आज अगर हम ग्लोबल वार्मिंग की बात करने को मजबूर हो रहे हैं तो यह इसलिए कि अब अगर बात नहीं हुई तो यह हमारे जीवन का संकट बन जाएगा. अगर सैद्धांतिक भाषा में बात करें तो, ग्लोबल वार्मिंग का अर्थ होता है, वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों की उच्य सांद्रता, जो पृथ्वी पर अधिक गर्मी बढ़ाने के लिए जिम्मेवार है. और इस वैश्विक तापमान में वृद्धि से तूफान, बाढ़, जंगल की आग, सूखा और लू के खतरे की आशंका बढ़ जाती है.
कुछ गैस जैसे कार्बन डाइऑक्साइड और मिथेन की मात्रा भी वातावरण में बढ़ जाती है. इसके कारण जलवायु परिवर्तन होना निश्चित है. यह हमारे स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक है. इसके असर से हमें सांस लेने में कठिनाई होने लगती है, फेफड़ों में संक्रमण बढ़ जाता है, जिससे अस्थमा के रोगियों के लिए कई तरह की समस्या बढ़ जाती है. तेज गरम हवाओं के कारण फसल तो बर्बाद होती ही हैं, बाढ़ की समस्या भी बढ़ जाती है. ग्लोबल वार्मिंग के कारण आज मानव जीवन परेशान हो रहा है. अंटटार्तिका में पर्वतीय हिमनद सिकुड़ रहे हैं. पहाड़ी जगह की बर्फ जरूरत से ज्यादा गाड़ियों के आवागमन के कारण, डीजल पेट्रोल के प्रदूषित धुयेँ के कारण सफेद से काली हो रही है. नदियों का उद्गम स्थल दूर से दूर जाता चला जा रहा है.
मानव ने अपने सुख सुविधा के लिए, ऐसों आराम के लिए ऐसे-ऐसे काम किए जिससे मानव निर्मित ग्लोबल वार्मिंग मानव के लिए ही ज्यादा खतरनाक हो गया है. जैसे धरती के गर्भ से खनिज सम्पदा का अतिशय खनन या दोहन. यह खनन प्रक्रिया प्रकृति के खिलाफ जाकर ही किया जाता है. चाहे वह कोयला खनन, लोह अयस्क आदि कोई भी खनिज हो. ईंधन का अधिकाधिक उपयोग भी वातावरण को प्रभावित करता है.
आज के इस बदलते पर्यावरण प्रदूषण को हमने खड़ा किया है. यह ग्लोबल वार्मिंग हमारे जीवन को गलत तरीके से जीने का परिणाम है. इसे मैं अपने दो व्यक्तिगत अनुभवों से स्पष्ट करना चाहूंगी, ताकि हम इसे आसानी से समझ सकें. मैंने कोल इंडिया की अपनी नौकरी सितम्बर 1985 में जॉइन किया था और मुझे रांची सीसीएल में पदस्थापना मिली थी. कांके रोड के गांधीनगर में मुझे रहने के लिए कंपनी का क्वाटर एक महिला डॉक्टर के साथ संयुक्त रूप से मिला था. क्वाटर दो कमरों का था, जिसमें एक कमरे के साथ बालकनी थी, लेकिन पंखा नहीं था. दूसरे कमरे में कम्पनी द्वारा लगाया पंखा था, लेकिन बालकनी नहीं थी. चूंकि मैं पहले क्वाटर में आई, तो मैंने बालकनी और बिना पंखे वाला कमरा ले लिया. आज यह बात सोच कर मैं आश्चर्य से भर जाती हूँ कि तब मुझे पंखे की कोई जरूरत कभी महसूस ही नहीं हुई थी. तब दिन में अगर थोड़ी भी गर्मी हुई तो शाम होते-होते बारिश हो जाती थी. एक शकून भरी ठंढ मन में भर जाती थी. आज वही रांची है, वही कांके रोड है, पर आज इस गर्मी में, बिना ए॰सी॰ या कूलर के रहना मुश्किल लग रहा है.
दूसरी बात जो मुझे याद आती है वह है, जब कांके रोड का विस्तार होने लगा था. पहले यह पतली सी एक सड़क हुआ करती थी. कहीं-कहीं टूटी सी भी. हम इसकी मन ही मन शिकायत भी किया करते थे. लेकिन सड़क के किनारे पर पेड़ों की बहार थी. कहीं छोटे, पतले से पेड़ थे, तो कहीं विशाल पेड़ भी थे. सबसे पहला हमला तो इन पेड़ों के जीवन पर ही हुआ था. पेड़ों की कटाई बड़ी मात्रा में शुरू हुई थी. इसी सड़क से मैं रोज कांके रोड से अपने दफ्तर दरभंगा हाउस जाया करती थी. रास्ते में पड़े कटे हुए पेड़ को देख कर बहुत दुख हुआ करता था. पेड़ों की कटाई खत्म होने के बाद सड़क तो चैड़ी हो गई लेकिन दूर से जिस तरह से सड़क दिखती थी वह एक बियाबान सी लगती थी. मन में एक खालीपन भर देती थी. सड़क के किनारे बिना पेड़ के हो गए थे और उसका स्थान छोटी बड़ी दुकानों ने ले लिया था. जगमगाहट तो बहुत आ गई थी, लेकिन जंगल की आद्रता कहीं खो गई थी. चिड़ियों की चहचहाहट तेज शोर करती भागती गाड़ियों के बीच मंद पर गई थी. उनका रैन बसेरा जो उजड़ गया था.
हम सभी के पास इस तरह के अनेकों अनुभव होंगे जो हमें सीधी सरल भाषा में ग्लोबल वार्मिंग को समझा जाते होंगे. यह बात अब सब को समझ में आ रही है कि गर्मी कितनी बढ़ गई है, नदियां सुख कर नाला बन रही है. जंगल से पेड़ कट रहें है और कंक्रीट के जंगल खड़े हो रहें है. आज इंसान अपना दुश्मन आप ही हो गया है. एक बार ठहर कर मानव को अपने प्राथमिकताओं के बारे में सोचना ही पड़ेगा. उसे जंगल चाहिए या फॉर लेन, सिक्स लेन की सड़कें, उसे पहाड़ चाहिए या कंक्रीट का जंगल, उसे अच्छा, स्वस्थ्य जीवन चाहिए या नाहक की विलासिता, ऐसों आराम. अगर हम आज नहीं सोचेंगे तो समय चूक जाएगा.