मोदी जी कहते हैं कि महिला आरक्षण बिल संसद में पास हो जाने पर महिलायें शक्तिशाली बन गई हैं. उनमें नई उर्जा का संचार हो गया है. महिला आरक्षण कानून बन जाने के बाद भी उसका लाभ महिलाओं को अभी नहीं मिलना है, तो वे शक्तिशाली कैसे बन गई हैं? इस बिल में यह शर्त जोड दिया गया है कि जब तक देश में अगली जनगणना नहीं हो जाती और उसके अधार पर परिसीमन नहीं हो जाता, तब तक यह कानून लागू नहीं होग. यानि 2024 के चुनाव में महिलाओं को इस कानून से कोई लाम नहीं मिलने वाला है.

तब यह प्रश्न उठता है कि इस कानून को संसद का विशेष सत्र बुलाकर अभी क्यों पास करा दिया गया. कहीं यह 2024 के चुनाओं में महिलाओं के अधिकाधिक वोट लेने की सोच से तो नहीं की गई? वैसे भी 2019 के चुनाव में बिना इस कानून के भी 67.18ः महिलाओं ने बीजेपी को वोट दे कर जिताया ही था. कांग्रेस तथा अन्य विपक्षी पार्टियों ने इस बिल में ओबीसी महिलाओ के लिए आरक्षण नहीं होने के कारण इसका विरोध करते हुए भी इस बिल को अपना समर्थन दे दिया. उन्हे तो यह मालूम था कि संसद में बीजेपी का पूर्ण बहुमत होने के कारण उनके विरोध के बावजूद यह कानून बन ही जाता. इसलिए अनावश्यक रूप से महिलाओं का कोपभाजन बनकर अपने हिस्से के महिला वोटों को गंवाने के बजाय उन्होंने इस बिल का समर्थन करना ही उचित समझा होगा.

इस कानून में दलित तथा आदिवासी महिलाओं को आरक्षण दिया गया, लेकिन पिछड़ी जाति की महिलाओं के आरक्षण की बात नहीं कही गई. इसका विरोध सारे विरोधी दलों ने किया. लेकिन बीजेपी का कहना है कि पिछडी जाति के आरक्षण की बात संविधान में नहीं की गई है. इसके अलावा किसी विरोधी पार्टी ने अल्पसंख्यक मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और जैन महिलाओं की बात नहीं उठाई, क्योंकि धर्म के आधार पर आरक्षण का कोई प्रावधान संविधान में नहीं है, चाहे ये सारी महिलायें कितनी भी पिछडी क्यों न हों.

इस कानून के लागू होने की कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की गई है. वैसे, मोदी जी ने 2029 के चुनाव तक इसे लागू कर देने का आश्वासन दिया है. इस बात को लेकर भी महिलाओं को शंका है. क्योंकि संविधान के 84 वें संशोधन में वर्तमान परिसीमन को 2026 तक निश्चित कर दिया गया है. 2026 से लेकर 2029 के बीच मात्र दो वर्ष का समय बचता है, जिसके बीच परिसीमन सम्भव नहीं दिखता है. इसलिए माना जा सकता है कि 2029 के लोकसभा चुनाव में भी महिला आरक्षण लागू नहीं हो सकेगा. इस तरह महिला आरक्षण कानून बनने के एक दशक के बाद भी शायद ही लागू हो.

इस कानून को महिला शक्ति वंदन नाम दिया गया है. फिर से वही महिला को शक्ति रूपा बनाकर वंदना करने की बात. महिलाओं के शोषण का पुरना तरीका. मोदी जी अच्छी तरह से जानते हैं कि आधी आबादी महिलाएं चुनाव में बीजेपी की सफलता की सबसे बडी ताकत है. इसलिए 2016 के स्वतंत्रता दिवस के भाषण से ही उन्होंने ने सरकार की योजनाओं को महिला केंद्रित बना कर उन्होंने महिलाओ के आर्थिक शक्तिकरण की बात कही है. अब 2024 के चुनाव के पहले महिलाओं के राजनीतिक शक्तिकरण की बात कह कर महिला आरक्षण बिल को पारित कर महिलाओं को भरमाने की कोशिश हो रही है . अन्यथा महिलाओं के शक्तिकरण की इतनी ही चिन्ता होती तो बिना किसी शर्त के महिला आरक्षण लागू हो जाता.

यह भी विचारणीय विषय है कि बिना महिला आरक्षण बिल के तैंतीस प्रतिशत महिलाओं को संसद में लाकर उनका राजनीतिक शक्तिकरण नहीं किया जा सकता? बीजेपी सहित सभी पार्टियां महिला प्रत्याशियों को तैंतीस प्रतिशत या प्रचास प्रतिशत टिकट दे कर उन्हें संसद में पहुँचा कर उनका राजनीतिक सशक्तिकरण कर सकते हैं. केवल चाहिए एक ईमानदार इच्छाशक्ति. यहां पर अफ्रिकन देश रवांडा का उदाहरण हम सबके सामने है. 2003 में वहाँ की सरकार ने एक कानून बनाया कि संसद में 30ः सीट महिला प्रतिनिधियों के होंगे. किसी भी दल पर महिलाओं को टिकट देने का कोई प्रतिबन्ध नहीं होगा. वे चाहें तो महिलाओं को 30 फीसदी टिकट दें या 50 फीसदी, लेकिन कानून यह कहता है कि सबसे अच्छ प्रतिनिधि चुनकर संसद में आये. देखा गया कि चुनाव के बाद सबसे अच्छे प्रतिनिधि के रूप में 61 फीसदी महिलाएं चुनकर आई .

कथित रूप् से स्त्री पूजक हमारे देश में स्त्री और पुरुष को समी अधिकार समान रूप से दिये गये हैं. लेकिन पुरुष प्रधान समाज में महिलाएँ अपने अधिकारों को कानून के द्वारा ही प्राप्त कर सकती हैं. होना तो यह चाहिए कि आधी आबादी को आधा प्रतिनिधित्व सहज ही मिल जाना चाहिए था. लेकिन आजादी के पचहत्तर वर्ष बाद भी महिलाओं को यह अधिकार नहीं मिला है. आगे देखें क्या होता है.