और इसे गैंग वार दिखा दिया जाए. यह बात जग्गा को पता चल गई और जग्गा सिविल लाइंस से अपनी मोटरसाइकिल से भागकर अतीक के पास पहुंचा और पुलिस की साजिश के बारे में उसे बताया. अतीक अपनी जान बचाने के लिए उसी मोटरसाइकिल से पुलिस की आंखों में धूल झोंककर गली गली भागने में सफल रहा.
चांद बाबा के अंतिम संस्कार में हजारों लोग उमड़े थे और मुस्लिमों में बड़ा आक्रोश भी था. चांद बाबा के मारे जाने पर जग्गा भी अतीक से नाराज होकर बॉम्बे भाग गया था. बाद में जग्गा को बहला फुसलाकर वापस इलाहाबाद लाया गया और सबके सामने उसे कुत्ते की मौत मारा गया. अतीक के इस दबदबे से गिरोह के अधिकतर सदस्य अतीक के साथ आ गए थे. छम्मन ने भी अतीक के पैरों में सिर रखकर जान की भीख मांग ली थी. अभी दो वर्ष पूर्व बीमार हालत में छम्मन की मौत हुई है.
इसी दौरान अतीक चुनाव जीत गया और उसकी बादशाहत का दौर शुरू हो गया जिसका अंत उसी के गढ़ में चार दशक के बाद हो ही गया. एक एक करके पांच बार विधानसभा का चुनाव खुद जीता और अपने भाई अशरफ को भी विधायक बनवा ही दिया. खुद सांसद भी बन गया लेकिन वर्ष 2007 करैली में हुए मदरसा कांड के बाद उसका ग्राफ ऊपर नहीं उठ पाया. अतीक के खिलाफ सीबीआई से जांच कराने का आश्वासन देने भर से मायावती का ग्राफ बड़ी तेजी से ऊपर उठा और वह मुख्यमंत्री बन गईं. मुसलमानों ने उन्हें दिल खोलकर वोट दिया था. यह बात दूसरी है कि सीबीआई ने इस जांच को लेने से इंकार कर दिया और मदरसा कांड हमेशा के लिए ठंडे बस्ते में चला गया. जनवरी 2007 में आधी रात के बाद तीन सशस्त्र बदमाश लड़कियों के मदरसे में घुसे थे और दो नाबालिग लड़कियों को उठा ले गए थे और सामूहिक बलात्कार के बाद सुबह उन्हें मदरसे में वापस छोड़ गए थे. आतंक इतना था कि पुलिस ने एफआईआर भी दर्ज नहीं की थी जब तक की हंगामा नहीं शुरू हो गया था.
शहर में जब अतीक अहमद का काफिला निकला करता था तो उसके साथ दर्जनों गाड़ियां होती थीं और जब वह सड़क पर खड़े होकर किसी से बात करता था तो दर्जनों लोग असलहे लेकर उसकी सुरक्षा में लगे रहते थे. शनिवार को जब वह मारा गया तो वह नितांत अकेला था. पिछले एक हफ्ते से पुलिस के दबाव के कारण उसके सारे शूटर्स फरार हो चुके थे, उसको तन्हा छोड़कर.
शेष अगले अंक में