सनातन धर्म एक बार फिर चर्चा में है. तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बेटे उदयनिधि स्टालिन ने सनातन धर्म को वर्ण व्यवस्था का पोषक और उसके उन्मूलन की बात कही है. उत्तर भारत के कई राज्यों में चुनाव होने वाले हैं और भाजपा के लिए यह एक मौका है कि वह खुद को सनातन धर्म के रक्षक के रूप में पेश कर इसका चुनावी लाभ उठाने की कोशिश करे. कांग्रेस इस मुद्दे पर पसोपेश में है.

लेकिन मुद्दे के इस राजनीतीकरण में यह सवाल कहीं पीछे छूट गया कि सनातन धर्म वर्ण व्यवस्था का पोषण करता है या नहीं? वह वर्ण व्यवस्था जिसने एक विशाल आबादी को शूद्र कोटि में रख कर उसके लिए ज्ञानप्राप्ति के तमाम रास्तों को बंद कर उसे सवर्णों की सेवा का काम दिया और यदि उसने ज्ञानप्राप्ति के लिए तप आदि की कोशिश की तो उसके बध को भी सही ठहराया. इसलिए मुझे लगता है कि इस बहस के बीच सनातन धर्म की एक पवित्र पुस्तक बाल्मीकि रामायण में शम्बूक वध वाले प्रसंग को फिर से याद किया जाये. यह कथा बाल्मीकि रामायण के उत्तरकांड में वर्णित है.

कथा इस प्रकार है कि राजाराम के राज्य में एक ब्राह्मण के बच्चे की मृत्यु हो गयी. उसकी असमय मौत से ब्राह्मण बहुत दुखी हुआ और रोते कलपते राजाराम के दरबार में पहुंच गया. उसका कहना था कि ‘जनपदों में रहने वाले लोग जब अनुचित कर्म करते हैं और उन्हें अनुचित कर्म से रोका नहीं जाता, तभी देश की प्रजा में अकाल मृत्यु का भय प्राप्त होता है..यह स्पष्ट है कि नगर या राज्य में कोई अपराध हुआ होगा, तभी इस तरह बालक की मृत्यु हुई है.’

तब ऋषियों के साथ नारद मुनि का सभाकक्ष में प्रवेश होता है और वे कहते हैं - ‘तीन युगों में तीन वर्णों का आश्रय लेकर तपस्यारुपी धर्म प्रतिष्ठित होता है, किंतु नरश्रेष्ठ, शूद्र को इन तीनों ही युगों से तपरूपी धर्म का अधिकार नहीं प्राप्त होता है. महाराज, निश्चय ही आपके राज्य की किसी सीमा पर कोई खोटी बुद्धिवाला शूद्र महान तप का आश्रय ले तपस्या कर रहा है, उसी के कारण इस बालक की मृत्यु हुई है.

श्रीराम ऋषि मुनियों की बात सुनने के बाद पुष्पक विमान पर बैठ कर चारो दिशाओं में यह खोज करने निकल पड़े कि कही किसी तरह का धर्म विरुद्ध काम तो नहीं हो रहा. उन्हें सभी जगह धर्म का पालन करते लोग दिखे. अंत में वे दक्षिण दिशा में बढ़े. वहां शैवाल पर्वत के उत्तर भाग में एक सरोवर को देखा जहां एक तपस्वी उल्टा लटका भारी तप कर रहा था. उन्होंने उससे पूछा कि वह कौन है और किस लाभ की आशा में यह भारी तप कर रहा है.

इसके जवाब में उस तपस्वी ने कहा कि वह देवलोक पर विजय पाने की इच्छा से तप कर रहा है. ‘‘मैं सदेह स्वर्गलोक में जाकर देवत्व प्राप्त करना चाहता हूं. आप मुझे शूद्र समझिये. मेरा नाम शम्बूक है.’’

वह यह सब कह ही रहा था कि श्रीरामचंद्रजीने म्यान से चमचमाती हुई तलवार खींच ली और उसी से उसका सिर काट दिया.

उस शूद्र का बध होते ही इंद्र सहित सभी देवता ‘बहुत ठीक, बहुत ठीक ’ कह कर भगवान श्रीराम की प्रशंसा करने लगे. उस मृत बालक को भी देवताओं ने जीवित कर दिया.

संधियों को कहना चाहिए की बाल्मीकि रामायण सनातन धर्म से जुड़ी पुस्तक नहीं है. या वे श्रीराम के इस कृत्य की निंदा करते हैं.