अतीक की अपराधिक सत्ता के दबदबे की नुमाइश का सबसे बड़ा साल 1989-1990 था जब पुलिस प्रशासन से उसकी ऐलानिया अदावत हो गई थी और इस लड़ाई में वह विजेता के रूप में उभरा था। हुआ यह कि धूमनगंज थानाध्यक्ष रविवार होने की वजह से थाने पर नहीं आए थे और सेकंड अफसर के रूप एक दरोगा राय काम कर रहा था। थाने पर अतीक ने फोन कर एसओ से बात करने की इच्छा व्यक्त की। राय ने बताया कि एसओ गश्त पर हैं।

एक घंटे बाद फिर लैंडलाइन पर फोन आया, राय ने वही जवाब दिया। आधे घंटे बाद फिर अतीक का फोन गया और राय ने जब फिर वही जवाब दिया तो अतीक बिफर उठा। राय को ढेर सारी गालियां दे डाली कि एसओ अपने क्वार्टर में सो रहा होगा, तुम लोग फर्जी गश्त पर दिखा रहे हो! मैं अभी थाने पर आता हूं और तुन्हें बताता हूं।

थोड़ी देर बाद अतीक थाने पहुंच गए और जब राय दरोगा ही उससे रूबरू हुआ और उसने अतीक द्वारा किए जा रहे दुर्व्यवहार पर आपत्ति जताई तो अतीक ने उसको दो चार थप्पड़ जड़ दिए।

उस समय दोपहर के डेढ़ बजे का वक्त रहा होगा। विधायक के दुर्व्यवहार से आक्रोशित दरोगा राय एसपी सिटी ओपी सिंह के घर पहुंच गया। ओपी सिंह लंच करके झपकी की मुद्रा में थे। दरोगा के आने की सूचना मिलने पर उसे बुलाया। दरोगा का रोना सुनकर ओपी सिंह भी विचलित हो गए और उन्होंने तत्कालीन एसएसपी वी एन राय को फोन कर घटना के बारे में बताया और निर्देश मांगा। वी एन राय ने आवश्यक कार्रवाई करने का निर्देश दिया और लंच कर विश्राम करने लगे।

ओपी सिंह ने दरोगा राय से अतीक के खिलाफ सुसंगत धाराओं आईपीसी 325, 332 आदि में मुकदमा दर्ज करने को कहा। सरकारी कार्य में दखलंदाजी एक संज्ञेय अपराध है, सरकारी कर्मचारियों के लिए एक सुरक्षा कवच।

ओपी सिंह ने सीओ चतुर्थ ओपी सागर को वायरलेस पर घटना बताकर इस नए नए विधायक की गुंडई खत्म करने के लिए उसे तत्काल गिरफ्तार करने की अपनी योजना बताई और अपने गनर और डेढ़ डेढ़ सेक्शन पीएसी लेकर दोनों दो विभिन्न दिशाओं में निकल गए। सागर को धूमनगंज की तरफ भेजकर ओपी सिंह खुद अतीक के घर चकिया की तरफ कूच कर गए।

ओपी सिंह को अतीक घर पर नहीं मिला लेकिन थोड़ी ही देर में वह गांव की तरफ से अपने लाव लश्कर के साथ आता दिख गया। ओपी सिंह ने अतीक को रोका और बताया कि वह उसको गिरफ्तार करने आए हैं। अतीक ने गुस्से में कहा कि आप हमें तो गिरफ्तार कर नहीं सकते हैं, यहां पुलिस वालों की लाशें बिछ जायेगी! दस हजार लोग मौजूद हैं हमारे साथ, आप सब मारे जाओगे!

