20 अगस्त को बालूमाथ थाना क्षेत्र में. निखा उराँव (शिवराज राव की पत्नी) को ग्राम सभा में ‘डायन’ घोषित कर सामाजिक बहिष्कार किया गया. उसकी पिटाई हुई, कारण यह कहा गया कि वह दिनेश्वर के सात माह के बच्चे का खा गई है. पूरे परिवार सहित उसे गाँव से निकाला गया. मुखिया एवं अन्य व्यक्तियों के द्वारा बचाव के कारण उसकी जान बची. 21 अगस्त की शाम उसने लातेहार थाना में न्याय की गुहार लगाई.
इसी प्रकार बेंगाबाद के मोतीलेहा पंचायत की एक महिला को डायन का आरोप लगाकर पिटाई की गई एवं मैला पिलाने का प्रयास किया गया. डर से उसने एक रिश्तेदार के घर पनाह लिया है. पडोस की एक लड़की कीे तबियत खराब रहने पर पहले तो झाड़-फूंक कराया गया, उसी क्रम में ओझा ने डायन का आरोप लगाया. पिटाई के बाद आरोपी के घर का सामान भी लूट लिया गया. उसने भी आवेदन दिया है.
उपरोक्त घटनाओं का उल्लेख मात्र यह दिखाने के लिए नहीं किया गया है कि समाज में डायन के नाम पर अंधविश्वास है बल्कि दुखद आश्चर्य तो यह कि पिछले माह डायन - विसाही के बढ़ते मामलों पर अंकुश लगाने के लिए झारखंड के पिछड़े विभिन्न इलाकों में सर्वे का काम किया गया है. 72 ओझा-गुणियों को चिह्नित भी किया है, इसके बावजूद ऐसी घटनायें थमने का नाम नहीं ले रही, यह दुखद ही नहीं, शर्मनाक भी है. सर्वे के अनुसार झारखंड के 16 जिलों के 459 गांव ‘खतरनाक’ हैं. इन गांवों में डायन के नाम बार बार महिलाओं को प्रताडित किया जाता हैं, नंगा घुमाया जाता है और कई बार तो हत्या तक कर दिया जाता है. आकड़े बताते है कि 2022 में 697 डायन प्रताड़ना के केस दर्ज हुए, जिसमें 33 की हत्या कर दी गई.
हम सभी जानते है कि 1995 में डायन प्रतिरोध अधिनियम बना जिसके अंतर्गत कड़े कानून बनाये गये, जिसके अनुसार किसी भी स्त्री को डायन बताकर प्रताड़ित करना, अखाद्य या घृणित सामग्री खिलाना अपराध माना गया. इसके खिलाफ दण्ड का प्रावधान किया गया. अफवाह फैलाने या घटना में शामिल पाये जाने पर भी सजा (जेल या आर्थिक दंड) तय किया गया. लेकिन यह कानून भी कागज की शोभा बढ़ा रहे हैं. पिछले माह ही ओझाओं को चिन्हित किया गया, पर कार्रवाई नहीं होने के कारण अंकुश नहीं लगाया जा सका है.
दरअसल, पिछड़ा समाज अंधविश्वास में जकड़ा हुआ है. उनके मन में डायन की परिकल्पना है, एक ऐसी स्त्री की है जो अपने अलौकिक शक्तियों के बल पर दूसरों का बुरा करती है. अपने जादू-टोना के बल पर किसी व्यक्ति या जानवर की हत्या कर सकती है. सूखा या अकाल ला सकती है या कोई अन्य अनहोनी सकती है. इस अंधविश्वास का फायदा ओझा गुनी उठाते है. बड़ी चालाकी से किसी अकेली, वृद्ध, निरीह महिला की सम्पत्ति हड़पने की नीयत से उसे डायन घेषित करते हैं. आदिवासी समाज में महिलाओं को सम्पत्ति का हक नहीं है. यानी, वह पुरखों के जमीन को बेच नहीं सकती, पर इसके साथ ही एक अच्छी समझ या चलन यह है कि वह जितका दिन चाहे उसका उपभोग कर सकती है, गुजर- बसर कर सकती है. ऐसी महिला को जमीन से बेदखल करने की नीयत से भी डायन घोषित किया जाता है.
इस समाज में अंधविश्वास की जड़े इतनी मजबूत है कि पुलिस एवं गणमान्य व्यक्ति भी कई बार इसे संस्कृति का मामला मान कर चुप्पी साध लेते हैं. कुछ घटनाओं में पुलिस को विरोध का सामना करना पड़ा, तो कई बार पीड़िता ने समझौता कर लिया, लेकिन सभ्य एवं समुन्नत समाज के लिए जरूरी है कि हम ऐसे अंधविश्वासों का विरोध करें, कानून का सख्ती से पालन हो, ताकि कोई महिला डायन के नाम पर प्रताड़ित न हो.