जैसे कोयला और अन्य खनिज संपदा का क्षेत्र आदिवासी इलाके रहे हैं, वैसे ही सोना व अन्य कीमती पत्थरों का इलाका भी आदिवासीबहुल इलाके रहे हैं. सुवर्णरेखा नदी के बालु राशि में सोने के कण मिलते हैं, शंख नदी में हीरे, यह ख्याति दूर दूर तक फैली थी. उसके लालच में ही मुगल बादशाह जहांगीर ने 1616 में अपने सिपहसालार और बिहार के सुबेदार इब्राहिम खान को विशाल सेना के साथ छोटानागपुर क्षेत्र में भेजा जो खुखरा के राजा दुर्जन साल को गिरफ्तार कर अपने साथ ले गया. दुर्जन साल दस बारह वर्ष उनकी कैद में रहा. उन्हें हीरे जवाहरात का पारखी माना जाता था.
लेकिन जैसे आदिवासी कोयला निकाल कर चूल्हा जलाने की बात कभी नहीं सोच सके, वैसे ही सोना, चांदी, हीरे के लिए उनके मन में कभी वह हवस और लालच नहीं पैदा हुआ जो गैर आदिवासी समाज में हैं. वे फूलों को केश में खोंस, नकली या अल्युमिनियम के जेवर पहन कर ही खुश हैं. क्योंकि चेहरा तो एक आंतरिक आनंद की आभा से चमकता है.
कुछ लोग कह सकते हैं कि आदिवासी के पास इतना पैसा ही नहीं कि वह कीमती आभूषण खरीद कर पहने, लैकिन जिनकी आर्थिक स्थिति अच्छी भी हो गयी है, जो नौकरीपेशा हैं, कालेज में प्रोफेसर हैं, डाक्टर हैं, बड़ी बद्धिजीवी या लेखिका हैं, उनमें भी सोने चांदी के आभूषण पहनने की वह ललक या प्रदर्शन की चाहत नहीं. सामान्य दिनों में सादगी से रहना और विशेष अवसरों पर प्रकृति प्रदत्त फूलों या अन्य वस्तुओं से सजना उनका स्वभाव है.
एक बात और आदिवासी समाज में सिर्फ युवा लड़कियां ही नहीं, अपने हिसाब से युवा लड़के भी सजते हैं.