दूसरा विश्वयुद्ध शुरू होने के पहले जेपी के अनन्य मित्र यूसुफ मेहर अली ने, जो बम्बई के मेयर के चुनाव में दिग्गजों का पछाड़ दिया था, ‘पद्मा प्रकाशन’ की नींव डाली थी। उन्होंने अपने संपादन में दो किताबें प्रकाशित कीं - ‘युद्ध से खंडित चीन में’ (इन वार टॉर्न चाइना), लेखक - कमलादेवी चट्टोपाध्याय, और ‘भारत के नेता’ (लीडर्स ऑफ इंडिया), लेखक- यूसुफ मेहर अली।
यूसुफ मेहर अली ने उसी ‘पद्मा प्रकाशन’ के जरिये 1942 की अगस्त क्रांति की पूर्व संध्या पर महत्मा गांधी के आशीर्वाद से ‘भारत छोड़ो’ (क्विट इंडिया) नामक पुस्तक प्रकाशित की। चार सप्ताह की अल्प अवधि में ही उसके लगभग छः संस्करण बिक गये। पुस्तक की असाधारण लोकप्रियता ने सर्वसत्ताधारी नौकरशाही को कुपित कर दिया। उसने पुस्तक पर प्रतिबंध लगा दिया।
जवाहरलाल नेहरू का प्रस्तावः कंप्लीट इंडिपेंडेंस
अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी 7 अगस्त को बंबई में बैठी। कार्यसमिति वहां 4 अगस्त से ही बैठी हुई थी। उसने ‘अगस्त प्रस्ताव’ के शब्द-शब्द पर गौर करके उसे नेहरूजी के हाथ सौंपा। नेहरू ने वह प्रस्ताव पेश किया। उसमे कहा गया कि
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हिन्दुस्तान की भलाई और संयुक्त राष्ट्रों की जीत इसी में है कि तुरंत यहां ब्रिटिश हुकूमत का खात्मा हो।
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चीन और रूस वगैरह पर जो संकट आया है उसका कारण है संयुक्त राष्ट्रों की साम्राज्यवादी नीति। उनकी साम्राज्यवादी नीति को देख दुनिया की पीड़ित जनता उनकी पीठ पर नहीं है। यदि वे उक्त नीति को त्याग दें तो संसार के अगुआ बन जायें और संसार में सच्चा प्रजातंत्र स्थापित हो जाये।
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हिन्दुस्तान को आजादी का हक मिल जाये तो वह सब दलों की अस्थायी सरकार बनाये, अपनी और संयुक्त राष्ट्रों की रक्षा की पूरी चेष्टा करे, फिर विधान परिषद बुलाकर वह सर्वसम्मत विधान तैयार करावे। वह विधान ‘संघ शासन’ के अनुकूल किसान और मजदूर के हाथ में ताकत की कुंजी दे। फिर आजाद हिन्दुस्तान और मित्र राष्ट्रों का भविष्य संबंध कैसा होवे इसे ये सभी एक दूसरे के लाभ को देखते हुए तय कर लेंगे।
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हिन्दुस्तान की आजादी को सभी पराधीन देशों की आजादी का लक्षण मानना चाहिए। इससे साम्राज्यवाद की समाप्ति का श्रीगणेश हो।
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यों तो इस संकट काल में अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी का लक्ष्य हिन्दुस्तान की हिफाजत और आजादी है पर इसका पक्का विचार है कि विश्व की शांति, सुरक्षा और सदुन्नति विश्वसंघ की स्थापना पर ही निर्भर करती है। यह विश्वसंघ शोषण और पराधीनता की समाप्ति का प्रतीक हो, तभी निरस्त्रीकरण हो सकेगा और केवल एक विश्वसंघ सेना दल संसार की लड़ाई-भिड़ाई को रोक अमन कायम रख सकेगा। हिन्दुस्तान ऐसे विश्वसंघ में सहर्ष शामिल होगा और अन्यान्य देशों के कांधे से कांधा भिड़ा बहिर्राष्ट्रीय समस्याओं को हल किया करेगा।
