महिला आरक्षण कानून सत्ताइस वर्षों के बाद किसी तरह संसद के दोनों सदनों से पारित हो गया. 2024 में होने वाले संसदीय चुनाओं के पहले इस कानून को बनाकर इसका सारा श्रेय बीजेपी लेना चाहती है. यद्यपि यह कानून 2024 के चुनाव से लागू होने वाला नहीं है क्योंकि इसके साथ यह शर्त जोड दी गई है कि जब तक देश में जनगणना नहीं हो जाती और उसके आधार पर सीटों का परिसीमन नहीं हो जाता, महिलाओं को आरक्षण नहीं मिलेगा. इस बिल में दलित तथा आदिवासी महिलाओं के आरक्षण की बात कही गई है लेकिन पिछडे वर्ग की महिलाओं को कोई आरक्षण नहीं दिया गया. इसे लेकर कांग्रेस पार्टी सहित अन्य सभी विरोधी दलों ने इसका विरोध तो किया, फिर भी इस बिल का समर्थन किया.

2010 में कांग्रेस के शासनकाल में जब यह बिल राज्यसमा से पारित हुआ तो उस में भी पिछड़ी जाति की महिलाओं के आरक्षण की कोई बात नहीं थी. लोकसभा में जब यह बिल आया तो राजद, सपा तथा अन्य दलों ने इसी बात का विरोध किया. सभापति के सामने जाकर बिल की प्रति भी फाड़ी गई. उस समय कांग्रेस सरकार ने विभिन्न दलों के 31 सासदो वालें एक संयुक्त समिति के पास इस पर पुनः विचार के लिए भेजा. समिति ने कई सिफारिशें की. उन्होंने एससी, एसटी समेत ओबीसी महिलाओं को भी उचित सम्मान देने की बात कही थी . उस समय कांग्रेस इस संबंध में कोई निर्णय नहीं ले सकी. लेकिन अब उसने इस बात को लेकर अपना विरोध जताया. उस समय पिछडे वर्ग की महिलाओं को इस बिल में आरक्षण नहीं मिलने से क्रुद्ध सपा नेता मुलायम सिंह यादव ने कहा था कि पिछडे वर्ग की महिलाओं को आरक्षण नहीं मिलने से लोकसभा में केवल बालकटी महिलाएं हीं पहुंच पायेंगी. अमी भी राजद सांसद महिला आरक्षण बिल को समर्थन देने के बावजूद यह कह रहे हैं कि पिछडी जाति की महिलाओं को आरक्षण न मिले तो संसद में लिपिस्टिक लगाये बॉबकट महिलाएं ही दिखेंगी.

देखा जाय तो संसद में अभी भी कोई बालकटी फैशनेबल महिला नहीं दिखती हैं. महिलाएं संसद तक पहुंची हैं तो आपनी राजनीतिक चेतना तथा सामाजिक प्रतिबद्धता के कारण. पितृ सत्तात्मक समाज में सभी महिलाओं की नियति एक समान है. चाहे शिक्षित हो या अशिक्षित, शहरी हो या ग्रामीण. सब दोयम नागरिकता को झेल रही हैं. उनकी एक जाति है. उनकी समस्यायें एक हैं, उनकी यातनाएं एक है. ऐसे में यह सोचना कि बालकटी महिलाएं पिछड़ी जाति की महिलाओं के हितों को ध्यान नहीं देंगी, उचित नहीं लगता. यहां तो यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि यही तथाकथित बालकटी महिलाओं ने ही एक जुट होकर महिला आरक्षण की बात ससद में उठाई. उन्हीं के प्रयास से अब महिला आरक्षण कानून बन सका.

यह बात भी सर्व सम्मत है कि संसद में भारत के समी धर्मों की पिछडे वर्ग की महिलाओं का प्रतिनिधित्व अवश्य होना चाहिए. यह बात कानून में लिखित न भी हो, यदि समी राजनीतिक दल चुनाव के समय अधिकाधिक इस वर्ग की महिलाओं को टिकट देकर संसद में ला सकते हैं. इसके लिए कानून लागू होने तक की प्रतीक्षा की भी जरूरत नहीं है. वे चाहें तो यह काम अगले चुनाव में भी कर सकते है. केवल पिछड़ी जाति की महिलाओं का हितैषी दिखने तथा उनका वोट बटोरने के लिए संसद में इस तरह का नाटक करने या शहरी महिलाओ का चित्रण इस तरह करने की कोई आवश्यकता नहीं हैं. महिलाएं अपना हित अच्छी तरह जानती हैं. वे एकजुट भी हैं. इस तरह के भेदभाव करके अपना उल्लू सीधा कर रहे सांसदों को वे अच्छी तरह से पहचानती हैं.