भारत में कई परिवार गरीबी रेखा से निचे जीवन यापन करते है. ऐसे परिवारों के लिए भारत सरकार बेहद ही कम दामों पर अनाज और राशन का सामान उपलब्ध करवाती है. सरकार ऐसा इसलिए करती है ताकि महंगाई के इस जमाने में गरीब परिवार के लोग भी अपना जीवन यापन आसानी से कर पाएं. महंगाई के दिन प्रतिदिन बढ़ने से आम आदमी का तो जीना मुश्किल सा हो चुका है, ऐसे में सरकारी राशन राहत जैसा दिखता है. लेकिन यदि राशन को सरकार अचानक बंद कर दे तो गरीब परिवार क्या करेगा!

अब खेती योग्य जमीन पर रिसार्ट, आवासीय कालनियां, दुकान आदि बन गए है और वो भी गैर-आदिवासियों का. विकास की चकाचैंध में आंखे अक्सर धुंधला जाती है, उसी तरह आदिवासियों को अभी ये समझ नही आ रहा है कि उसका जंगल जमीन उसके लिए कितना महत्व रखता है. उसे बचा कर चलना होगा, नहीं तो आने वाले समय मे भी आदिवासी समाज दिहाड़ी मजदूर खटता रह जायेगा.

झारखंड की कुल आबादी तीन करोड़ तीस लाख है और उसका लगभग 84.71 फीसदी आबादी सरकारी राशन पर निर्भर है. यह एक अलग प्रश्न है कि इतनी बड़ी आबादी सरकारी राशन पर क्यों निर्भर हो गया? कहीं न कहीं तो हमारे विकास माडल में गड़बड़ी है. लेकिन तत्काल की खबर यह कि जिस राशन पर गरीब निर्भर थे, अभी वह मिलना बन्द हो गया हैं. लोग रोजाना राशन दुकान का चक्कर लगा रहे हैं. कई सरकारी योजनाएं हैं जिसके तहत पहले दो, तीन रुपये किलो के हिसाब से चावल मिलता था. लेकिन परिणाम यह कि जो लोग सरकारी राशन पर निर्भर हो गये थे, उनके लिए बड़ा संकट. बाजार में खाने योग्य चावल 40-45 रुपये किलो से कम नहीं मिलता. आदिवासी समाज मे पूरा दिन लोग चावल ही खाते है. एक दिन में परिवार के हिसाब से बहुत चावल की खपत हो जाती है. जिसके कारण चावल खरीदना भी गरीबांे के लिए मुश्किलों का सामना करने के बराबर हो जाता है.

दूसरी तरफ मुफ्त राशन भरोसे आदिवासी जमीन तेजी से बिकनी शुरु हो गयी. खेत की जमीन पर पक्का मकान बनाने लगे. खेती का रकबा तेजी से घट रहा है. और जिसके पास खेत है, वे भी इस वर्ष पानी ठीक से नहीं बरसने के कारण खेती नही कर पाए. यानी, यदि सरकारी राशन नहीं मिला तो उन्हें आगे भी चावल बाजार से खरीदना पड़ेगा. गरीब परिवार की स्थिति अब दिनों दिन महंगाई से मार खा रही हैं, घर के बड़े सदस्य तो दिहाड़ी मजदूरी करके परिवार का भरन पोषण कर रहे थे, लेकिन स्थिति अब इतनी बिगड़ी जा रही है कि बच्चे भी मजदूरी करने को मजबूर हो रहे हैं.

अब हुआ यह कि अगस्त माह में राशन दुकानों से बड़ी आबादी को चावल नहीं मिला. वजह यह कि केंद्र सरकार ने राशन की आपूर्ति में भारी कटौती कर दी. 146000 मीट्रिक टन भेजना है, करीबन आधी भेजी. 74000 मीट्रिक टन की कटौती. अब यह कटौती क्यों हुई, इसको लेकर अलग अलग कारण बताये जा रहे हैं. केंद्र सरकार का कहना है कि पिछले वर्ष आवंटित चावल का वितरण नहीं हुआ, सो इस वर्ष उसकी कटौती कर ली गयी. झारखंड सरकार का कहना है कि केंद्र सरकार का कहना तो सही है, लेकिन कटौती ज्यादा है.

यह रस्साकसी शायद आने वाले दिनों, महीनों में खत्म हो जाये, लेकिन यह तथ्य अपने आप में कितना भयावह है कि राज्य की लगभग 85 फीसदी आबादी मुफ्त राशन पर निर्भर है.

आदिवासियों को जागरूक करना होगा. आज अगर वो जंगल, जमीन को बचाते हंै, तो आने वाले समय में अपनी अगली पीढ़ी को दिहाडी मजदूरी खटने से बच पायंगे, वरना उन्हें अपने खेतों से बिछड़ने की भारी सजा मिलने वाली है.