नया संसद भवन, सेंट्रल विस्टा बनकर तैयार है. 28 मई को नरेन्द्र मोंदी इसका उद्घाटन करेगें. इस कार्यक्रम को लेकर बीजेपी के मंत्रियों से लेकर साधारण कार्यकर्ताओं में उत्साह है, क्योंकि वे इसे बीजेपी तथा नरेन्द्र मोदी की बहुत बडी उपलब्धि मानते हैं. इस अवसर को और यादगार बनाने के लिए वित्त मंत्रालय ने 75 रू० का सिक्का चलाने का निर्णय लिया है. यह सिक्का 50 फीसदी चाँदी तथा दूसरे मेटल के मिश्रण से बनेगा, जिसके एक और अशोक स्तंभ होगा, तो दूसरी ओर सेंट्रल विस्टा का चित्र होगा.

यह योजना नरेंद्र मेदी का ड्रीम प्रोजेक्ट रहा है. इसका भूमि पूजन 2020 के दिसंबर में स्वयं नरेन्द्र मोदी ने किया था. इस अवसर पर सोने का बना राजदंड, जो इलाहाद के संग्रहालय में रखा हुआ है, लाया जायेगा, जिसे मोदी जी ग्रहण करेंगे और यह हमेशा स्पीकर के टेबल पर रखा रहेगा. अंब इस मव्य आयोजन को बदरंग करने का काम 20 विरोधी पार्टियों ने किया है. उन्होंने संयुक्त रूप से कहा है कि वे इस आयोजन का बहिष्कार करेंगे. उनके अनुसार संसद भवन ईट गारा से बना भवन नहीं, बल्कि यह भारतीय संविधान का संरक्षक है. संसद राष्ट्रपति, राज्यसभा तथा लोकसभा को मिलाकर बनता है. ऐसे में यदि संसद भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति के द्वारा नहीं होता है तो यह संविधान का अपमान है और लोकतंत्र का अपमान है.

वैसे संसद भवन के भूमि पूजन के समय से ही इसे विरोध का सामना करना पड रहा है. बीजेपी ने हमेशा जनता के बहुमत को मनमानी करने का बहुमत माना है. देश, शासन से संबंधित महत्वपूर्ण निर्णयों में विरोधी पार्टियों को विश्वास में लेना अनावश्यक माना है. सेंट्रल विस्टा बनाने का निर्णय भी उसने अकेले ही लिया. कोरोना की पहली लहर बीतते ही दिसंबर 2020 को इसकी नींव डाल दी गई. इसके निर्माण के लिए आवश्यक भूखंड के लिए आसपास के कई भवनों को धराशाई कर दिया गया.

महामारी की दूसरी लहर आ चुकी थी लोगों को दवाइयांे की कमी, आस्पताल में जगह नही मिल रही थी. आक्सीजन की कमी हो गई थी. ऐसी स्थिति में सारी आलोचनाओं के बावजूद मोदी जी की यह महत्वाकांक्षी योजना जारी रही और दो ढाई वर्ष की समय सीमा में यह भवन तैयार हो गया. यह पहली बार नहीं है कि केंद्रीय सरकार ने किसी महत्वपूर्ण विषय में अकेले निर्णय लिया और विरोधी दलों ने इसका विरोध किया हो और सरकारी कामकाज का बहिष्कार किया हो. उनके विरोध के बोवजूद संसद भवन का उद्घाटन हो ही जायगा.

हम सब जानते है कि भारतीय संविधान में राष्ट्रपति का पद सर्वोच्च पद माना है. राष्ट्रपति को देश का प्रथम नागरिक माना गया है. लेकिन व्यवहार में राष्ट्रपति का पद एक शोभा का पद है. शासन के कार्यों में उनकी कोई दखल नही होती है और बहुमत प्राप्त सरकार की नीतियों पर मोहर लगाना ही उनका काम होता है. ऐसे में यदि सरकार इस आयोजन में उन्हें कोई महत्व नहीं दे रही है, यहाँ तक कि आयोजन में उन्हें बुलाया भी नहीं जा रहा है, तो इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं होगी.

राजदंड या सेंगोल को फिर के संसद में स्थापित करने को लेकर मी विरोधी दलों में नाराजगी है. उनके अनुसार संगोल या राजदंड, राजतंत्र का प्रतीक है. यद्यपि सत्ता हस्तांतरण के समय ब्रिटिश शासन ने इसे नेहरू जी को सौंपा था, लेकिन इसमें बने नंदी तथा दूसरे हिन्दू धार्मिक चिन्हों के कारण इसे भारत के धर्मनिरपेक्ष शासन के विरुद्ध पाकर इसे इलाहाबाद संग्रहालय में रखवा दिया था. वैसे भी जनता द्वारा चुने प्रतिनिधियों के साथ सत्ता हस्थान्तरण की कोई बात नहीं होती है.

विरोधी दलों के इन तर्कों के जवाब में सत्ता पक्ष का कहना है कि यह आयोजन कोई राजनीतिक आयोजन नहीं है. विपक्षी दलों को राजनीतिक तर्कों का सहारा लेकर अपने राजनीतिक हितों को नही साधना चाहिए. प्रधान मंत्री शासन के केंद्र में है, या यों कहें वह सत्ता की आत्मा है. उनके द्वारा संसद का उद्घाटन कोई गलत काम नहीं है. क्या गैर बीजेपी राज्यों में बने विधानसभाओं का उद्घाटन उन्होंने राज्यपाल से कराया था?

और सेंगोल प्रजातंत्र का प्रतीक है, इसलिए संसद के पटल पर इसका स्थान होना चाहिए. इसके अलावा सरकार हमेशा मेहनतकश तथा गरीबों के साथ है. संसद भवन के निर्माण में लगे सत्रह हजार मजदूरों के सहयोग का वे उस दिन सम्मान करेंगें.

यह बात स्पष्ट हो चुकी है कि 2024 में होने वाले चुनावों को ध्यान में रखकर ही ये सारे आयोजन हो रहे है. बीजेपी का कोई भी काम राजनीति से परे होगा, इसकी कल्पना भी नही की जा सकती. उनके नौ साल के शासनकाल में उनकी नीतियाँ इस बात को स्पष्ट करती है. सच पूछा जाय तो संसद भजन के निर्माण में लगे करीगरों का सम्मान ही करना है, तो उन्ही में से किसी से संसद भवन का उद्घाटन करा दिया जाता? सत्ता पक्ष जितना भी तर्क दे, दलित तथा आदिवासियों के प्रति उनका रुख कई बार सामने आ चुका है.

जब से संसद भवन उद्घाटन की बात उठी है तब से अखबार, टीवी चानलों में तरह-तरह के बहस हो रहे हैं. उदघाटन के बाद ये सारे बहस बन्द हो जायेंगे. विपक्षी दल आगामी सत्र से वहाँ जायेंगे ही. सुप्रीम कोर्ट ने इसके संबंध में की गयी जनहित याचिका को खारिज कर ही दिया है. अब दूर से पक्ष और विपक्ष के इस नाटक को देखती जनता ही अगले चुनाव में इस मुद्दे पर अपना फैसला देगी.