प्रखर वामपंथी सामाजिक कार्यकर्ता और बुद्धिजीवी नारायण चंद्र मंडल ने एक महत्वपूर्ण कार्य किया है जो पुस्तक की शक्ल में सामने आया है - ‘रक्तरंजित राजनीति’. दरअसल, यह उन सुनाम-अनाम योद्धाओं की कहानी है जिन्हों ने महाजनी शोषण और माफियागिरी के खिलाफ एक लंबे दौर में संघर्ष किया और शहादत दी.
झारखंड में, खासकर कोयलांचल का चप्पा चप्पा शहीदों के खून से लाल है. और यह शहादत महाजनी शोषण और माफियागिरी के साथ उस ऐतिहासिक संघर्ष के दौरान हुआ जिसका नेतृत्व कामरेड एके राय, विनोद बिहारी महतो और दिसोम गुरु शिबू सोरेन ने किया था. यह संघर्ष बाद में झारखंड अलग राज्य के संघर्ष में बदल गया. और उस दौरान करीबन दो दशकों में सैकड़ों लोग मारे गये, माफिया सरगनाओं, महाजनों और पुलिस की गोली से. शक्तिनाथ महतो, गुरुदास चटर्जी, रसिक हांसदा, मणींद्रनाथ मंडल, सदानंद झा सहित असंख्य नाम, जिन्हों ने शहादत दी और जगह-जगह उनकी शहादत पर मेला लगा कर लोग आज भी उन्हें याद करते हैं.
यहां कुछ ही नाम दिये गये हैं, यह बताने के लिए कि उस संघर्ष में सभी समुदायों के लोगों ने हिस्सा लिया था. आदिवासी, सदान और कुछ बहिरागतों ने भी, जिन्हें झारखंडी अस्मिता से प्यार था. उस समय झारखंड में तीन प्रमुख सामाजिक शक्तियां थी- आदिवासी, सदान और औद्योगिक मजदूर और इन तीनों का प्रतिनिधित्व शिबू सोरेन, विनोद बिहारी महतो और कामरेड एके राय के रूप में हुआ. नई किताब इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है.
विडंबना यही है कि सांप्रदायिक शक्तियों की साजिश से झारखंडी एकता का वह तानाबाना छिन्न भिन्न होता जा रहा है. याद रखने की जरूरत है कि महाजनी और माफिया ताकतें रूप बदल कर झारखंडी जनता के सामने एक बार फिर खड़ी है. उसे राजनीतिक रूप से परास्त करना आज की सबसे बड़ी जरूरत. और इसके लिए जरूरी है, झारखंड की तमाम प्रगतिशील ताकतों को एकजुट होना. उम्मीद करें कि यह किताब इस काम में मददगार बनेगी.