सामान्य रूप से हम सोचते हैं कि केवल बड़े बड़े माईन्स की खुदाई के कारण से, बड़े बड़े बांधों के निर्माण की वजह से, चार- चार लेन वाली सड़कों के निर्माण से अथवा ऐसी ही किसी छोटी-बड़ी अन्य सरकारी परियोजनाओं की वजह से आदिवासियों का विस्थापन होता है. लेकिन यह यह अर्धसत्य है.
सरकार द्वारा जानबूझ कर बनाई जाने वाली गलत पालिसियों के कारण भी विस्थापन होता है.
उदाहरण के लिए रघुवर दास सरकार के समय की गलत डोमिसाइल पोलिसी और सीएनटी और एसपीटी कानूनों की अनदेखी करना या पेसा कानून की नियमावली का 27 वर्षों के बाद भी नहीं बन पाना इसकी वजह बन गयी है.
राज्य के मुख्य जीविका के आधार कृषि और माईक्रो उद्योगों के लिए आवश्यक संरचना का निर्माण नहीं होने से मूलनिवासी प्रवासी मजदूर बन रहे हैं.
लेकिन, लेकिन, लेकिन !
इन सबके ऊपर एक और महत्वपूर्ण कारक यह है कि नौकरी पेशा करने वाले और शहरों की ओर मुख करने वाले अपने अपने मूल गांवों से क्या खुद को विस्थापित नहीं कर रहे हैं? शहर में हम घर बना लेते हैं और अपने गांव कभी लौटते ही नहीं हैं. सिर्फ जाति प्रमाण पत्र लेने के लिए चार दिन के लिए हम अपने गांव जाते हैं.
नौकरी के रूप में हम कोई बीडीओ, सीओ, डीडीसी, आईएएस, आईपीएस, आदि रहे होंगे लेकिन अपने खुद के गांव की दशा सुधारने के लिये अब तक हमने क्या किया है?
जरा सोचिए…
क्या कोई समाधान है?
शहरों में रहने वाले कैसे अपने अपने गांवों की मदद कर सकते हैं और अपनी भी आजीविका चला सकते हैं, इसके लिये भी समाधान है और रास्ता भी।।
बस हमें अपने-अपने ‘कमफर्ट जोन’ से निकलने की आवश्यकता है.