यह धमकी सुनकर ओपी सिंह ने कहा .. मारे तो सभी जायेगें, हम भी और आप भी.. पुलिस भी छोड़ेगी नहीं।

ओपी सिंह ने अपने साथ आई फोर्स की तरफ देखा तो पाया कि इनकी फोर्स अतीक के लाव लश्कर से बहुत कम है। वह और फोर्स मंगाना चाहते थे लेकिन मोबाइल का जमाना था नहीं और वायरलेस पर सबके सामने अपनी रणनीति की चर्चा नहीं कर सकते थे।

ओपी सिंह इसी उधेड़बुन में थे कि कैसे अतीक को गिरफ्तार किया जाए? उनका जोश उबाल मार रहा था। विधायक क्या चीज होती है पुलिस के सामने? जिसने पुलिस पर हाथ उठाया है, उसे सबक सिखाना ही पड़ेगा। अचानक उन्हें ओपी सागर वापस आते दिख गए तो उनकी जान में जान आ गई। लेकिन इसी बीच उस समय के मेयर श्यामाचरण गुप्ता भी पहुंच गए और अतीक की गिरफ्तारी का विरोध करने लगे।

थोड़ी देर बाद विधायक राकेश धर त्रिपाठी भी पहुंच गए और उन्होंने शोर मचाना शुरू कर दिया कि विधानसभा के स्पीकर को सूचित किए बिना किसी विधायक की गिरफ्तारी अवैधानिक है, देखते हैं कि पुलिस कैसे गिरफ्तार करती है?

इस बीच एसएसपी वी एन राय सोकर उठे तो उन्हें सारे घटनाक्रम के बारे में पता चला तो उन्होंने मामले की गंभीरता समझते हुए आस पास के जनपदों से और पुलिस और पीएसी बुलवा ली। मौके पर ए डी एम सिटी मोहन स्वरूप भी पहुंच गए। वी एन राय ने अतीक के पास संदेश भिजवाया कि उन्हें गिरफ्तार करना औपचारिकता भर है। कोतवाली पहुंचने पर सम्मानित तरीके से छोड़ दिया जाएगा। बस फोर्स का मनोबल बनाए रखने के लिया यह करना जरूरी है।

एसएसपी के इस आश्वासन पर अतीक गिरफ्तारी देने के लिए तैयार हो गया लेकिन राकेश धर त्रिपाठी और श्यामाचरण गुप्ता फैल गए कि बात आगे बढ़ चुकी है, यह गिरफ्तारी विधायकों की गरिमा के खिलाफ है। अगर आज गिरफ्तारी हुई तो पुलिस के हाथ खुल जायेंगे और हर जगह विधायकों को अपमानित करने की नई परंपरा शुरू हो जाएगी। अतीक को जब अन्य विधायकों का समर्थन मिल गया तो उसने वी एन राय से कहा कि अब वह सरेंडर नहीं करेगा और अगर पुलिस ने उसे जबरिया ले जाने की कोशिश की तो लाशें बिछ जाएंगी।

इधर वी एन राय कोतवाली में बैठकर अतीक के आने का इंतजार कर ही रहे थे कि डी एम अरुण कुमार मिश्र भी कोतवाली पहुंच गए। अब यह प्रशासनिक प्रतिद्वंदिता का मुद्दा बन गया और डी एम व एसएसपी के स्वाभिमान आपस में टकराने लगे। एसएसपी द्वारा पूरा प्रकरण बताने पर डी एम ने कहा कि इस मामले की मजिस्ट्रेटी जांच करा देते हैं, अगर जरूरत समझी गई तो गिरफ्तारी की जाएगी। ऊपर से भी यही आदेश आया है। केंद्रीय गृह मंत्री ने (महबूबा मुफ्ती के पिता तब गृह मंत्री हुआ करते थे) गिरफ्तारी से मना किया है, यह गिरफ्तारी अल्पसंख्यकों में असुरक्षा की भावना लाएगी।

वी एन राय के सिर पर तो मानों घड़ों पानी गिर गया हो! कहां वह अतीक को गिरफ्तारी के लिए मना रहे थे और आपात स्थिति के लिए दूसरे जनपदों से फोर्स मंगा रहे थे लेकिन डीएम ने तो उनकी रणनीति ही डस्टबिन में डाल दी! वह बेचैन हो गए कि फोर्स को क्या मुंह दिखाएंगे?