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पर ऐसे विचार को किसी को अपनाते न देख कमिटी दुःखी है। चीन, रूस और अपनी जो दुर्दशा हो रही है उससे त्राण पाने के लिए इंग्लैंड के लिए आवश्यक है कि वह तत्काल हिन्दुस्तान को आजाद करे, पर वह साम्राज्यवादी घमंड में चूर है जो सहा नहीं जाता। फिर भी उससे और संयुक्त राष्ट्रों से कमिटी की आखिरी अपील है संभल जाने की और हिन्दुस्तान को आजाद करके अपना और हिन्दुस्तान का गला बचाने की।
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पर अपील करके ही चुप नहीं रहा जा सकता। हक पर पहुंचने के लिए जैसी तैयारी हिन्दुस्तान कर रहा है उसे रोका नहीं जा सकता। इसलिए कमिटी निश्चय करती है कि अपने जन्म सिद्ध अधिकार ‘स्वराज्य’ (कंप्लीट इंडिपेंडेंस) की प्राप्ति के लिए हिन्दुस्तान बड़े से बड़े पैमाने पर अहिंसात्मक ढंग से जन आंदोलन शुरू करे। 22 वर्षों के शांतिपूर्ण संघर्ष से जिन शक्तियों का संचय किया है उन सबका उपयोग करे। ऐसा आंदोलन अनिवार्यतः गांधीजी के नेतृत्व में ही हो सकता है। इसलिए गांधीजी से प्रार्थना है कि देश का नेतृत्व करें और जो-जो कदम लेना है सो हिन्दुस्तान को सुझावें।
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कमिटी ने जनता से अपील की है कि वह साहस तथा सहिष्णुता का परिचय दे, खतरों और कठिनाइयों का सामना करे, याद रखे कि इस आंदोलन का आधार अहिंसा ही है। कमिटी ने कहा है कि जब कांग्रेस का संगठन छिन्न-भिन्न हो जाये और ऊपर से आदेश पाने की संभावना न रहे, तब क्या स्त्री क्या पुरुष, सभी मोटा-मोटी जो आदेश मिल गया उसके आधार पर अपना कार्यक्रम आप ठीक करें और काम करते जायें जब तक भारत आजाद नहीं हो जाता।
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अंत में समिति ने साफ कर दिया है कि जो जन आंदोलन होगा उसका लक्ष्य यह नहीं है कि कांग्रेस के हाथ हुकूमत आ जाये। जब हुकूमत मिलेगी हिन्दुस्तान की सारी जनता को मिलेगी।
प्रस्ताव सुन कमिटी के प्रायः सभी सदस्य अपूर्व उत्साह में आ गये। पर कुछ नेताओं को अब भी उम्मीद थी कि अंगरेज सुलह करके रास्ते पर आ जायेंगे। कमिटी की कार्रवाई शुरू करते हुए मौलाना आजाद साहब ने कहा भी कि आजाद होते ही हिन्दुस्तान जापान का दोस्त बन जायेगा, इसका डर बेबुनियाद है य अब बात करने का मौका नहीं है, काम करने का है, इसलिए हम और ब्रिटिश सरकार एक साथ काम करें, यानी ब्रिटिश सरकार हिन्दुस्तान को आजाद घोषित करे और हम संयुक्त राष्ट्र के साथ मैदान में दुश्मनों से लड़ने उतर पड़ें।
पर सदस्यों की भाव भंगिमा नेताओं की प्रचंड आशावादिता का समर्थन नहीं कर रही थी। सदस्यों ने संशोधनों को नामंजूर करते हुए नारे और जय-जयकार के बीच ‘अगस्त प्रस्ताव’ को पास किया। लगभग 240 सदस्यों में से सिर्फ 13 सदस्यों ने विरोध में हाथ उठाये।
अगले अंक में जारी