मोमेंटम झारखंड और वर्तमान सीएनटी—एसपीटी एक्ट संशोधन का विरोध_हम_क्यूँ_कर_रहें?
क्या हमारी दुश्मनी सरकार से है?
या हमारी कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा है?
या हम विकास_विरोधी हैं?
अगर आपको ऐसा लगता है तो सुनिए..
क्या है छोटा नागपुर काश्तकारी अधिनियम 1908 और संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम 1949. यह कानून अनुसूचित जनजाति और पिछड़ी जाति के जमीन की रक्षा के लिए बना कानून है. इसमें समय- समय पर 26 संशोधनों के नाम पर भूमि कानून का बलात्कार किया गया है. पिछले संशोधन से ज्यादा खतरनाक संशोधन वर्तमान संशोधन में है, जिसे झारखंड के आदिवासी मूलवासी के हित में बताया जा रहा है, जो कि कहीं भी झारखंडियों के हित में नहीं है.. वर्तमान रघुवर सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश/ विधेयक में मुख्यत: सीएनटी एक्ट की धारा 21, 49,71 में संशोधन की बात की गई है. (सीएनटी की धारा 21 और एसपीटी की धारा 13 में एक ही बात कही गई है) और सबसे खतरनाक संशोधन धारा 21 में है.. सीएनटी एसपीटी में संशोधन(अनुच्छेद — 21) को हम ऐसे समझें.. एक रात भगवान मेरे सपने में आए और उन्होंने कहा- “बेटी! तीन वरदान मांगो..
मैं- “एक. मैं बहुत अमीर हो जाऊं
दो, मैं बहुत प्रसिद्ध हो जाऊं
तीन, भगवान समय समय पर मैं तीन वरदान मांगती रहूंगी..
उसी प्रकार अब 21 ए में संशोधन करके 21 बी को जोड़ा गया,उसके अनुसार राज्य सरकार गैर कृषि लगान विनियमित करने के लिए किसी भी प्रकार के कानून होने के बावजूद समय — समय पर गैर कृषि लगान के लिए नियम बना सकेगी..(चित भी सरकार की, और पट भी) जब हमारी भूमि कृषि योग्य रहती है तो हमें लगान देने की आवश्यकता नहीं.. एक तरफ से अपनी भूमि हम गैर कृषि कार्य के लिए देंगे और दूसरी ओर उस पर हमें लगान भी देना पड़ेगा.. सीएनटी की धारा 6 के अनुसार रैयत का अर्थ है ऐसा व्यक्ति जिसने स्वयं या अपने परिवार के सदस्य द्वारा या भाड़े के सेवको द्वारा या भागीदारी की सहायता से खेती करने के लिए भूमि अर्जित की हो. अब धारा 21 में कृषि भूमि को “गैर कृषि योजना भूमि” में बदला जा रहा है जिसे रैयत का अर्थ ही बदल जाएगा. गैर कृषि भूमि में ही उद्योग कंपनी द्वारा लगाया जा सकता है.. जैसे ही सीएनटी/ एसपीटी की धारा 21,13 में संशोधन हुआ, वैसे ही कंपनियों का जमावड़ा लग जाएगा.. जानकारी के लिए बता दूं कि वर्ष 2014 में मोदी सरकार ने भू-अर्जन अध्यादेश 2014 लाया था जिसकी वजह से उद्योगपतियो और पूंजिपतियों को आसानी से जमीन दे दिया जा सके. लेकिन भारी विरोध के कारण इस अध्यादेश को मोदी सरकार ने वापस ले लिया. लेकिन कंपनियों को उद्योगों को बुलाने की जिम्मेदारी राज्य सरकार झारखंड के रघुवर सरकार को दे दी गई. मोमेंटम झारखंड भी उसी की तैयारी है. इधर जैसे ही सीएनटी एसपीटी की धारा 21 में संशोधन होकर गैर कृषि भूमि को गैर कृषि भूमि में बदला गया, वैसे ही कंपनियों की भूमि लूट शुरू हो जाएगी. फिर आदिवासी और मूलवासी को विस्थापित कर दिया जाएगा. जानकारी के लिए बता दूं कि अनुच्छेद 46 में थाना क्षेत्र की भी पाबंदी है, जिसके अनुसार थाना क्षेत्र के बाहर हम जमीन नहीं ले सकते. फिर अगर हम विस्थापित कर दिए जाएं तो कहां जाएंगे? समय गवाह है कि झारखंड के दो नामी गिरामी कंपनियों से किसका भला हुआ है. डिमना लेक का उदाहरण, एनटीपीसी का उदाहरण जग जाहिर है.. हमारे घर की बिजली चली जाती है. अपने घर की चिंता नहीं करते हुए, पड़ोसियों के घर झाँकते हैं, कि वहां भी बिजली गई या नहीं. पड़ोसी राज्य का उदाहरण
20/11/16 , मध्यप्रदेश में एक कार्यक्रम के दौरान हमें सर्वेक्षण का अवसर मिला.. वनों से आच्छादित इस प्रदेश की बात ही निराली है..विकास के नाम पर 25 लाख हेक्टेयर जमीन अधिग्रहण के लिए चिह्नित है..(अनुसूचित क्षेत्र भी) विकास_का_उदाहरण_कैसा??
मलाजखंड, मध्यप्रदेश के वन क्षेत्र में लगे कॉपर खदान जीता जागता उदाहरण है.. कॉपर खदान के गंदे पानी की निकासी के लिए एक डैम का निर्माण किया गया है (जो कि सामान्यतः हर उद्योग की जरूरत होती है).. दिक्कत वाली बात..
- बरसात के दिनों में पानी का स्तर बढ़ जाता है, जिससे कि आसपास की कृषि भूमि बंजर हो गई है.. 2.लगभग 400 हेक्टेयर जमीन में कॉपर का वेस्ट डस्ट को फेंका जाता है, जो रेगिस्तान के रूप में तब्दील हो गया है.. 3.विषैले जल के रिसाव से आसपास का भूमिगत जल भी पीने लायक नहीं रह गया है.. 4.वनों का कटाव होने से, और काॅपर डस्ट से वन्य जीव,और जंतु का आवास छिन गया. 5.विस्थापितों को जमीन का पूरा दाम भी नहीं मिला.. पैसा एक समय के बाद खत्म हो जाएगा, और पैसा का मूल्य समय के साथ कम हो जाएगा, पर समय के साथ जमीन का मूल्य बढता जाता है.. 6.भूमि अधिग्रहण के नाम पर परिवार की एक ही पीढ़ी के एक सदस्य को नौकरी मिल सकती है, जबकि भूमि परिवार के सभी सदस्यों के कई पीढ़ियों को संभालती है.
संविधान, पर्यावरण संबंधी कानून उलंघन और सरकार_के_खोखले_दावे 1.1974 का जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम 2.वायु अधिनियम 1981 3.पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 4.खतरनाक तत्व विनिमयन नियम 5.वन संरक्षण अधिनियम 1980.. 6.संविधान का अनुच्छेद 48 (a) - “राज्य पर्यावरण की रक्षा और सुधार करने का प्रयास करेगा, व देश के वन्य जीवों एवं वनों की रक्षा के उपाय करेगा.. तो सीएनटी/एसपीटी संशोधन और मोमेंटम झारखंड को ना कहें..