इधर चकिया में ओपी सिंह डटे हुए थे। वह अतीक अहमद को घर के अंदर घुसने ही नहीं दे रहे थे। ओपी सागर भी उनके साथ थे। फोर्स भी आने लगी थी लेकिन अतीक के लोग भी जमा होने लगे थे। ओपी सिंह चूहेदानी में फंसने लगे थे। नीचे गलियों में फोर्स बढ़ती जा रही थी और छतों पर राइफल लेकर अतीक के लोग! नीचे खड़ा एक एक सिपाही छत पर मौजूद दो दो लोगों के निशाने पर आ चुका था। यानी जल्दी ही चकिया की यह गली जंग का मैदान बनने वाली थी। लेकिन नीचे खड़े सिपाहियों को इस बात का इलहाम भी नहीं था कि मौत उनके सिर पर नाच रही है।

अतीक ने घर से चाय वगैरह मंगवाया। मोहन स्वरूप ने तो चाय पी ली और पार्टनर कहते हुए ओपी सिंह को भी चाय पीने के लिए प्रोत्साहित किया। लेकिन इस विषम परिस्थिति में इतनी फोर्स के सामने ओपी सिंह को थूक निगलना भी कठिन लग रहा था। उन्हें तो अतीक चाहिए था हथकड़ी में ताकि दरोगा के साथ हुए अपमान का बदला लिया जा सके। जब हम अपने गाल पर पड़े हुए तमाचे का बदला नहीं ले सकते हैं तो आम आदमी को कैसी सुरक्षा दे पायेंगे? उनके हाथ कसमसा रहे थे। अभी बस चार साल की ही नौकरी हुई थी उनकी और लगने लगा था कि अगर पुलिस का मनोबल टूट गया तो वे अपराधियों के सामने नजर झुकाकर चलने को मजबूर हो जाएंगे और इसके लिए वह ही जिम्मेदार माने जाएंगे। उन्हें अहसास हुआ कि वह आईपीएस अफसर जरूर बन गए हैं लेकिन हकीकत में वह कठपुतली भर हैं। एसपी सिटी का पहला चार्ज था और इसी में मुंह की खानी पड़ रही है।

अंधेरा घिर आया था, सड़कों पर स्ट्रीट लाइट न होने के कारण एक दूसरे को देख पाना भी मुश्किल हो रहा था। वहां मौजूद सभी लोग कश्मकश की स्थिति में थे। किसका निर्णय गलत था? आखिर किसी न किसी को पीछे हटना पड़ेगा। कौन मानेगा अपनी पराजय? अतीक अहमद तो झुकने को तैयार नहीं थे, मरने मारने पर उतारू थे। घंटों बीच चुके थे।

अचानक वायरलेस ने शोर मचाना शुरू कर दिया। कमांडर की आवाज गूंजी, समस्त फोर्स वापस आ जाए, डी एम साहेब ने पूरे प्रकरण की मजिस्ट्रेटी जांच के आदेश दिए हैं, जांच मोहन स्वरूप करेगें, सभी वापस आ जाएं।

फैसला हो चुका था। तनी हुई रीढ़ की हड्डियां शिथिल होने लगीं थीं.. जवानों के बूटों की दूर जाती पदचाप और मद्धिम पड़ती जा रही थी.. अब जुगनुओं की आवाज कुछ ज्यादा तेज सुनाई पड़ने लगी थी, चीखती हुई सी जैसे वह अजनबियों को वहां देखकर क्रोधित हो रहे हैं और वहां से चले जाने को कह रहे हैं, उनके इलाके से दूर.. बहुत दूर! वहां मौजूद हर आम और खास की समझ में आ गया था कि एक नई शख्सियत का आविर्भाव हो चुका है जिसके सामने भविष्य में पुलिस प्रशासन को घुटने टेकते रहना ही पड़ेगा।

आधी रात को पराजित कमांडर का फोन मेरे पास आया। भरे हुए गले से कहा.. कल सुबह अपनी फोर्स को मैं क्या मुंह दिखा पाऊंगा? इससे अच्छा होता कि मेरा तुरंत तबादला हो जाता और मैं रातों रात चोरों की तरह यहां से निकल जाता३ या फिर इसी कोतवाली में पंखे से लटककर झूल जाऊं.!!!

(लेकिन हुआ ऐसा नहीं। किसी ने आत्महत्या नहीं की बल्कि कहानी में ऐसा मोड़ आ गया कि पूरा इलाहाबाद दंग रह गया..)