आदिवासी लड़कियां पढ़ तो रही हैं, लेकिन नौकरी कहां? जो है भी, उसे बाहरी हड़प रहे हैं और डोमेसाईल नीति धरी की धरी रह जाती है. बेटियाँ कड़ी मेहनत से पढ़ाई कर के भी रोजगार के लिए भटक रही है. एक नारा सुनती आ रही हूं - ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’, और मेहनत मशक्कत से बेटियां पढ़ भी रही हैं लेकिन नौकरी कहां मिलती? लेकिन यह नारा एक खोखला नारा बन कर रह गया है.

हमारे देश की स्थिति अत्यंत खराब होती जा रही है. युवा पीढ़ी अब नौकरी के लिए परेशान हैं, 10 क्लास तक कि पढ़ाई तो सरकार उपलब्ध करा देती है, पर आगे की पढ़ाई के लिए कोई व्यवस्था नहीं. लड़कियां पढ़ाई के लिए दूसरों के घर में काम काज और कभी -कभी मजूरी तक करती हैं और कुछ आगे तक पढ़ाई भी कर लेती हैं. लेकिन जब उसे उच्च शिक्षा की जरूरत पड़ती है तब आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण वह आगे नही बढ़ पाती है.

हमारे पास पड़ोस में दर्जनों लड़कियां भारी मशक्कत कर बीए, एमए तक की पढ़ाई कर रही हैं. लेकिन नौकरी नहीं मिलती. अभी हाल में शिक्षकों की बहाली हुई है. लेकिन ज्यादातर नौकरियां अन्य प्रदेशों के लोग हड़प रहे हैं. अभी-अभी चतरा में छह हिंदी शिक्षकों की बहाली हुई. सोशल मीडिया में शिक्षा विभाग का वह सर्कूलर घूम रहा है जिससे पता चलता है कि बहाल होने वाले सभी शिक्षक उत्तर प्रदेश के हैं. डोमेसाईल नीति की बात हम बहुत सुनते रहे हैं, लेकिन जमीनी हकीकत का पता उस सर्कूलर से चलता है.

आदिवासी लड़कियों के लिए तो पढ़ लिख कर दिहाड़ी पर खटना ही लिखा है. कोई किसी पेट्रोल पंप पर काम कर रही है, तो कोई किसी माल या दुकान में. और हर जगह मजदूरी वही छह-सात हजार रुपये मासिक. सरकार ने तो कई योजनाएं बना रखी है लेकिन उससे लड़कियों को कोई लाभ नही मिलता. एक योजन दीनदयाल उपाध्याय कौशल विकास केंद के माध्यम से चलता है, जहां बस सिलाई, कंप्यूटर की मामूली जानकारी, ब्यूटीशियन आदि का कोर्स सिखाया जाता है.

लेकिन क्लासेस ढंग से होता नही और वहां पढ़ने वाले इतना कुछ नहीं सीख पाते कि अपने बलबूते कुछ कर पायें. उनमें से कुछ को रोजगार का लालच देकर कही दूर के राज्यों में भेज दिया जाता है. लेकिन वहां भी दस बारह घंटे के काम के बदले 6000 या 7000 हजार रुपये मजूरी के रूप में मिलते हैं. उन्हें वहां ऐसे अमानुष तरीके से रखा जाता है कि एक बार लौटने के बाद कोई दुबारा नहीं जाना चाहता. हां, मरता क्या न करता वाली स्थिति में कुछ लोग तब भी जाते ही हैं.

पता नहीं झारखंड की झारखंडी सरकार क्या कर रही है.