आज कामोवेश स्त्रियों की दुनिया घर और बाहर बदल रही हैं. घर, विवाह, परिवार एवं बच्चों से जुड़ी जिम्मेदारियों ने उन्हें घर से बाँध कर रख दिया था. ये शब्द केवल महिलाओं के लिए बने है ऐसी धारणा समाज में बनी हुई थी. महिलाओं की घरेलु गतिशीलता घर तक सीमित थी. लेकिन बदलते परिवेश में स्त्रियां भी बदल रही हैं, साथ ही उनके काम का दायरा भी बदल रहा हैं. ऐसा नहीं था कि पहले स्त्रियां घर के बाहर काम में संलग्न नहीं रहा करती थी, लेकिन उनकी पहचान घरेलु बनी रही थी.

जरूरतों के कारण भी महिलाओं के कार्यक्षेत्र का विस्तार हुआ है. जब कभी भी घर में जरुरत पड़ी महिलायें कमर कस कर मैदान में कूद पड़ी. इतिहास में देखे तो रजिया सुल्तान का सल्तनत चलाने का मामला हो या बच्चे को पीठ में बांधकर रानी लक्ष्मीबाई का रणक्षेत्र की जिम्मेवारी लेना हो या फिर सावित्री द्वारा अपने पति सत्यवान के जीवन को यमराज से वापस मांग कर लाने का मामला हो, स्त्रियों ने सदा ही घर बाहर अपनी जिम्मेवारियों को साबित किया है. आज भी उन इतिहासों की झलक हम हर क्षेत्र में देख सकते हैं. फिर भी उनकी छवि एक किसान, एक मजदूर, एक कामकाजी इंसान का नहीं बनना उचित नहीं हैं. मानों वहाँ भी वह घरके दायरे से जुड़ी हैं.

वैसे, एक षड़यंत्र के तहत कामकाजी स्त्रियों की छवि थोड़ी नकारात्मक हैं. क्योंकि औरतों की एक त्यागमयी, ममतामयी, लाज में सिमटी- सिकुड़ी सी छवि स्थापित है. कहीं न कहीं कामकाजी स्त्री के इस रूप में त्यागमयी स्त्री के खो जाने का खतरा पितृसत्ता को सताता है. अतः जो स्त्रियां बाहर कामकाजी है, अर्थोपार्जन में लगी हैं, उन्हें स्वतंत्र इकाई न मानकर परिवार में सहयोगी भूमिका या परिवार के आर्थिक स्तर को बढ़ानेवाला ही माना जाता रहा हैं.

लेकिन आज बड़ी संख्या में स्त्रियां काम करने को घर से बाहर निकल रही है. केवल शहरों या महानगरों में ही नहीं, प्रखंड स्तर पर भी उनकी उपस्थिति देखी जा सकती है. उनके कार्यक्षेत्र ही केवल नहीं बदले, बल्कि कार्य का दायरा भी बदल रहा है. आज स्त्रियां घर परिवार के साथ-साथ अपने कैरियर के बारे में भी सोचने लगी है. अब विवाह के बाद भी एक स्त्री अपनी शिक्षा, अपनी योग्यता के अनुरूप काम करना चाहती हैं. प्रयास करती रहती हैं. बाहरी दुनिया से जुड़ने कि चाह में घर कहीं भी पीछे नहीं छूटता, वो तो साथ-साथ चलता ही रहता है. कई बार तो घर से बाहर निकलने की असुविधाजनक स्थिति होने पर स्त्रियां अपने घर से ही अपनी बाहरी काम, व्यवसाय संचालित करने लगती हैं. इनकी खुद के वजूद को स्थापित करने की चाह और साथ ही घर की आमदानी में बढ़ोत्तरी कर आर्थिक स्तर को ऊँचा उठाने की ललक ने इनके कार्य क्षेत्र को घर से भी निर्देशित करने का रास्ता ढूँढ़ निकाला है.

कम पढ़ी लिखी या अशिक्षित महिलाए घर में रहकर अगरबत्ती, पापड़, बड़ी, अचार, चिकन वर्क, अप्लिप वर्क, एवं अन्य परम्परागत कामों को कर धनोपार्जन कर रही हैं, तो वही शिक्षित व्यवसायिक शिक्षण प्राप्त महिलायें घर बैठे कंप्यूटर का काम, अनुवाद का काम, विभिन्न प्रकार के कंसल्टेंसी का काम बखूबी निभा रही हैं. स्वयं को विकसित करने की जरुरत आज उनकी प्राथमिकता में शामिल हो रही हैं. बंधन खोलो न खोलों, उड़ना मैं सीख लूंगी, कुछ ऐसे संकल्प स्त्रियों में देखने को मिल रहे हैं.