झारखंड के खूबसूरत जिलों में लोहरदगा एक जिला है, जो सिर्फ अपनी खूबसूरती के लिए ही नहीं, बल्कि अपनी धरती के अंदर संभालें संसाधनों के लिए भी मशहूर है. लेकिन गैर जिम्मेदाराना खनन से न सिर्फ यहां की धरती विरूपित होती जा रही है, बल्कि आज के समय में लोहरदगा के आदिवासी समुदाय के लोग, जो बॉक्साइट से भरे पहाड़ों के ऊपर के वासी है, उनका जीवन नर्क से भी बदतर हो चुका है. हिंडालको जैसी कंपनियां आदिवासियांे की जमीन को लीज पर लेकर कॉन्ट्रैक्ट के द्वारा खनन करने वाली कंपनियों को दे रही हैं. वहां के स्थानीय निवासी आदिवासियों को उस माइंस में मजदूरी करने के लिए विविश ही नहीं होना पड़ रहा है, बल्कि उनकी मजदूरी या फिर काम की कोई गारंटी तक नहीं की जा रही है.
अधिकतर जो आदिवासी मजदूर हैं, वे असंगठित मजदूरों की तरह दिहारी पर काम कर रहे हैं. उन्हें न तो सरकारी अवकाश मिलता है और ना ही कोई जॉब सिक्यूरिटी, बल्कि मजदूरी कर रहे स्थानीय निवासी को सरकार द्वारा लागू की गई न्यूनतम मजदूरी भी नहीं मिलती है. जिन पहाडों पऱ और जिन गांवों में बॉक्साइट खनन हो रहा है, वहां के लोगों के लिए आजादी के 75 साल बाद भी ना ही पीने के पानी की कोई व्यवस्था है और न ही बिजली की. लोगों को पीने के पानी के लिए चार किलोमीटर दूर झरने के पानी पर निर्भर रहना पड़ रहा हैं जो धीरे-धीरे प्रदेषण का शिकार हो रहा है.
पूरे इलाके में एक भी स्वास्थ्य केंद्र नहीं है और ना ही बच्चों की शिक्षा की उचित व्यवस्था है. ऐसी स्थिति में जीवित रहना या वहां वास करना खुद में एक बहुत बड़ी समस्या बनती जा रही है. इस इलाके के युवा शराब के नशे में डूबे हुए हैं. ऐसे में चालाक धूर्त दलाल किस्म के लोग उनकी जमीनों को लीज पर लेने से लेकर उनको कम मजदूरी देने तक, हर रूप में उन्हें ठग रहे हैं. डीसी से लेकर मुखिया तक किसी के पास भी मूलभूत सुविधाओं की बात की जाने पर कोई जवाब नहीं है.
दुख की बात यह है कि बाहर से जो मजदूर, सुपरवाइजर, या मैनेजर जैसे लोग आते हैं और बहाल किये जाते हैं, उन लोगों को नियमित वेतन आधारित नौकरी मिल रही है, लेकिन स्थानीय आदीवासी मजदूरों के लिए ऐसी कोई भी व्यवस्था नहीं. नशे ने लोगों की एकजुटता को भी काफी चोट पहुंचाया है, गांवों में ग्राम सभा का निष्क्रिय होना भी इन युवाओं के लिए काफी खतरनाक है. लोगों में बिल्कुल भी एकजुटता नहीं है. पंचायती राज ने भी वहां लूट खसोट मचा रखी है. युवाओं में मजदूरी करने की विवशता तो है, लेकिन अपने अधिकारों के बारे में उनको कोई भी जानकारी नहीं है, और ना ही उनमें शिक्षा ग्रहण करने की कोई इच्छा है.
सरकार की तरफ से भी ऐसी कोई भी योजना वहां नजर नहीं आती जो वहां के युवाओं को शिक्षित और प्रशिक्षित होने में मदद करे. झारखंड राज्य बनने के बाद सभी राजनीतिक पार्टियों, सत्ताधारी दलों, क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों ने आदिवासियों के विकास और उनकी सुविधाओं के बारे में बड़ी-बड़ी बातें की, लेकिन सरजमीन पर कुछ दिखाई नहीं देता. आज जब हम जमीनी हकीकत देखते हैं तो यहां पर आपको ऐसा कुछ भी नहीं दिखता.
इन परिस्थितियों में ग्राम सभा को मजबूत करना और जनता के बीच, वहां के लोगों के बीच जागरूकता का अभियान चलाना काफी जरूरी हो जाता है. हम निष्कर्ष के तौर पर यह निकाल सकते हैं कि वहां के लोगों के बीच में एक सामान्य शिक्षा आधारित जागरूकता अभियान पर जोड़ देना ही एकमात्र रास्ता नजर आता है.