केंद्र की भाजपा सरकार की दुखती रग है झारखंड की हेमंत सरकार. प्रचंड बहुमत से जीत कर आई, इसलिए भाजपा कुछ कर नहीं पायी चुनाव के तुरंत बाद. लेकिन वह लगातार कोशिश में लगी है कि इस सरकार को कैसे अपदस्थ किया जाये. डुमरी में यदि झाुमुमो हारी तो मान कर चलिए कि लोकसभा चुनाव के पहले इस सरकार का पतन हो जायेगा. ईडी, सीबीआई सभी तैयार बैठे हैं. बस एक कमजोर पल की जरूरत है.
डुमरी कुड़मी डोमिनेटेड विधानसभा क्षेत्र है. मुस्लिम वोटरों की भी वहां अहमियत है. जाहिर है, यदि इन दोनों समुदायों का समर्थन झामुमो के लिए पूर्व की भांति बना रहा तो एनडीए के लिए यहां से जीतना आतना आसान नहीं होगा. पिछले लोकसभा चुनाव में आजसू और भाजपा में चुनावी तालमेल नहीं हुआ था. इसके अलावा जगन्नाथ महतो अपने इलाके के लोकप्रिय नेता थे. इसलिए झामुमो ने आसानी से यहां आजसू के प्रत्याशी को हरा दिया था. पिछले चुनाव में भाजपा और आजसू के मिले वोटों को जोड़ भी दिया जाये तो उन्हें झामुमो से महज कुछ हजार वोट ही अधिक मिले थे.
लेकिन इस बार आजसू भाजपा के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ रही है और आजसू नेताओं को उम्मीद है कि उनकी प्रत्याशी यशोदा देवी आसानी से झामुमो प्रत्याशी के रूप में खड़ी जगन्नाथ महतो की पत्नी बेबी देवी को हरा देगी. झामुमो ने बेबी देवी को मंत्री भी बना दिया है ताकि उनकी पकड़ अपने इलाके में बनी रहे, साथ ही उन्हें सहानुभूति वोट भी मिलने की उम्मीद है. वोटरों के सामने यह तो स्पष्ट है कि यशोदा देवी यदि चुनाव जीत भी जाती हैं तो उनकी मंत्री बनने की दूर-दूर तक फिलहाल उम्मीद नहीं.
डुमरी में औवैसी की पार्टी भी खड़ी है. वैसे तो औवैसी भाजपा के प्रबल विरोधी नजर आते हैं, लेकिन चुनाव में भाजपा के ही ज्यादा काम आते हैं. ओवैसी और कई मुस्लिम बुद्धिजीवियों का तर्क रहता है कि भाजपा की जीत के खतरे की वजह से क्या मुस्लिम राजनीति अपने बलबूते खड़ी होने की कोशिश ही नहीं करे? हालांकि व्यावहारिक दृष्टि से देखा जाये तो राजनीति का धार्मिक और जातीय आधार पर ध्रुवीकरण इस कदर हो चुका है कि मुस्लिम राजनीति स्वतंत्र रूप से खड़ी होने की स्थिति में नहीं. मुस्लिम वोटरों को दो बड़े खेमों में से किसी एक के साथ होना ही होगा. वैसे, यहां यह याद दिलाने की जरूरत नहीं कि भाजपा नेता अनेक बार ऐलानिया यह कह चुके हैं कि उन्हें मुस्लिम वोटों की जरूरत ही नहीं. जाहिर है, औवैसी अपने गृहप्रदेश के बाहर कहीं चुनाव नहीं जीत सकते, बस भाजपा को जीतने में मदद भर कर सकते हैं.
दोनों पक्ष इस उप चुनाव के महत्व को समझ रही है. यदि आजसू का प्रत्याशी भाजपा के समर्थन के बावजूद भी चुनाव हार जाता है तो सुदेश महतो का राजनीतिक भाव गिरेगा. यदि झामुमो प्रत्याशी की पराजय हुई तो भाजपा को यह प्रचार करने का पूरा मौका मिलेगा कि यह सरकार अलोकप्रिय हो चुकी है और वह नये सिरे से उसे अपदस्थ करने की कोशिशों में लग जायेगी.