जवाहरलाल नेहरू द्वारा पेश प्रस्ताव पास हो जाने के बाद गांधीजी उठे. करीब ढाई घंटे उनका भाषण हुआ - हिंदी में और अंगरेजी में. गांधीजी ने कहा - “…प्रस्ताव की सूचना मैं बड़े लाट साहब को दूंगा जिनका जवाब मिलते ज्यादा देर न होगा. पर मैं चाहता हूं कि आज से सदस्य ही नहीं, बल्कि सारे हिन्दुस्तानी समझ लें कि हमने गुलामी की जंजीर तोड़ डाली और हम स्त्री-पुरुष सभी आजाद हैं. अंगरेजी में बोलते हुए उनने कहा कि देश और विदेश में मेरे कितने ही मित्र हैं. उनमें कुछ को मेरी दानाई में ही नहीं, मेरी ईमानदारी में भी शक है. मेरी दानाई की वैसी कोई कीमत नहीं, लेकिन अपनी ईमानदारी को मैं बड़ी कीमती समझता हूं.

मैं अपने को लार्ड लिनलिथगो साहब का दोस्त मानता हूं. अंगरेज और संयुक्त राष्ट्रवाले अपना दिल टटोलें और बतलावें कि आजादी की मांग करके कांग्रेस कमिटी ने कौन-सा कुसूर किया है? मुझको विश्वास है, संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के सभापति कांग्रेस का अविश्वास नहीं करेंगे. अंगरेजों और संयुक्त राष्ट्रों को ऐसा मौका मिला है जैसा दुबारा नहीं मिलता कि हिन्दुस्तान को आजाद करके अपने सदुद्देश्यों को प्रमाणित कर दें..।” फिर गांधीजी ने हिन्दुस्तान के लिए दुनिया की सभी देश-समाजों का आशीर्वाद चाहा और संयुक्त राष्ट्रों से पूरी मदद मांगी.

भाषण समाप्त करते हुए गांधीजी ने कहा - “…अहिंसा को मानते हुए हर आदमी जो चाहे करने के लिए आजाद है. वह हर तरफ जिच पैदा करे, हड़ताल करावे और अन्यान्य अहिंसात्मक साधनों से काम लेवे. सत्याग्रहियों को कार्यक्षेत्र में पिल पड़ना चाहिए, जीने के लिए नहीं, मरने के लिए. जभी लोग निकल पड़ते हैं ढूंढ़कर मौत का सामना करने के लिए तभी उनकी कौम मौत से बची रहती है. बस, हमलोग अब करेंगे वा मरेंगे.

“…आप विश्वास रखिए कि मैं मंत्रिपदों आदि के लिए वायसराय से कोई सौदा करनेवाला नहीं हूं. मैं पूर्ण स्वतंत्रता के सिवाय किसी चीज से संतुष्ट होने वाला भी नहीं. हो सकता है कि वे नमक-कर को हटाने, शराब की लत को खत्म करने आदि के बारे में सुझाव रखें. लेकिन मैं कहूंगा - ‘स्वतंत्रता के सिवाय कुछ भी नहीं.’

“..यह एक-छोटा-सा मंत्र मैं आपको देता हूं. आप इसे अपने हृदय-पटल पर अंकित कर लीजिए और हर श्वास के साथ उसका जाप किया कीजिए. वह मंत्र हैः ‘करो या मरो’ या तो हम भारत को आजाद करेंगे या आजादी की कोशिश में प्राण दे देंगे. हम अपनी आंखों से अपने देश का सदा गुलाम और परतंत्र बना रहना नहीं देखेंगे. प्रत्येक सच्चा कांग्रेसी, चाहे वह पुरुष हो या स्त्री, इस दृढ़ निश्चय से संघर्ष में शामिल होगा कि वह देश का बंधन और दासता में बने रहने के लिए जिंदा नहीं रहेगा. ऐसी आपकी प्रतिज्ञा होनी चाहिए.

जेल का ख्याल मन में न लाइए. अगर सरकार मुझे कैद न करे तो मैं आपको जेल भरने का कष्ट नहीं दूंगा. ऐसे समय में जबकि सरकार खुद मुसीबत में फंसी है, मैं उस पर भारी संख्या में कैदियों के प्रबंध् का बोझ नहीं डालूंगा. अब से हर पुरुष और हर स्त्री को अपने जीवन का हर क्षण यह जानते हुए बिताना है कि वे स्वतंत्राता की खातिर खा रहे हैं और जी रहे हैं और अगर जरूरत हुई तो वे उस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्राण दे देंगे. ईश्वर को और अपने अंतःकरण को साक्षी मानकर यह प्रण कीजिए कि जब तक आजादी नहीं मिलती तब तक हम दम नहीं लेंगे और आजादी लेने के लिए अपनी जान देने को भी तैयार रहेंगे. जो जान देगा उसे जीवन मिलेगा और जो जान बचायेगा वह जीवन से वंचित हो जाएगा. स्वतंत्राता कायर को या डरपोक को नहीं मिलती.

“…मैं नहीं चाहता कि मित्र-राष्ट्र अपनी स्पष्ट मर्यादाओं से बाहर जायें. मैं नहीं चाहता कि वे अहिंसा को स्वीकार करके अभी निरस्त्र हो जायें. फासीवाद में और आज मैं जिस साम्राज्यवाद के विरुद्ध लड़ रहा हूं उसमें मौलिक अंतर है. अंगरेज भारत से जो चाहते हैं क्या वह सब उन्हें मिल जाता है? आज तो उन्हें वही मिलता है जो वे उससे जबरदस्ती वसूल करते हैं. जरा सोचिए कि अगर भारत एक स्वतंत्र मित्र-राष्ट्र के रूप में अपना सहयोग देगा तो उससे कितना अंतर हो जाएगा. उस स्वतंत्रता को यदि आना है तो आज ही आना चाहिए. यदि आज आप लोग, जिनके पास मदद करने की ताकत है, अपनी उस ताकत का प्रयोग नहीं करते तो उस स्वतंत्रता का कोई आंनद नहीं रह जायेगा. यदि आप उस ताकत का प्रयोग कर सकें तो आज जो असंभव लगता है वह कल स्वतंत्रता की अरुणिमा में संभव हो जायेगा. यदि भारत उस स्वतंत्रता को अनुभव करने लगता है तो वह चीन के लिए उसी स्वतंत्रता की मांग करेगा. रूस की मदद को दौड़ पड़ने के लिए रास्ता खुल जायेगा….

“मैं कहां जाऊंगा और भारत की इस चालीस करोड़ जनता को कहां ले जाऊंगा? मानवता के इस विशाल सागर को संसार की मुक्ति के कार्य की ओर तब तक कैसे प्रेरित किया जा सकता है जबतक कि उसे स्वयं स्वतंत्रता की अनुभूति नहीं हो जाती? आज उसमें जीवन का कोई चिन्ह शेष नहीं है. उसके जीवन के रस को निचोड़ लिया गया है. यदि उसकी आंखों की चमक को वापस लाना है तो स्वतंत्रता को कल नहीं, बल्कि आज ही आना होगा. इसलिए मैंने कांग्रेस को यह शपथ दिलवायी है और कांग्रेस ने यह शपथ ली है कि वह ‘करेगी या मरेगी’.

समाप्त