5 जून 1974 को लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने व्यवस्था में अमूल परिवर्तन के लिए ‘सम्पूर्ण क्रांति’ की घोषणा की थी. आज भले ही लोगों के स्मरण में न हो, पर जो पीढ़ी उस दौर से गुजरी है, उसके सामने वह मंजर आज भी ताजा है. 19 मार्च से विद्यार्थियों द्वारा शुरू किया गया आंदोलन जल्दी हो पूरे देश में फैल गया. विद्यार्थियों के आग्रह पर जेपी ने नेतृत्व देना स्वीकार किया.

इस आंदोलन को दूसरी आजादी एवं जेपी को दूसरा गांधी कहा गया. आजादी की लड़ाई में जेपी मात्र 19 वर्ष की अवस्था मे गाँधी के विचारों से प्रभावित होकार परीक्षा का वहिष्कार कर स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े थे. माक्र्सवाद से प्रभावित हुए, विनोबा के भूदान आंदोलन से जुड़े. फिर सम्पूर्ण क्रांति का नारा दिया. दरअसल उनकी विचार यात्रा सीधी लीक पर नहीं चली. उसमें उतार- चढ़ाव, पेचींदे मोड़ इत्यादि आते गये. उनका मानना था कि क्रांति का मार्ग कभी जड़ सांचों में नहीं रखा जा सकता. सम्पूर्ण क्रांति, लोहिया के. सप्तक्रांति का ही दूसरा रूप है. आंदोलन के दौरान सामाजिक परिवर्तन की बात आई.

उनकी आम सभाओं में जनेऊँ तोड़ने, तिलक दहेज न लेने एवं जति-पाति न मानने का संकल्प लिया जाने लगा. इसी प्रकार अमीरी की सीमा बाँधने, एक हाथ, एक रोजगार, एक नौकरी या व्यापार के नारे बुलंद किये गये. शिक्षा में सुधार, बुनियादी शिक्षा, सिर्फ बेरोजगारों की फौज न तैयार करने पर बल दिया गया. राजनैतिक परिवर्तन के तहत प्रतिनिधि-वापसी का अधिकार एवं चुनाव में जाति, पैसा के फिजूल खर्च पर अंकुश लगाने की बात हुई. नैतिक या ‘आध्यात्मिक- क्रांति’ के अंतर्गत धर्म के आडंबर पर चोट किया गया. पूरी व्यवस्था से आक्रोशित पीढ़ी को नई दिशा मिली… आपातकाल की घोषणा हुई और सरकार द्वारा आपातकाल के नाम पर आम जनता (खासकर युवा वर्ग) पर तरह-तरह से जुल्म ढ़ाये जाने लगे.

फिर चुनाव की घोषणा हुई. ‘मार्च का बद़ला मार्च में लेने’, ‘बुलेट का बदला बैलेट से लेंगे’, की गूंज के साथ सत्ता - परिवर्तन हुआ. आंदोलन की उपलब्धि गांधी- दर्शन की पुनस्र्थापना भी रहा. सत्याग्रह, भूख-हड़ताल, जुलूस- प्रदर्शन, धरना. मशाल जुलूस आदि जो आजादी के समय गांधी के हथियार थे, उनको फिर से स्थापित किया गया. इसे हम इन नारों से समझ सकते हैं - ‘हमला चाहे जैसा होगा, हाथ हमारा नहीं उठेगा’ और फनिश्वरनाथ रेणु केे अगुवाई में ‘क्षुबध हृदय है, बंद जुबान’.

सत्ता परिवर्तन के बाद भी सम्पूर्ण क्रांति का सपना पूरा नहीं हुआ. जेपी से पूछे जाने पर, अब क्या करें, उन्होंने कहा- गाँव जाओ और वहाँ की समस्याओं को दूर करने का प्रयास करो. उनके कार्यकर्ता, सम्पूर्ण क्रांति के सिपाही, बोधगया, पंचमकिया, गंधमार्दन इत्यादि क्षेत्रों में बदलाव का संकल्प लिए निकल पड़े.

आजादी के इतने वर्षों एवं सम्पूर्ण-क्राँति की घोषणा के 49 वर्षों बाद भी हालात नहीं बदले, विकास की जो परिकल्पना थी वह अधूरी रह गई, लेकिन यह इस आंदोलन की असफलता नहीं कही जायेगी, क्योंकि क्रांति तो दीर्घकालीन प्रक्रिया है, जिसे पूरा करने के लिए संगठित आंदोलन और नेतृत्व की जरूरत है.