सर्व सेवा संघ के प्रकाशन विभाग के सचिव और झारखंड भूदान यज्ञ समिति के सदस्य अरविंद अंजुम की रिट पिटीशन संख्या 2649/2020 की सुनवाई दिनांक 16.09.2021 को माननीय झारखंड उच्च न्यायालय में माननीय न्यायाधीश राजेश शंकर की अदालत में हुई। पार्थी अरविंद अंजुम जिन्हें झारखंड सरकार ने अधिसूचना 4355/2019 के तहत झारखंड भूदान यज्ञ समिति का मनोनीत सदस्य नियुक्त किया है, ने झारखंड सरकार की उक्त अधिसूचना को ही चुनौती देते हुए माननीय उच्च न्यायालय से दरख्वास्त की है कि उक्त अधिसूचना को निरस्त किया जाये क्योंकि झारखंड सरकार ने भूदान की पांच सदस्यीय समिति में झारखंड के तीन सेवानिवृत प्रशासनिक अधिकारियों को नियुक्त किया है जो बिहार भूदान यज्ञ अधिनियम, 1954 के प्रतिकूल है।

याचिकाकर्ता अरविंद अंजुम ने अपने रिट में सानुरोध याचना की है कि भूदान आंदोलन आचार्य विनोबा भावे ने शुरू किया था और जब तक वे जीवित रहे तब तक वे भूदान यज्ञ अधिनियम के तहत इसके एप्रोप्रियेट अधिकारी बने रहे और भूदान यज्ञ समितियों के कार्यक्रम और दान में मिले जमीन का भूमिहीनों में वितरण उनके ही अधिकारक्षेत्र में चलता रहा। अरविंद अंजुम ने अपनी याचिका में आगे कहा है कि आचार्य विनोबा भावे ने अपने मृत्युपूर्व ये अधिकार क्षेत्र सर्व सेवा संघ, वाराणसी को वसीयत कर दिया, इसलिए झारखंड सरकार को सर्व सेवा संघ के सुझाए लोगों को ही भूदान की समिति में शामिल करना न्यायसंगत है।

ज्ञातव्य है कि सर्व सेवा संघ अरविंद अंजुम सहित नौ सदस्यों का नाम झारखंड सरकार को अनुमोदित कर चुकी है।

याचिकाकर्ता अरविंद अंजुम ने अपनी याचिका के मार्फत यह भी सानुरोध याचना की है कि भूदान की समिति झारखंड में 2002 में बनी और सरकार ने 2010 तक ही समिति के कर्मचारियों के मानदेय और संचालन के खर्चे को वहन किया है। उन्होंने निवेदन किया कि पिछले दस सालों से समिति के कर्मचारियों को कोई मानदेय नहीं मिला है और इससे कर्मचारियों के समझ भूखमरी का खतरा पैदा हो गया, खासतौर पर कोरोना लॉकडाउन के दौरान और उससे उनकी हालत बहुत खराब हो गयी है। उन्होंने अदालत के समक्ष साक्ष्य सहित यह निवेदन किया कि कर्मचारियों के मद में ₹1.92 करोड़ रूपये बकाया हो गये हैं। उन्होंने यह भी निवेदन किया कि प्रशासनिक अधिकारियों के चलते भूदान समिति का कामकाज आरंभ ही नहीं हो सका है।

माननीय अदालत ने अरविंद अंजुम के अधिवक्ता अखिलेश श्रीवास्तव की दलीलें सुनने के बाद सरकार को नोटिस जारी कर दिया। बहस में अधिवक्ताद्वय रोहित सिंहा और आकाश शर्मा भी शामिल रहे।