मौसम का तापमान लगातार बढ़ रहा है, जिससे सभी लोग परेशान हैं. तापमान 40 डिग्री से पार हो चली है. भीषण गर्मी में पानी की किल्लत से लोग काफी परेशान है. आदिवासी समाज में एक समय था जब कुंआ में पानी घटता ही नही था, चाहे भीषण गर्मी ही क्यों न पड़ रही हो, लेकिन आज सभी को पानी की समस्या से गुजरना पड़ रहा है. पानी की इतनी किल्लत हो गयी है कि दिनों- दिन लोग परेशान हो रहे हंैं. लोग दूर-दराज से पानी की व्यवस्था कर रहे हैं. हमारी बस्ती के आस पास के सभी कुओं में इस बार पानी सूख गया है.
देखा जाए तो लॉकडाउन के बाद से आदिवासियों की जमीन की बहुत तेजी से बिक्री हुई, जैसे-जैसे जमीन की बिक्री होती जा रही है सभी खेतों में घर बनते जा रहे हैं और साथ मे वो अपने लिए पानी की व्यवस्था बोरिंग कर के कर रहे हैं. उसके कारण धीरे-धीरे कुआं में पानी का स्तर कम होते जा रहा है, एक समय था जब आदिवासी समाज में गांव बस्ती में बोरिंग करवाना सख्त मना था, लेकिन जैसे- जैसे गैर आदिवासियों का आगमन होता गया जमीन की बिक्री हुई, साथ में वे लोग कुआं खुदवाने के बजाय बोरिंग करवा लेते है.ं जिसके कारण आज सभी बस्ती में पानी की समस्या हो रही है. कुएं का अस्तित्व खो चुका है, अब बस गंदा पानी आता है जो इस्तेमाल करने लायक नहीं रहता.
किल्लत इतनी हो गई है कि लोगों को कभी-कभी पैसा लगाकर पानी खरीदना पड़ रहा है. इन सभी बातों को लेकर सभी चिंतित है, आदिवासी समाज के गरीब लोगों के लिए बोरिंग करवाना भारी बजट का काम है. लगभग 1 लाख तक का खर्च पड़ता है. इसलिए वे तो नहीं करवा पाते और पैसे वाले बोरिंग करवा कर उनके घर जमीन के नीचे का भी पानी खींच ले रहे हैं. पहले समीप से बहती नदी पर कांके डैम बना कर नयी शहरी आबादी के लिए पानी की व्यवस्था की और नदी को एक तरह से मार डाला, अब बोरिंग करा कर भूमिगत पानी भी खींच ले रहे हैं.
आदिवासियों को जागरूक होना चाहिए और इस बात को समझना चाहिए कि जमीन बेच कर या किसी भी प्रकार खो कर वे अपने जीवन का सर्वस्व गंवा रहे हैं. एक समय था जब गाँव मे बोरिंग कराना सख्त मना था. कुछ गाँवों मे यह नियम अभी भी है और वहाँ पानी की समस्या नही हो रही है, जबकि यहां तो डैम पास रहकर भी पानी कुआँ तक नहीं पहुंच पा रहा है.
इस तबाही के लिए गांव के ही कुछ बिचैलिये जिम्मेदार हैं जो अपने ही गांव, घर के लोगों को बहला फुसला कर या प्रलोभन देकर जमीन बिकवा रहे हैं. और लोभ में फंस कर आदिवासी अपना जीवन का मूलाधार ही गंवाते जा रहे हैं..