अंतत: भाजपा सरकार को सीएनटी एक्ट एवं एसपीटी एक्ट के संशोधन के जनविरोधी जिद को बड़े हद तक छोड़ना पड़ा. यह कदम सरकार के विवेक के जगने का संकेत नहीं माना जा सकता. वैसे, यह सरकार जितने छल—प्रपंच और निरंकुशता के साथ काम कर रही है, वैसी हालत में वह फिर उन सारे संशोधनों को वापस लेकर आ जाये तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी. सरकार ने कानूनों की निहित भावनाओं का उल्लंघन करने का एक सिलसिला ही बना लिया है. अगर सरकार को पांचवी अनुसूचि के संवैधानिक प्रावधानों के प्रति संवेदना होती तो मुख्यमंत्री उसके अध्यक्ष पद को स्वीकार नहीं करते.
खैर, सीएनटी एक्ट के संशोधन पर ही हम केंद्रित रहें. मुख्यमंत्री ने घोषणा की है कि अब केवल एक्ट की धारा 71 का ही संशोधन होगा. इस संशोधन का नतीजा यह होगा कि सीएनटी एक्ट की कसौटी पर अवैध माने जाने वाले दखल के बदले रकम में मुआवजे का पीड़ित को भुगतान कराने का निर्धारण और निर्देश करने वाली एसएआर कोर्ट की व्यवस्था खत्म हो जायेगी. बहुत सारे सच्चे झारखंडी भी इस संशोधन को सकारात्मक मानते हैं. ऐसे लोग दरअसल जमीन के बदले पैसे में मुआवजा के प्रावधान को गलत मानते हैं तथा इस प्रावधान को जमीन के अवैध हस्तांतरण को वैध बनाने का एक कानूनी चालबाजी मानते हैं. यहां तक तो ठीक है किंतु समस्या को गहराई से देखने और सुलझाने के लिए ज्यादा सावधानी से सोचने की जरूरत है. क्या इस प्रावधान के खतम होने से सीएनटी एक्ट के तहत आने वाली जमीन की अवैध लूट खत्म या कम हो जायेगी? सामान्य अदालतों में दखल दिहानी के फैसले बड़े पैमाने पर आने लगेंगे? इस संशोधन के बाद कानून और प्रशासन ज्यादा सक्रिय और झारखंडियों के लिए ज्यादा ईमानदार हो जायेगा? दखल दिहानी के अदालती आदेशों पर तेजी से अमल होने लगेगा? कोई भी अनुभवी झारखंडी जानता है कि इन सारे सवालों का जवाब ना में है. धारा 71 दखल दिहानी के अदालती आदेशों पर रोक लगाने वाला प्रावधान तो है नहीं, अवैध कब्जों पर आदिवासियों और अन्य झारखंडी समुदायों के पक्ष में दखल दिलाने के आदेशों की बेहद कम संख्या होने का कारण वकील और प्रशासन की मिलीभगत है. जज भी इन मामलों में झारखंडी मामलों के प्रति सचेत और संवेदनशील नहीं रहे हैं.ऐसी हालत में इस संशोधन का भी घाटा ही होगा. दखल दिहानी के आदेश नहीं आयेंगे, अगर आदेश हो गया तो भी उसपर अमल नहीं होगा और मुआवजा का प्रावधान तो इस संशोधन से खत्म ही हो गया.
इस कारण जरूरी है कि मुआवजा और एसएआर कोर्ट के प्रावधान को खत्म करने के साथ सुनिश्चित दखल दिहानी के लिए कारगर वैकल्पिक न्यायिक ईकाई गठित करने का प्रावधान जोड़ा जाये. एक खास समय सीमा के अंदर त्वरित फैसले के लिए स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्ट का प्रावधान इस कानून में जुड़ना चाहिये. दखल दिहानी दिलाने के प्रति लापरवाह और गैर जिम्मेवार पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों की बर्खास्गी तक की सजा का प्रावधान होना चाहिये. इस एक्ट के तहत केश दर्ज करने के लिए 30 साल की जो समय सीमा है, वह समाप्त होनी चाहिये. अवैध दखल के खिलाफ पीड़ित व्यक्ति या उसके वारिश या सम्बद्ध ग्राम सभा जितने दिन के बाद भी हो, उस मामले को दर्ज करा सके, यही न्याय का तकाजा है. दखल दिहानी के लिए स्पेशल टास्क फोर्स बनाना भी झारखंड की एक बड़ी जरूरत है.
ऐसे ही प्रावधानों को कानून में जोड़ने की मांग उठाना सीएनटी एक्ट को धारदार बनाने के लिए जरूरी है. धारा 71 के बदले ऐसे प्रावधानों से लैस व्यवस्था करने के लिए अभी से एक आंदोलन बनाने के लिए हमे बढना चाहिये.